नई दिल्ली: हैदराबाद से सांसद और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि अगर उत्तर प्रदेश के संभल में मुगल के ज़माने में बनी मस्जिद को लेकर दायर याचिका में राइट टू एक्सेस की मांग की गई थी, तो फिर वहां की अदालत ने मस्जिद का सर्वे करने का आदेश क्यों दिया? सत्तारूढ़ भाजपा पर निशाना साधते हुए ओवैसी ने कहा कि ऐसे मुद्दे देश को कमजोर करते हैं, जो महंगाई, बेरोजगारी, किसान आत्महत्या और अन्य मुद्दों का सामना कर रहा है.
संभल की घटना पर रविवार को यहां पत्रकारों से बात करते हुए ओवैसी ने कहा, “अगर हम याचिका को पढ़ें, तो हम पाएंगे कि इसमें प्रार्थना तक पहुंच का अधिकार है. अगर ऐसा है, तो अदालत ने सर्वे का आदेश क्यों दिया, जो गलत है. अगर उन्हें प्रवेश की जरूरत है, तो उन्हें मस्जिद में जाने और बैठने से कौन रोकता है?”
हैदराबाद के सांसद ने पूछा, “अगर पूजा स्थल अधिनियम के मुताबिक, चरित्र और प्रकृति (धार्मिक स्थल का) बदला नहीं जा सकता है, तो फिर भी सर्वेक्षण का आदेश क्यों दिया गया?”
इस सबके बीच अजमेर दरगार पर भी विवाद शुरू हो गया है. हिंदू सेना का कहना है कि यहां पहले शिव मंदिर हुआ करता था. कई विपक्षी नेताओं ने अजमेर दरगाह पर उठे विवाद पर गंभीर चिंता जताई है, जो उत्तर प्रदेश में संभल मस्जिद के संबंध में किए गए इसी तरह के दावों के तुरंत बाद सामने आया है. अजमेर में मौजूद दरगाह पर दावे के बारे में पूछे जाने पर ओवैसी ने कहा कि दरगाह 800 साल से मौजूद है और (सूफी कवि) अमीर खुसरो ने भी अपनी किताब में इस दरगाह का जिक्र किया है.
उन्होंने जानना चाहा, “अब वे कह रहे हैं कि यह दरगाह नहीं है. अगर ऐसा है तो यह कहां रुकेगा? यहां तक कि प्रधानमंत्री भी ‘उर्स’ के दौरान इस दरगाह पर चादर भेजते हैं. मोदी सरकार जब हर साल चादर भेजेगी तो क्या कहेगी?”
उन्होंने कहा, “अगर बुद्ध और जैन समुदाय के लोग (इस तरह से) अदालत जाएंगे तो वे भी (कुछ) स्थानों पर दावा करेंगे. इसलिए 1991 में एक अधिनियम लाया गया कि किसी धार्मिक स्थल की प्रकृति में बदलाव नहीं किया जाएगा और यह वैसा ही रहेगा जैसा 15 अगस्त 1947 को था.”
ओवैसी ने कहा कि ऐसे मुद्दे देश को कमजोर करते हैं और भाजपा नेताओं को ऐसा करना बंद कर देना चाहिए. उन्होंने कहा, “महंगाई, बेरोजगारी, किसानों की आत्महत्या, चीन का शक्तिशाली होना जैसी समस्याएं हैं. लेकिन, वे इसके लिए (धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण के लिए) लोगों को काम पर लगाते हैं. बाबरी मामले में फैसले के बाद मैंने पहले कहा था कि अब ऐसी और घटनाएं सामने आ सकती हैं.”
19 नवंबर को, संभल के सिविल जज (वरिष्ठ डिवीजन) की अदालत ने शाही जामा मस्जिद का एडवोकेट कमिश्नर के जरिए सर्वे कराने के लिए एकपक्षीय आदेश पारित किया था. यह आदेश हिंदू पक्ष की उस याचिका पर संज्ञान लेने के बाद पारित किया गया था, जिसमें दावा किया गया था कि मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट बाबर ने 1526 में एक मंदिर को ध्वस्त करके कराया था.
24 नवंबर को अदालत के जरिए आदेश दिए गए मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान इलाके में हिंसा भड़क उठी, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को संभल की एक निचली अदालत को चंदौसी में शाही जामा मस्जिद और उसके सर्वे से संबंधित मामले की कार्यवाही रोकने का आदेश दिया, साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार को हिंसा प्रभावित शहर में शांति और सद्भाव बनाए रखने का निर्देश दिया.