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Waqf Act: सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केंद्र सरकार ने दायर किया हलफनामा..अदालत संसद के बनाए कानून पर नहीं लगा सकती रोक

Waqf Amendment Act: वक़्फ़ कानून के बनने के बाद से ही देशभर के मुसलमान और विपक्षी राजनीतिक पार्टियां इसके विरोध में है. इसके बाद कई मुस्लिम संगठनों और राजनीतिक पार्टयों ने इस कानून को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. जिसपर कोर्ट में 16 और 17 अप्रैल को लगातार दो दिन सुनवाई हुई थी. जहां कोर्ट ने वक़्फ़ कमेटी में गैर-मुसलमानों को शामिल करने पर आपत्ति जताई थी. साथ ही इसके खिलाफ दायर याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को सात दिन का समय दिया था. अब केंद्र सरकार ने इस पर सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा दाखिल किया है.

सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा दाखिल किया और वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने की मांग की.

संवैधानिक अदालतें किसी वैधानिक प्रावधान पर डायरेक्ट या इनडारेक्ट रूप से रोक नहीं लगाएंगी

केंद्र ने अधिनियम के किसी भी प्रावधान पर रोक लगाने का विरोध करते हुए कहा कि कानून में यह स्थापित स्थिति है कि संवैधानिक अदालतें किसी वैधानिक प्रावधान पर डायरेक्ट या इनडारेक्ट रूप से रोक नहीं लगाएंगी और मामले पर अंतिम रूप से निर्णय लेंगी.

केंद्र ने आगे कहा कि वक़्फ़-बाय-यूजर को वैधानिक संरक्षण से वंचित करने से मुस्लिम समुदाय के किसी व्यक्ति को वक़्फ़ बनाने से वंचित नहीं किया जाता है.

केंद्र सरकार ने आगे कहा..

हलफनामे में आगे केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि यह कानून संयुक्त संसदीय समिति की सिफारिशों पर बनाया गया है, ⁠जो संसद के दोनों सदनों में व्यापक बहस के बाद तैयार की गई विस्तृत रिपोर्ट है. जबकि सुप्रीम कोर्ट के पास निस्संदेह कानून की संवैधानिकता की जांच करने की शक्ति है. ⁠अंतरिम स्तर पर, कानून के किसी भी प्रावधान के संचालन के खिलाफ निषेधाज्ञा प्रदान करना, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, 3 (बी) (सी) संवैधानिकता की इस धारणा का उल्लंघन होगा, जो राज्य की विभिन्न शाखाओं के बीच शक्ति के नाजुक संतुलन के पहलुओं में से एक है.

केंद्र ने कहा कि यह न केवल असत्य और झूठ है, बल्कि जानबूझकर और जानबूझकर इस अदालत को गुमराह किया जा रहा है.

‘क़ानून के अनुसार पंजीकरण हमेशा अनिवार्य रहा है’

केंद्र का कहना है कि धारा 3(1)(आर) के प्रावधान के तहत ‘वक़्फ़ -बाय-यूजर’ के रूप में संरक्षित होने के लिए, संशोधन में या उससे पहले भी किसी ट्रस्ट, डीड या किसी दस्तावेजी सबूत पर जोर नहीं दिया गया है. प्रावधान के तहत संरक्षित होने के लिए एकमात्र अनिवार्य आवश्यकता यह है कि ऐसे ‘वक़्फ़-बाय-यूजर’ को 8 अप्रैल, 2025 तक पंजीकृत होना चाहिए, क्योंकि पिछले 100 वर्षों से वक़्फ़ों को नियंत्रित करने वाले क़ानून के अनुसार पंजीकरण हमेशा अनिवार्य रहा है.

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