नवादा: बिहार के नवादा जिले में सूखे का असर गंभीर है. फुलवरिया बांध का पानी भी उतर गया है, तो मुद्दतों से पानी में डूबी एक मस्जिद बाहर निकल आई है. इस मस्जिद को लोग कौतुहल से देख रहे हैं.
बिहार के नवादा जिले के रजौली ब्लॉक के चिरैला गांव में एक जलमग्न मस्जिद फुलवरिया बांध जलाशय के दक्षिणी छोर में पानी के सूखने के बाद सामने आई है. पुराने समय के लोग मस्जिद का नाम नूरी मस्जिद के रूप में याद करते हैं, जो 1985 में फुलवरिया बांध के निर्माण के बाद जलमग्न हो गई थी.
सियासत डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार, पानी के नीचे मस्जिद के उभरने से स्थानीय लोगों में उत्सुकता पैदा हो गई है और इस जगह को देखने के लिए युवाओं की भीड़ उमड़ रही है.
उन्होंने हमेशा जलाशय में पानी देखा था और अब वहां एक मस्जिद को देखकर काफी हैरान हैं. युवाओं को तो पता ही नहीं था कि यहां कभी मस्जिद होती थी और कई बुजुर्ग भी इस मस्जिद को भुला बैठे थे.
आवाज़ द वॉयस की खबर के मुताबिक, कई युवक कीचड़ से गुजरते हुए मस्जिद के पुराने जर्जर ढांचे की ओर भागते हुए देखे जा सकते हैं. कई परिवार भी मस्जिद देखने के लिए दौड़ पड़े. कई ऐसे भी थे, जो मस्जिद के अंदर घुस गए. इमारत को पूरी तरह से बरकरार देखकर लोग हैरान हैं. यह मस्जिद का सबसे आकर्षक हिस्सा था कि दशकों तक पानी में डूबे रहने के बाद भी संरचना को जरा सा भी नुकसान नहीं हुआ है.
पहले जब जल स्तर कम होता था, तो मस्जिद के गुम्बद का एक हिस्सा ही दिखाई देता था और लोग यह नहीं समझ पाते थे कि यह क्या है? अब जब वे मस्जिद को खुले में देख रहे हैं, तो उनकी जिज्ञासा शांत हो जाती है. अब वे आसानी से पैदल चलकर मस्जिद देख सकते हैं और इस इमारत की वास्तुकला का आनंद ले सकते हैं. मस्जिद की जमीन से ऊपरी गुम्बद तक की ऊंचाई करीब 30 फीट है.
इस जलमग्न मस्जिद की पृष्ठभूमि यह है कि यह 1979 में फुलवरिया बांध के निर्माण पर काम शुरू होने से पहले अस्तित्व में थी. उस जगह पर एक बड़ी आबादी हुआ करती थी, जिसे बांध के निर्माण के लिए बेदखल किया गया था.
पूरे क्षेत्र को सरकार द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया था और वहां रहने वाले लोगों को नवादा जिले के रजौली ब्लॉक के हरदिया गांव में स्थानांतरित कर दिया गया था. फुलवरिया बांध का निर्माण पूरा होने के बाद भी मस्जिद को अछूता नहीं छोड़ा गया था. बांध के जलाशय ने मस्जिद समेत पूरी जगह को पूरी तरह से जलमग्न कर दिया.
अब जब मस्जिद का उदय हुआ है, तो उस जगह की चर्चा इसकी उम्र की है. बहुत से लोग कहते हैं कि यह मस्जिद 20वीं सदी की शुरुआत में किसी समय बनाई गई थी और ज्यादा से ज्यादा 120 साल पुरानी हो सकती है.
ऐसा निष्कर्ष मस्जिद के गुम्बद की स्थापत्य कला को देखने के बाद निकाला गया है, जो मुगलों के समय में निर्मित गुम्बदों पर आधारित है. विडंबना यह है कि इस मस्जिद का भविष्य अनिश्चित है. अगर पानी फिर से उस जगह भर जाएगा, तो मस्जिद फिर जलमग्न हो जाएगी.