नबी (सल्ल.) द्वारा स्थापित इस्लामी राज्य
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(अल्लाह दयावान, कृपाशील के नाम से)
प्रिय दर्शको, नबी (सल्ल.) के मदीना में रहने का जो ज़माना था, उसका अध्ययन चल रहा है। अल्लाह तआला ने क़ुरआन मजीद में एक जगह नहीं, तीन जगह यह बात कही है—
هُوَ الَّذِیْ اَرْسَلَ رَسُوْلَهٗ بِالْهُدٰى وَ دِیْنِ الْحَقِّ لِیُظْهِرَهٗ عَلَى الدِّیْنِ كُلِّهٖ وَ لَوْ كَرِهَ الْمُشْرِكُوْنَ
“वही है जिसने अपने रसूल को मार्गदर्शन और सत्यधर्म के साथ भेजा, ताकि उसे पूरे के पूरे धर्म पर प्रभुत्व प्रदान करे, यद्यपि बहुदेववादियों को अप्रिय ही लगे।” (क़ुरआन, 61/9)
एक बहुदेववादियों की जगह इनकार करनेवालों (الْکَافِرُوْنَ) के शब्द आए हैं और एक और जगह इसके बजाय कहा गया “और अल्लाह काफ़ी गवाह है।” (وَکَفٰی بِاللہِ شَہِیْدًا) (क़ुरआन, 48/28)
नबी (सल्ल.) केवल कोई समाज सुधारक नहीं थे, कोई उपदेशक नहीं थे, बल्कि आप (सल्ल.) को अल्लाह तआला ने नबियों के सिलसिले के अंत में आख़िरी पैग़म्बर बनाकर सारी दुनिया के सामने इस्लाम का सन्देश पेश करने और संसार की व्यवस्था को बदलकर उसको सही बुनियादों पर चलाने के लिए भेजा था। चुनाँचे एक और जगह अल्लाह तआला कहता है—
وَمَآ أَرْسَلْنَٰكَ إِلَّا كَآفَّةً لِّلنَّاسِ بَشِيرًا وَنَذِيرًا
“हमने तो तुम्हें सारे ही मनुष्यों को शुभ-सूचना देनेवाला और सावधान करनेवाला बनाकर भेजा है।” (क़ुरआन, 34/28)
जो लोग आपकी बात को मान लें उनके लिए ख़ुशख़बरी है, उनके लिए सन्मार्ग है, उनके लिए अल्लाह की दयालुता है, उनके लिए अल्लाह की कृपा है और जो लोग नहीं मानते, उनके लिए एक चेतावनी है।
नबी (सल्ल.) जब मदीना गए तो आपने सबसे पहले वहाँ मस्जिद का निर्माण किया, फिर आपके लिए एक-दो हुजरे (छोटे कमरे) बनाए गए, मस्जिद कच्ची ईंटों से बनी थी और उसके जो पार्टीशन के लिए लकड़ी की टट्टियों पर मिट्टी लगा दी गई थी। छत इतनी नीची थी कि हाथों को ऊपर उठाने पर उसे छू सकते थे। इस संसाधन विहीन अवस्था में नबी (सल्ल.) ने काम का आरंभ किया।
कोई इंसान जहाँ काम करता है, उसके आसपास के हालात की उसे गहरी जानकारी होनी चाहिए। नबी (सल्ल.) ने मक्का में 13 साल तक संघर्षपूर्ण वातावरण को देखा था, लेकिन मदीना के रूप में आप (सल्ल.) को एक शान्ति की जगह मिल गई थी। वहाँ पहुँचने के बाद आप (सल्ल.) ने न केवल मदीने का सामाजिक सुधार किया, बल्कि इस्लामिक समाज को भी परवान चढ़ाना शुरू किया। इसके लिए आप (सल्ल.) ने एक आदर्श इस्लामी राज्य की आधारशिला रख दी। चुनाँचे आप (सल्ल.) ने एक संविधान भी बनाया और विभिन्न क़बीलों के साथ आप (सल्ल.) ने अनुबंध किए। वहाँ जो बड़े-बड़े फ़ैक्टर्स थे, जिनमें एक तो यहूद थे, जिनकी व्यापारिक और आर्थिक स्थिति बहुत मज़बूत थी। वे ब्याज-व्यवस्था चलाते थे, औस और ख़जरज में परस्पर मतभेद पैदा करके उन्हें लड़ाते भी रहते थे और ‘बाँटो और राज करो’ की पॉलिसी से फ़ायदा उठाते रहते थे।
अल्लाह ने आप (सल्ल.) को जो एक आदेशपत्र दिया था, उसके आधार पर आपने वहाँ पर एक लिखित संविधान भी तैयार किया और हम यह कह सकते हैं कि यह मानव इतिहास में पहला लिखित संविधान था। उसकी ख़ास-ख़ास धाराएँ ये थीं—
1. मदीना के सुगठित समाज में अल्लाह का प्रभुत्व होगा और उसके क़ानून को मौलिक क़ानून माना जाएगा। ज़ाहिर है कि इसके लिए अल्लाह की ओर से बहुत कुछ आदेश आ चुके थे और निरंतर आदेश एवं निर्देश आ रहे थे कि इस्लामी राज्य किन नियमों एवं सिद्धांतों पर परवान चढ़ेगी।
