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जस्टिस शेखर यादव के बयान से न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंची है: मौलाना महमूद मदनी

Maulana Mahmood Madani justice shekhar_SADAA Times

फोटो साभार: सोशल मीडिया

नई दिल्ली: भारत के सबसे बड़े मुस्लिम संगठनों में से एक जमीअत उलमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-e-Hind) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के द्वारा विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक प्रोग्राम में की गई टिप्पणी की बुधवार को निंदा की. जमीअत ने संसद और भारत के चीफ जस्टिस से न्यायपालिका की विश्वसनीयता की रक्षा के लिए जरूरी कार्रवाई करने का आह्वान किया.

बता दें कि, विहिप ने 8 दिसंबर को एक प्रोग्राम आयोजित किया था, जिसमें जस्टिस शेखर यादव भी शामिल हुए थे. प्रोग्राम में उन्होंने समान नागरिक संहिता (UCC) पर खिताब करते हुए कहा था कि समान नागरिक संहिता (UCC) का मकसद सामाजिक सद्भाव, लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देना है.

जस्टिस शेखर ने कहा था कि “मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि हिंदुस्तान बहुसंख्यकों की इच्छा के हिसाब से चलेगा.” इतना ही नहीं उन्होंने अपने संबोधन में कहा था, “कठमुल्ला शब्द गलत है, लेकिन यह कहने में परहेज नहीं है, क्योंकि वो मुल्क के लिए बुरा है.”

न्यायमूर्ति यादव के इस बयान का वीडियो वायरल होने के बाद कई विपक्षी पार्टियों की वर्गों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी. न्यायमूर्ति यादव की इस टिप्पणी को लोगों ने “नफरती भाषण” करार दिया. अब न्यायमूर्ति के इस बयान पर जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है.

मौलाना मदनी ने न्यायाधीश के बयान की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने अपने पद की विश्वसनीयता को गंभीर नुकसान पहुंचाया है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ज्यूडिशियरी की भूमिका इंसाफ को बनाए रखना और समाज के सभी वर्गों को एकजुट करना है, न कि बांटने वाले बयानबाजी को बढ़ावा देना. राज्यसभा के पूर्व सदस्य ने अपने एक बयान में कहा, “जस्टिस शेखर यादव के बयान से न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंची है”.

पूर्व सांसद ने न्यायाधीश के इस बयान को “भड़काऊ” और “विभाजनकारी” करार देते हुए आशंका व्यक्त की कि इस तरह की बयानबाजी सांप्रदायिक सद्भाव को कमजोर कर सकती है और ज्यूडिशियरी की निष्पक्षता में जनता का यकीन कम कर सकती है.”

मौलाना मदनी ने न्यायाधीश के बयान की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि जस्टिस का काम संविधान की रक्षा करना है, लेकिन उनके बयान से न्यायपालिका की निष्पक्षता और संविधान की साख पर चोट पहुंची है. ऐसे बयान सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ते हैं और जनता का न्यायपालिका पर विश्वास कम करते हैं. हम भारत के मुख्य न्यायाधीश व संसद सदस्यों से अपील करते हैं कि जस्टिस यादव के इस आचरण की गहन जांच कर उचित कार्रवाई करें.

जस्टिस यादव के आचरण की फौरन जांच की मांग करते हुए मदनी ने संसद और भारत के चीफ जस्टिस से इस मुद्दे को गंभीरता से लेने और ज्यूडिशियरी की विश्वसनीयता की रक्षा के लिए जरूरी कार्रवाई करने की गुजारिश की. उन्होंने कहा, “न्यायपालिका की पवित्रता की रक्षा की जानी चाहिए और इसकी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाने वाले किसी भी कदम से सख्ती से निपटा जाना चाहिए.”

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