नई दिल्ली: मानवाधिकार कार्यकर्ता और एपीसीआर (APCR) के राष्ट्रीय सचिव नदीम ख़ान को शनिवार को दिल्ली पुलिस द्वारा एफआईआर (FIR) का हवाला देकर उन्हें हिरासत में लेने का प्रयास किया गया.
मामला ये है कि दो दिन पहले राइट विंग गिरोह द्वारा नदीम खान का एक वीडियो जानबूझ कर दुर्भावना के तहत वायरल किया गया. इस वीडियो में एक प्रदर्शनी में हेट क्राइम और नफरती भाषणों की वजह से प्रताड़ित होने वालों की घटनाओं को दर्शाया गया था.
मगर उस वीडियो को दक्षिणपंथी समूह द्वारा द्वेष फ़ैलाने वाला बता कर लगातार प्रशासन और पुलिस को टैग कर के करवाई करने का दबाव बनाया गया था.
Delhi Police attempted to detain APCR’s Nadeem Khan in Bengaluru without a warrant, following an FIR for his role in an exhibition on hate crimes. The action, seen as harassment by civil rights groups, highlights the targeting of activists. No arrest warrant, just coercion to… pic.twitter.com/grwnsJq4Bb
— Mohammad Arsh Alam (@TrailEvo) December 2, 2024
सोशल मीडिया के उस कैंपेन का नतीजा ये रहा कि 30 नवंबर 2024 शाम 5 बजे दिल्ली के शाहीन बाग पुलिस स्टेशन के एसएचओ समेत चार पुलिसकर्मी बैंगलोर में नदीम खान के भाई के निजी आवास पर पहुंचे, जहां पर नदीम खान अपने परिवार के साथ मौजूद थे.
वहां पर बिना किसी वारंट या नोटिस के उन्हें जबरन हिरासत में लेने का प्रयास किया गया.
शाम 5 बजे से रात 9 बजे तक वह पुलिसकर्मी घर की पहली मंजिल के हॉल में बैठे रहे और नदीम को ‘अनौपचारिक हिरासत’ में ‘स्वेच्छा से’ उनके साथ दिल्ली आने के लिए मजबूर करते रहे. यह सब कथित तौर पर उसी दोपहर दिल्ली में शाहीन बाग पुलिस स्टेशन में दर्ज एक एफआईआर (0280/2024) में जांच के लिए किया गया था.
ज्ञात रहे ये एफआईआर (FIR) शाहीन बाग दिल्ली में 30 नवंबर को ही दोपहर 12:48 बजे दर्ज की गई और एक दम फुर्ती दिखाते हुए संबंधित पुलिस स्टेशन के पुलिस अधिकारी शाम 5 बजे नदीम के भाई के घर बैंगलोर भी पहुंच गए.
पुलिस द्वारा बहुत जल्दबाजी में, बिना धारा 35(3) के तहत नोटिस जारी किए या गिरफ्तारी वारंट के रूप में कोई अधिकार लिए बिना उनके बैंगलोर के घर आए और नदीम खान पर अपने साथ दिल्ली चलने के लिए लगातार दबाव बनाते रहे.
नदीम खान और उनके परिवार को 5.45 घंटे तक परेशान करने के बाद, रात 10.45 बजे अधिकारियों ने बीएनएसएस की धारा 35(3) के तहत एक नोटिस चिपकाया, जिसमें उनको 6 घंटे के भीतर शाहीन बाग पुलिस स्टेशन में पेश होने के लिए कहा.
नदीम खान के खिलाफ धारा 196, 353(2) और 61 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है.
ज्ञात रहे इन सभी अपराधों के लिए सजा 3 साल से कम है और अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य के जजमेंट और साथ ही बीएनएसएस की धारा 35 के अनुसार, कानून नदीम की मौजूदा एफआईआर के आधार पर गिरफ्तारी को रोकता है, क्योंकि सजा 7 साल से कम है.
इसके बावजूद शाहीन बाग थाने के एसएचओ और अन्य पुलिस अधिकारियों ने नदीम खान और उनके परिवार के सदस्यों को आपराधिक रूप से धमकाना जारी रखा, बिना किसी उचित प्रक्रिया के उन्हें दिल्ली आने के लिए मजबूर करते रहे.
नदीम खान एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स के राष्ट्रीय महासचिव हैं, जो मानवाधिकारों के लिए काम करने वाला एक राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध संगठन है.
याद रहे इस एफआईआर से पहले, 29 नवंबर 2024 को, लगभग 9 बजे, 20-25 अधिकारी बिना किसी नोटिस के, बिना किसी एफआईआर की कॉपी के, बिना किसी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नंबरों के माध्यम से संपर्क करने या अपने कार्यों के लिए कानूनी औचित्य प्रदान किए बिना दिल्ली में एपीसीआर (APCR) के ऑफिस पहुंचे थे.
चूंकि रात में कार्यालय बंद था, इसलिए उन्होंने सुरक्षा गार्ड से एपीसीआर (APCR) के राष्ट्रीय सचिव नदीम खान और संगठन के अन्य सदस्यों और कर्मचारियों के बारे में पूछताछ की.
एफआईआर होने से पहले ही 20 पुलिस अधिकारियों का एपीसीआर (APCR) कार्यालय में आना उनकी दुर्भावनापूर्ण मंशा को दर्शाने के लिए काफी है.
30 नवंबर की सुबह कुछ पुलिस अधिकारी वापस लौटे और एपीसीआर (APCR) के पदाधिकारियों के बारे में पूछताछ की. जब इस पूछताछ के आधार के बारे में पूछा गया तो शाहीन बाग थाने के हेड कांस्टेबल योगेश ने कार्यालय में मौजूद वकीलों को जानकारी देने से इनकार कर दिया.
हेड कांस्टेबल ने वकीलों के साथ दुर्व्यवहार भी किया और उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी. एपीसीआर का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील भी पुलिस की छापेमारी के कारणों के बारे में पूछने के लिए शाहीन बाग थाने गए, लेकिन उन्हें कोई उचित जवाब नहीं मिला.
इस मामले में प्रसिद्ध मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) ने दिल्ली पुलिस द्वारा नदीम खान को परेशान करने, डराने-धमकाने और अवैध हिरासत में रखने की निंदा की है.
मीडिया को जारी बयान में उन्होंने कहा है कि पुलिस का आचरण उचित प्रक्रिया और स्थापित कानून के सभी बुनियादी मानदंडों का उल्लंघन करता है. हम इस जांच के तरीके से भी बेहद चिंतित हैं.
पीयूसीएल (PUCL) ने कहा है कि, स्पष्ट रूप से एक दूषित सोशल मीडिया अभियान के जरिए पुलिस और राज्य के अधिकारियों पर नागरिक स्वतंत्रता और संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए लड़ने वालों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करने का दबाव बनाने की कोशिश की गई है.