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जामिया ने ‘फेज थेरेपी: ए न्यू पैरादिज़्म इन बैकटीरियल ट्रीटमेंट’ पर किया अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

नई दिल्ली: जामिया मिल्लिया इस्लामिया के बहुविषयक उन्नत अनुसंधान एवं अध्ययन केंद्र (एमसीएआरएस) ने दिनांक 18 अक्टूबर, 2024 को “फेज थेरेपी: ए न्यू पैरादिज़्म इन बैकटीरियल ट्रीटमेंट ” शीर्षक से एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में प्रमुख विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं को जीवाणु संक्रमण से निपटने में फेज थेरेपी की आशाजनक क्षमता का पता लगाने के लिए एक मंच पर लाया गया और वह भी विशेष रूप से बढ़ते रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) को ध्यान में रखते हुए।

संगोष्ठी की शुरुआत उद्घाटन सत्र के हुई जिसमें बहुविषयक उन्नत अनुसंधान एवं अध्ययन केंद्र (एमसीएआरएस) के निदेशक प्रो. मोहम्मद हुसैन ने स्वागत वक्तव्य दिया। उन्होंने केंद्र की महत्वपूर्ण शोध उपलब्धियों और वैज्ञानिक अन्वेषणों को आगे बढ़ाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया। तदुपरान्त जीवन विज्ञान संकाय के डीन प्रो. मोहम्मद जाहिद अशरफ ने देश के तीसरे सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय के रूप में जामिया मिल्लिया इस्लामिया की प्रतिष्ठित स्थिति पर रोशनी डाली।

विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति, प्रो. मोहम्मद शकील ने विश्वास व्यक्त किया कि “यह कार्यक्रम प्रोडक्टिव संवाद को बढ़ावा देगा, नए विचारों को प्रेरित करेगा और इस आशाजनक क्षेत्र में भावी सहयोग के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा।” कुलसचिव, एम. नसीम हैदर ने इस प्रभावशाली संगोष्ठी को आयोजित करने हेतु आयोजक टीम की प्रशंसा की और वैज्ञानिक समुदाय पर एक अमिट छाप छोड़ने की इसकी क्षमता को व्यक्त किया।

पहले सत्र में, लीसेस्टर विश्वविद्यालय, यूके की प्रो. मार्था क्लोकी ने बीज वक्तव्य दिया। उनके भाषण, “एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस – इज फेज थेरेपी दि आन्सर ?” ने यूके में फेज थेरेपी और सफल अनुप्रयोगों के बारे में एक सिंहावलोकन और प्रगति की जानकारी दी और वह भी विशेष रूप से मुर्गी पालन और मछ्ली पालन के क्षेत्र में।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रो. असद यू. खान ने मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट (एमडीआर) बैक्टीरिया के महत्वपूर्ण मुद्दे के बारे में चर्चा की और इसे इसे “मूक महामारी” के रूप में संदर्भित किया और इससे निपटने में आने वाली चुनौतियों के बारे में चर्चा की। प्रो. उर्मी बाजपेयी, आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय ने “एक स्वास्थ्य लेंस के साथ फेज थेरेपी” पर प्रस्तुति दी, जिसमें एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी संक्रमणों को लक्षित करने के लिए फेज लाइब्रेरी और कॉकटेल के विकास पर चर्चा की गई, जिसमें उनकी प्रयोगशाला द्वारा बनाई गई एमटीबी फेज लाइब्रेरी का प्रदर्शन किया गया।

दूसरे सत्र की अध्यक्षता प्रो. बी. के. थेल्मा, यूडीएससी ने की और मुख्य वक्ता प्रो. थॉमस सिचेरिट्ज-पोंटेन डेनमार्क, कोपेनहेगन विश्वविद्यालय थे। “कम्प्यूटेशनल फेज थेरेपी” पर उनके व्याख्यान यह जानकारी मिली कि किस प्रकार जैव सूचना विज्ञान फेज खोज और चिकित्सीय अनुप्रयोगों को बढ़ा सकता है, जिसमें अनुरूप फेज कॉकटेल विकसित करने की क्षमता पर बल दिया गया।

