नई दिल्ली: गुजरात सरकार द्वारा बिलक़ीस बानो मामले में 11 दोषियों को दी गई छूट को मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. भारत के मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना की एक पीठ ने मामले को देखने के लिए सहमति व्यक्त की. अधिवक्ता अपर्णा भट ने बुधवार को मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग की.
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भी इस मामले का जिक्र करते हुए कहा, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इस पर विचार करने का विवेक दिया है. हम छूट को चुनौती दे रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नहीं.
SC agrees to consider listing plea challenging grant of remission by Gujarat government to 11 convicts in Bilkis Bano case
— Press Trust of India (@PTI_News) August 23, 2022
आवाज़ द वॉयस की खबर के मुताबिक, शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लौल और सामाजिक कार्यकर्ता और प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा द्वारा दायर की गई है. इससे पहले 19 अगस्त को, तेलंगाना एमएलसी के कविता ने भारत के मुख्य न्यायाधीश, एन. वी. रमना को एक पत्र लिखा था जिसमें गुजरात सरकार की रेमिशन पॉलिसी (माफी योजना) के तहत बिलक़ीस बानो के बलात्कार और हत्या के मामले में 11 दोषियों की रिहाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया था.
गुजरात सरकार ने उम्रकैद की सजा पाने वाले 11 दोषियों को 15 अगस्त को रिहा कर दिया था. इस बीच, मामले में सभी 11 आजीवन कारावास के दोषियों को 2008 में उनकी दोषसिद्धि के समय गुजरात में प्रचलित रेमिशन पॉलिसी (माफी योजना) के तहत रिहा कर दिया गया.
मार्च 2002 में गोधरा के बाद के दंगों के दौरान, बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था. उसकी तीन साल की बेटी सहित उसके परिवार के 14 सदस्यों के साथ मरने के लिए छोड़ दिया गया था. वह पांच महीने की गर्भवती थी जब वडोदरा में दंगाइयों ने उसके परिवार पर हमला किया था.