नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 1987 में ‘प्रादेशिक आर्म्ड कान्स्टेबुलरी’ (PAC) के कर्मियों द्वारा 38 लोगों की कथित हत्या से जुड़े हाशिमपुरा नरसंहार मामले में आठ दोषियों को शुक्रवार को जमानत दे दी. यह मामला न्यायमूर्ति अभय एस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष आया.
ईटीवी भरता की खबर के अनुसार, वरिष्ठ अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी ने पीठ के समक्ष चार दोषियों समीउल्लाह, निरंजन लाल, महेश प्रसाद और जयपाल सिंह का प्रतिनिधित्व किया, जबकि शेष दोषियों का प्रतिनिधित्व एक अलग वकील ने किया.
तिवारी ने तर्क दिया कि दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा मामले में निचली अदालत द्वारा उन्हें बरी किए जाने के फैसले को पलटने के बाद उनके मुवक्किल लंबे समय तक कारावास में रह रहे हैं और उच्च न्यायालय द्वारा निचली अदालत के सुविचारित बरी किए जाने के फैसले को पलटना गलत आधारों पर आधारित था.
तिवारी ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता उच्च न्यायालय के फैसले के बाद से छह साल से अधिक समय से जेल में हैं और उन्होंने जोर देकर कहा कि उनके मुवक्किलों को पहले ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया था. तिवारी ने कहा कि ट्रायल और अपील प्रक्रिया के दौरान उनका आचरण अनुकरणीय था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आठ दोषियों को जमानत दे दी.
बता दें कि हाशिमपुरा नरसंहार 22 मई 1987 को हुआ था, जब पीएसी की 41वीं बटालियन की ‘सी-कंपनी’ के जवानों ने सांप्रदायिक तनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में मेरठ के हाशिमपुरा इलाके से लगभग 50 मुस्लिम पुरुषों को कथित तौर पर घेर लिया था.
सांप्रदायिक दंगों के कारण पीड़ितों को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के बहाने शहर के बाहरी इलाके में ले जाया गया था, जहां उन्हें गोली मार दी गई और उनके शवों को एक नहर में फेंक दिया गया था. इस घटना में 38 लोगों की मौत हो गई थी तथा केवल पांच लोग ही इस भयावह घटना को बयां करने के लिए बचे.