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की डॉ. कृति सीकरी ने एएमआर से निपटने के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की पहलों को प्रस्तुत किया, जिसमें भारत में फेज थेरेपी के रणनीतिक महत्व पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने फेज थेरेपी को लागू करने की सीमाओं और चुनौतियों पर चर्चा की, जबकि इस अभिनव दृष्टिकोण का समर्थन करने के उद्देश्य से भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की नीतियों को रेखांकित किया।

डॉ. अश्विनी चौहान ने प्राकृतिक स्रोतों से फेज को अलग करने के बारे में जानकारी को साझा किया तथा क्लेबसिएला न्यूमोनिया के विरुद्ध उनकी प्रभावशीलता को प्रदर्शित किया जो अस्पताल में होने वाले संक्रमणों का एक महत्वपूर्ण कारण है। सानी शरीफ उस्मान ने टिकाऊ जैव नियंत्रण अनुप्रयोगों के लिए अपशिष्ट जल से अलग किए गए लिटिक बैक्टीरियोफेज से संबंधित निष्कर्ष प्रस्तुत किए।

संगोष्ठी का समापन आकर्षक पैनल चर्चा के साथ हुआ जिसमें वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज, सफ़दर जंग अस्पताल के डॉ. रोहित कुमार एवं डॉ. रुशिका सक्सेना तथा आईसीएमआर के डॉ. मयंक गंगवार सहित अन्य वक्ताओं ने भाग लिया। उन्होंने आईसीयू के रोगियों के समक्ष आने वाली एएमआर चुनौतियों के बारे में चर्चा की और एमडीआर उपभेदों को लक्षित करने वाली फेज लाइब्रेरी स्थापित करने के लिए डॉ. जोशी के साथ अपने सहयोगी प्रोजेक्ट पर चर्चा की।

प्रो. क्लोकी और प्रो. सिचेरिट्ज़-पोंटेन ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के प्रयासों की प्रशंसा की और वह भी विशेषतः एमडीआर-संक्रमित रोगियों से आइसोलेट्स का उपयोग करके फेज लाइब्रेरी बनाने की पहल की, जिसमें चिकित्सीय उपयोग के लिए सबसे अधिक जैव-संगत फेज की पहचान करने की इसकी क्षमता को पहचाना गया।

जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अन्य जगहों के छात्रों और शिक्षकों ने उत्साह के साथ इस कार्यक्रम में भाग लिया और ब्रेक और पोस्टर सत्रों के दौरान वक्ताओं से बातचीत की । इस संगोष्ठी ने एंटीबायोटिक दवाओं के साथ-साथ पूरक उपचार के रूप में नैदानिक सेटिंग्स में फेज थेरेपी की व्यवहार्यता पर चर्चा करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मंच प्रदान किया।

इस कार्यक्रम ने उच्च गुणवत्ता वाले फेज लाइब्रेरी स्थापित करने और फेज अलगाव और लक्षण वर्णन के लिए मानकीकृत प्रक्रियाओं को विकसित करने में उद्योग जगत के हितधारकों की सक्रिय भागीदारी पर रोशनी डाली । चर्चाओं ने प्रीक्लिनिकल और क्लिनिकल परीक्षणों का मार्ग भी प्रशस्त किया, जिससे एंटीबायोटिक प्रतिरोध के विरुद्ध लड़ाई में नई रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता पर बल मिला।

आयोजन सचिव डॉ. मोहन सी. जोशी ने सभी वक्ताओं और उपस्थित लोगों को उनके योगदान के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में कुलपति, कुलसचिव, डीन और बहुविषयक उन्नत अनुसंधान एवं अध्ययन केंद्र (एमसीएआरएस) के निदेशक के सहयोग को स्वीकार करते हुए उनका आभार व्यक्त किया।

डॉ. जोशी ने वैज्ञानिक विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए प्रो मोहम्मद हुसैन के नेतृत्व और प्रतिबद्धता के लिए उन्हें विशेष रूप से धन्यवाद दिया। उन्होंने आमिर फ़राज़, नुहा अबीर खान, नईमा सैयद, हमना सैयद, सिदरा और प्रियल सहित छात्र आयोजकों के प्रयासों की भी प्रशंसा की।

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