नई दिल्ली, 16 अक्टूबर 2024: कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा एक मस्जिद में ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने वालों के ख़िलाफ़ मामला ख़ारिज करना बेहद अफ़सोसजनक है, जिससे न केवल सांप्रदायिक तत्वों को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि ऐसे नापाक प्रयासों का समर्थन भी होगा और आगे कोशिश भी की जाएगी.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. सैयद कासिम रसूल इलियास ने एक प्रेस बयान में इस बात पर बेहद हैरानी और अफसोस का इज़हार किया कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में रात के 10 बजे मस्जिद में कुछ लोग प्रवेश करते हैं और वहां मौजूद लोगों को धमकाते हैं, मस्जिद में “जय श्री राम” का नारा भी लगाते हैं इस बात को मामूली क़रार दिया है. न्यायमूर्ति एम नागप्रसना की अध्यक्षता वाली एकल खंडपीठ ने आरोपी की अपील याचिका पर आदेश पारित करते हुए कहा कि यह समझ में नहीं आता है कि मस्जिद में ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने से किसी समुदाय की धार्मिक भावनाएं कैसे आहत हो सकती हैं.
आरोपियों पर आईपीसी की धारा 295ए (धार्मिक भावनाओं को आहत करने), 447 (आपराधिक अतिक्रमण) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया था. पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आगे की कार्यवाही की अनुमति देना कानून का दुरुपयोग होगा. सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि कोई भी कृत्य आईपीसी की धारा 295ए के तहत अपराध नहीं माना जा सकता.
बता दें कि “जय श्री राम” का नारा सिर्फ एक धार्मिक नारा नहीं है, बल्कि आज इसका उपयोग समाज में सांप्रदायिक नफरत, तनाव और अराजकता फैलाने के एक उपकरण के रूप में किया जा रहा है. हालांकि किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल पर इस तरह का नारा लगाना बिल्कुल भी सही नहीं है.
डॉ. इलियास ने कहा कि अदालतों को देखना चाहिए कि कौन सा कृत्य किस मकसद से किया गया और देर रात दूसरे समुदाय के पूजा स्थल में घुसकर नारे लगाने के पीछे क्या मकसद था. मुसलमान एक ईश्वर की इबादत और बंदगी करते हैं और उसके साथ किसी को शरीक नहीं करते, इसी के लिए मस्जिदें बनाई जाती हैं.
यदि कोई मुसलमान किसी मंदिर या किसी अन्य संप्रदाय के पूजा स्थल में प्रवेश करता है और “अल्लाहु अकबर” का नारा लगाता है, तो क्या वहां के लोग इसे बर्दाश्त करेंगे? और क्या उस वक्त कोर्ट का फैसला भी यही होगा?