कर्नाटक हाई कोर्ट ने हिजाब मामले पर फैसला सुना दिया है और कहा है कि हिजाब इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है. जिसके बाद एआईएमआईएम के चीफ और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले से सहमत होने से इनकार कर दिया है. ओवैसी ने कहा कि वो कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले से इत्तेफाक नहीं रखते हैं.
उन्होंने ट्वीट करके कहा कि ‘मैं हिजाब पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले से असहमत हूं. फैसले से असहमत होना मेरा अधिकार है और मुझे उम्मीद है कि याचिकाकर्ता इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे.’
ओवैसी ने अगले ट्वीट में लिखा कि ‘मुझे उम्मीद है कि AIMPLB (ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) के साथ बाकी संगठन भी इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगे.’
1. I disagree with Karnataka High Court's judgement on #hijab. It’s my right to disagree with the judgement & I hope that petitioners appeal before SC
2. I also hope that not only @AIMPLB_Official but also organisations of other religious groups appeal this judgement…
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) March 15, 2022
ओवैसी ने कहा कि हिजाब पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले ने धर्म, संस्कृति, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया है.
हैदराबाद के सांसद ने लिखा कि एक धर्म को निशाना बनाया गया है और उसकी धार्मिक प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश ने बच्चों को शिक्षा और अल्लाह के आदेशों के बीच चयन करने के लिए मजबूर किया है.
उन्होंने उम्मीद जताई कि इस फैसले का इस्तेमाल हिजाब पहनने वाली महिलाओं के उत्पीड़न को वैध बनाने के लिए नहीं किया जाएगा. उन्होंने कहा कि जब बैंकों, अस्पतालों, सार्वजनिक परिवहन आदि में हिजाब पहनने वाली महिलाओं के साथ ऐसा होने लगता है तो कोई केवल आशा कर सकता है और अंततः निराश हो सकता है.
उन्होंने लिखा ‘संविधान की प्रस्तावना कहती है कि व्यक्ति को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास आस्था और पूजा की स्वतंत्रता है. यदि यह मेरा विश्वास है कि मेरे सिर को ढंकना आवश्यक है तो मुझे इसे व्यक्त करने का अधिकार है जिसे मैं उचित समझता हूं. एक धर्मनिष्ठ मुस्लिम के लिए, हिजाब भी पूजा का कार्य है.’
सांसद ने कहा ‘यह आवश्यक धार्मिक अभ्यास परीक्षण की समीक्षा करने का समय है. एक भक्त के लिए सब कुछ आवश्यक है और एक नास्तिक के लिए कुछ भी आवश्यक नहीं है. एक भक्त हिंदू ब्राह्मण के लिए जनेऊ आवश्यक है लेकिन गैर-ब्राह्मण के लिए यह नहीं हो सकता है. यह बेतुका है कि न्यायाधीश अनिवार्यता तय कर सकते हैं.’
उन्होंने कहा कि एक ही धर्म के अन्य लोगों को भी अनिवार्यता तय करने का कोई अधिकार नहीं है. ‘यह व्यक्ति और ईश्वर के बीच है. राज्य को धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप करने की अनुमति केवल तभी दी जानी चाहिए जब इस तरह के पूजा कार्य दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं. हेडस्कार्फ़ किसी को नुकसान नहीं पहुँचाता है.’
सांसद ने यह भी कहा कि हेडस्कार्फ़ पर प्रतिबंध निश्चित रूप से धर्मनिष्ठ मुस्लिम महिलाओं और उनके परिवारों को नुकसान पहुँचाता है क्योंकि यह उन्हें शिक्षा प्राप्त करने से रोकता है. ‘इस्तेमाल किया जा रहा बहाना यह है कि वर्दी एकरूपता सुनिश्चित करेगी. कैसे? क्या बच्चों को पता नहीं चलेगा कि अमीर/गरीब परिवार से कौन है? क्या जाति के नाम पृष्ठभूमि को नहीं दर्शाते हैं?’
‘शिक्षकों को भेदभाव करने से रोकने के लिए वर्दी क्या करती है? विश्व स्तर पर, अनुभव यह रहा है कि विविधता को दर्शाने के लिए स्कूल, पुलिस और सेना की वर्दी में उचित आवास बनाए जाते हैं.’
ओवैसी ने कहा कि ‘जब आयरलैंड की सरकार ने हिजाब और सिख पगड़ी की अनुमति देने के लिए पुलिस की वर्दी के नियमों में बदलाव किया था, तो मोदी सरकार ने इसका स्वागत किया था.’
‘तो देश और विदेश में दोहरा मापदंड क्यों?’ उन्होंने पूछा, हिजाब और वर्दी के रंगों की पगड़ी पहनने की अनुमति दी जा सकती है.
सांसद ने लिखा कि ‘इस सबका परिणाम क्या है? सबसे पहले, सरकार ने एक ऐसी समस्या खड़ी की, जहां कोई अस्तित्व ही नहीं था. बच्चे हिजाब, चूड़ियां आदि पहनकर स्कूल जा रहे थे. दूसरा, हिंसा को भड़काया गया और भगवा पगड़ी के साथ विरोध प्रदर्शन किया गया. क्या भगवा पगड़ी ‘आवश्यक’ हैं? या केवल हिजाब के लिए ‘प्रतिक्रिया’? तीसरा, GO & HC के आदेश ने मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया. हमने देखा कि मीडिया, पुलिस और प्रशासन छात्रों और यहां तक कि शिक्षकों को हिजाब पहनकर परेशान करते हैं. बच्चों के परीक्षा लिखने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है. यह नागरिक अधिकारों का व्यापक उल्लंघन है.’