2. नबी (सल्ल.) का राज्य ऐसा नहीं था कि लोगों ने आपको वोट देकर राज्य का राष्ट्रपति या शासक बना दिया हो, बल्कि आप (सल्ल.) अल्लाह तआला की ओर से आदेशपत्र लेकर आए थे, और आप (सल्ल.) उसके रसूल थे। चुनाँचे उसमें यह बात लिखी गई कि सारे राजनैतिक, क़ानूनी और अदालती अधिकार नबी (सल्ल.) के हाथ में होगा।
डॉक्टर हमीदुल्लाह साहब जो पेरिस में रहते थे, और इस्लाम की सेवा करते रहे, उन्होंने उस संविधान को एक नए ढंग से संकलित किया है। उस संविधान के अनुसार नबी (सल्ल.), मक्का से हिजरत करके आनेवाले मुहाजिरीन, मदीना में इस्लाम स्वीकार करनेवाले, अंसार, औस और ख़जरज के लोग और यहूद के क़बीले, जिन सबसे अनुबंध हो गया था, उन सबकी बुनियाद पर एक संयुक्त राष्ट्र वहाँ पर बनाया गया था।
3. तीसरी बात यह थी कि वह लड़ाइयों और जंगों का ज़माना था, क़बीलाई व्यवस्था लागू थी, कोई संगठित शासन नहीं था, पहली बार एक सुगठित शासन अरब में स्थापित हो रहा था और उस हुकूमत का मैंडेट यह था कि हुकूमत को सारी दुनिया में फैला दे और अल्लाह तआला का दीन (इस्लाम) क़ायम हो जाए।
اَنْ اَقِيْمُوا الدِّيْنَ وَلَا تَتَفَرَّقُوْا فِيْہِ۰
“धर्म को क़ायम करो, और उसके विषय में अलग-अलग न हो जाओ।” (क़ुरआन, 42/13)
चुनाँचे रक्षात्मक दृष्टि से मदीना और उसके आसपास की पूरी आबादी को एक संयुक्त शक्ति बना दिया गया और क़ुरैश जो 400 किलोमीटर दूर मक्का में रहकर विरोध कर रहे थे, और जिनके पास उस समय अरब का नेतृत्व था, इस बात की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी गई कि वे वहाँ पर किसी प्रकार का हस्तक्षेप कर सकें या कोई उपद्रव फैला सकें। तो रक्षात्मक दृष्टि से भी एक निर्णायक नीति अपनाई गई।
ख़ास-ख़ास बातें एक बार फिर सुन लीजिए।
1. पहली बात, मुहाजिर, मदीना के मुसलमान और जो लोग समय-समय पर अनुबंध करके इसमें शामिल होते जाएँगे, वे सबके सब एक उम्मत (समुदाय) हैं।
2. हर मामले में इंसाफ़ और सच्चाई को सामने रखा जाएगा।
3. ज़ुल्म, गुनाह, उद्दंडता, ईमानवालों के बीच बिगाड़ पैदा करनेवाले के विरुद्ध सब लोग एकजुट होकर संघर्ष करेंगे।
4. किसी ज़ालिम या दुश्मन को कोई पनाह न देगा।
5. नए राज्य की जंग हो तो यहूदी भी, जो समझौता मित्र थे, जंग के ख़र्च में भागीदार होंगे।
6. इस अनुबंध की व्याख्या के विषय में अगर कोई मतभेद होगा तो उस मतभेद को दूर करने का और सही व्याख्या करने का अधिकार राष्ट्रपति और अल्लाह के रसूल (सल्ल.) के हाथ में होगा।
7. जो व्यक्ति भी चाहे मदीना में रहे, या बाहर जाए, उसकी रक्षा की जाएगी, सिवाय यह कि वह कोई ग़लत काम करे या ग़द्दारी करे तो वह इस अनुबंध के अन्तर्गत नहीं आएगा।
तो यह थी मदीना का वह इस्लामी राज्य जिसके बारे में अल्लाह ने कहा है कि एक बीज फटा, कोंपल सी निकली, फिर बहुत विशाल वृक्ष बन गया। चुनाँचे देखा गया कि सौ वर्ष के अन्दर-अन्दर नबी (सल्ल.) ने मदीना में जिस छोटे-से राज्य की आधारशिला रखी थी, वह दुनिया की सबसे बड़ी हुकूमत और दुनिया की सबसे बड़ा राज्य बन गया।
अल्लाह तआला हम सबमें यह भावना पैदा करे कि आज के इस लम्बी-चौड़ी दुनिया में, जहाँ बहुत सारे कारक काम कर रहे हैं, हम सारे इंसानों को एकजुट करके उनको अल्लाह के दीन की छत्रछाया में लाकर फिर दोबारा वह व्यवस्था स्थापित करें। और इस तरह की भविष्यवाणियाँ हैं कि क़ियामत से पहले फिर वह इस्लामी व्यवस्था स्थापित होगी, अल्लाह का प्रभुत्व होगा, सब उसकी बन्दगी करेंगे, किसी प्रकार का ज़ुल्म नहीं होगा, और दुनिया में भी सफलता मिलेगी और आख़िरत भी सफल होगी।
व आख़िरु दअवा-न अनिल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल-आलमीन।