आईसीसी ने इसराइली प्रधानमंत्री के खिलाफ जारी किया अरेस्ट वारंट, बौखलाए नेतन्याहू

गाजा: समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने गुरुवार को कहा कि गाजा जंग के दौरान उनके आचरण को लेकर आईसीसी यानी इंटरनेशल क्रिमिनल कोर्ट (अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय) द्वारा उनके खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट देश को अपनी रक्षा करने से नहीं रोकेगा.

एक वीडियो बयान में उन्होंने कहा, “इसराइल विरोधी कोई भी अपमानजनक फ़ैसला हमें और यह मुझे भी, हर तरह से अपने देश की रक्षा करने से नहीं रोकेगा. हम दबाव के आगे नहीं झुकेंगे.” नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलेंट पर गाजा में उनके कामों के लिए “युद्ध अपराध” और “मानवता के विरुद्ध अपराध” के आरोप हैं.

इसराइली प्रधानमंत्री ने कहा कि मानवाधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया आईसीसी “इंसानियत का दुश्मन” बन गया है. नेतन्याहू ने कहा कि संगठन का फैसला ‘राष्ट्रों के इतिहास का काला दिन है.’ उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय संस्था के जरिए लगाए गए आरोपों को भी “पूरी तरह निराधार” बताते हुए इनकार कर दिया.

बता दें कि इसराइल 7 अक्टूबर 2023 से गाजा में संघर्ष में लगा हुआ है. इसी दिन हमास ने इसराइल पर हमला किया था. इस हमले में 1206 लोगों की मौत हुई थी. इसके बाद से इसराइल लागातार गाजा पर हमला करता आ रहा है. अभी तक इन हमलों में गाजा में 44 हजार से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. मरने वालों में ज्यादातर आम लोग शामिल हैं.

आईसीसी को यह मानने के लिए “उचित आधार” मिले हैं कि प्रधानमंत्री नेतन्याहू और योआव गैलेंट गाजा में किए गए युद्ध अपराधों के लिए आपराधिक रूप से जिम्मेदार थे, जिसमें युद्ध के तरीके के रूप में भुखमरी का इस्तेमाल, साथ ही इंसानियत के खिलाफ अपराध, जैसे हत्या, उत्पीड़न और अन्य अमानवीय काम शामिल हैं.

नेतन्याहू ने अदालत के निष्कर्षों को खारिज कर दिया और इसराइल के खिलाफ आरोपों को “काल्पनिक अपराध” कहा तथा तर्क दिया कि इसराइल और दुनिया भर में अन्य देशों के खिलाफ किए जा रहे वास्तविक युद्ध अपराधों को नजर अंदाज किया जा रहा है. नेतन्याहू और गैलेंट के अलावा, अदालत ने हमास की सैन्य शाखा के प्रमुख मोहम्मद देइफ़ के लिए भी गिरफ़्तारी वारंट जारी किया. इसराइल ने पहले बताया था कि पिछले जुलाई में हवाई हमले में देइफ़ मारा गया था, हालांकि हमास ने कभी उसकी मौत की पुष्टि नहीं की.

आईसीसी का पूरा नाम है इंटरनेशल क्रिमिनल कोर्ट. यह एक ग्लोबल कोर्ट है. इंटरनेशल क्रिमिनल कोर्ट दुनिया की सबसे बड़ी अदालत है. आईसीसी का मुख्यालय नीदरलैंड के द हेग में है. इसका गठन 2002 में हुआ था. इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में जंग छेड़ने वालों और राष्ट्राध्यक्षों पर मुकदमा चलाया जाता है. यह इंटरनेशनल कम्युनिटी के लिए सबसे गंभीर अपराधों, नरसंहार, युद्ध अपराध, मानवता के खिलाफ अपराध और आक्रामकता के अपराध के आरोपी व्यक्तियों की जांच करता है और जहां जरूरत होती है उन पर मुकदमा चलाता है. हालांकि, अमेरिका समेत कई ताकतवर देश इसकी अथॉरिटी नहीं मानते हैं. वो इसके मेंबर भी नहीं हैं.

मौजूदा वक्त में ब्रिटेन, जापान, अफगानिस्तान और जर्मनी सहित 124 देश इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के सदस्य हैं. अमेरिकी की तरह भारत, इजरायल और चीन भी इसके सदस्य देश नहीं हैं. अमेरिका इस कोर्ट के गठन के बाद से ही कई बड़े संघर्षों में शामिल रहा है. इसीलिए उसने सदस्यता लेने से परहेज किया है. अमेरिका नहीं चाहता कि इस ट्रिब्यूनल का इस्तेमाल उसके नागरिकों पर मुकदमा चलाने के लिए हो. ज्यादातर यूरोपीय देश ही इसके सदस्य हैं. ये सदस्य देश औपचारिक रूप से गिरफ्तारी वारंट पर अमल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

आईसीसी की स्थापना खास तरह के जघन्य अपराधों के लिए मुकदमा चलाने के लिए की गई थी. वो भी तब, जब कोई देश अपनी कानूनी मशीनरी के जरिए ऐसा करने में सक्षम न हो या ऐसा करना ही न चाहे. आईसीसी यानी इंटरनेशल क्रिमिनल कोर्ट, आईसीजे यानी इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस से अलग है. आईसीजे देशों और इंटर-स्टेट विवादों से संबंधित है, जबकि आईसीसी व्यक्तियों पर मुकदमा चलाता है. यानी जब देश का मसला होता है तो उसके लिए आईसीजे है और किसी व्यक्ति का मसला होता है तो उसके लिए आईसीसी है.

आईसीजे यानी इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस यूएन यानी संयुक्त राष्ट्र का हिस्सा है. इसकी स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा की गई थी. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने अप्रैल 1946 में काम करना शुरू किया था. आईसीसी की तरह आईसीजे का मुख्यालय भी नीदरलैंड के हेग में है. इसका मुख्य काम देशों के बीच कानूनी विवादों को निपटाना है. इसके अलावा आईसीजे का काम संयुक्त राष्ट्र और इसकी विशेष एजेंसियों को कानूनी सवालों पर सलाह देना भी है. इसे इंटरनेशल कोर्ट के तौर पर जाना जाता है. इसके फैसले बाध्यकारी और अंतिम हैं.

भले ही भारत आईसीसी का सदस्य नहीं है, मगर इंटरनेशल कोर्ट ऑफ जस्टिस का भारत सदस्य है. इंटरनेशल कोर्ट ऑफ जस्टिस में भारत कुलभूषण जाधव का केस लड़ चुका है. दलवीर भण्डारी मौजूदा वक्त में इंटरनेशल कोर्ट ऑफ जस्टिस के जज हैं. भारत की ओर से वह इंटरनेशल कोर्ट में जज के तौर पर 27 अप्रैल 2012 को निर्वाचित हुए थे. नवम्बर 2017 में वे इस पद पर दूसरे कार्यकाल के लिए भी चुन लिए गये हैं. न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी वर्ष 2005 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे.

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