बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(अल्लाह दयावान, कृपाशील के नाम से)
प्रिय दर्शको, आप सबको मेरा प्यार भरा सलाम।
तमाम नबियों के समापक हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (सल्ल.) आज से लगभग साढ़े चौदह सौ वर्ष पहले पैदा हुए। हज़रत ईसा (अलैहि.) के 570 वर्ष के बाद, 12 रबीउल-अव्वल, सोमवार का दिन था। आप (सल्ल.) का जन्म अरब के अति प्राचीन 4000 वर्ष पुराने नगर मक्का के अति प्रतिष्ठित क़बीले ‘क़ुरैश’ के ‘बनू हाशिम’ नामक घराने में हुआ। आप (सल्ल.) के जन्म से पहले ही आपके पिता हज़रत अब्दुल्लाह का देहांत हो चुका था। आप (सल्ल.) की माँ का नाम आमिना और दादा का नाम अब्दुल मुत्तलिब था। इस संसार में आप (सल्ल.) का आगमन और अल्लाह के द्वारा आपको सारे इनसानों के लिए मार्गदर्शक बनाकर भेजा जाना मानव इतिहास की बहुत महत्वपूर्ण घटना है। लेकिन अल्लाह के काम भी निराले हैं, जिन्हें इनसान की बुद्धि समझ नहीं सकती। अब यही देखिए कि जब आप (सल्ल.) माँ के गर्भ में थे उन्हीं दिनों आपके बाप का देहांत हो गया और आप (सल्ल.) एक यतीम (अनाथ) की तरह पैदा हुए। जब आप (सल्ल.) पैदा हुए तो आपकी माँ हज़रत आमिना ने बच्चे के दादा अब्दुल मुत्तलिब के पास सन्देश भेजा। अब्दुल मुत्तलिब को अपने मृत बेटे की याद आ गई, परन्तु वे ख़ुशी से दौड़े हुए आए और बच्चे को अपनी गोद में लिया, उसके माथे को चूमा और अत्यंत प्रसन्न हुए। और फिर वे आप (सल्ल.) को लेकर अल्लाह के घर ‘काबा’ पहुँचे। वहाँ पर उन्होंने सब लोगों को बच्चे को दिखाया और कहा कि “यह मेरा पोता है, और मैंने इसका नाम मुहम्मद रखा है।” लोगों ने पूछा, “यह कैसा नाम है जो आज तक हमने नहीं सुना, न अरब ने सुना न हमारे ख़ानदान ने सुना।” मुहम्मद का अर्थ है ‘जिसकी प्रशंसा की जाए’, बहुत अधिक प्रशंसा की जाए। अब्दुल मुत्तलिब ने कहा कि “मैं चाहता हूँ कि मेरा यह बच्चा संसार का सबसे प्रिय बच्चा बने, और मेरे पोते का नाम हो और वह प्रशंसा का पात्र हो। इसी लिए मैंने इसका नाम मुहम्मद रखा है।”
और सचमुच ऐसा ही हुआ। 14वीं शताब्दी में शैख़ सादी (रह.) नामक ईरान के एक बुज़ुर्ग गुज़रे हैं। उन्होंने कहा है, “बाद अज़ ख़ुदा बुज़ुर्ग तूई क़िस्सा मुख़्तसर”। अर्थात् ‘बात बस इतनी सी है कि अल्लाह के बाद सबसे बड़ा रुतबा आप (सल्ल.) ही का है। ’तो यह थी आप (सल्ल.) की पैदाइश। आप (सल्ल.) अनाथ के रूप में पैदा हुए। इस बात का उल्लेख अल्लाह ने क़ुरआन मजीद में भी किया है। सूरा-93 आयत-6-11 में फ़रमाया, “क्या ऐसा नहीं कि उसने तुम्हें अनाथ पाया तो ठिकाना दिया? और तुम्हें मार्ग से अपरिचित पाया तो मार्ग दिखाया? और तुम्हें निर्धन पाया तो समृद्ध कर दिया? अतः जो अनाथ हो उसे मत दबाना, और जो माँगता हो उसे न झिड़कना, और जो तुम्हारे रब की अनुकम्पा है, उसे बयान करते रहो।”
इस प्रकार जो बच्चा अनाथ रूप में पैदा हुआ था वह दुनिया में सारे ग़रीबों, मजबूरों और क़र्ज़दारों का संरक्षक बन गया। बाद में जब आप (सल्ल.) नबी हो गए उस समय आपने कहा, “أَنَا وَكَافِلُ الْيَتِيمِ كَهَاتَيْنِ۔۔۔” “अना व काफ़िलुल यतीमि कहातैन।” अर्थात् ‘मैं और अनाथ का संरक्षण करनेवाला इन दो उंगलियों की तरह हैं’। इसी लिए किसी शायर ने आप (सल्ल.) के बारे में कहा भी है۔
वह नबियों में रहमत लक़ब पानेवाला, मुरादें ग़रीबों की बर लानेवाला।
वह अपने पराए के ग़म खानेवाला, मुसीबत में हर एक के कमा आनेवाला।
अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने जिस प्रकार संसार के ग़रीबों, दीन-दुखियों, मजबूरों और ज़रूरत मंद लोगों की सहायता की और ऐसा करने के लिए हमारा ध्यान आकर्षित किया और दुनिया में दबे-कुचले और पिछड़े हुए लोगों को ऊँचा उठाने का काम किया, वैसा काम किसी ने नहीं किया।
आप तमाम लोग इस बात को याद रखें कि 570 ई. में अल्लाह के नबी (सल्ल.) मक्का नगर में पैदा हुए। चालीस वर्ष की आयु में अल्लाह की ओर से आपको पैग़म्बर बनाया गया और आपको तमाम पैग़म्बरों में सबसे बढ़कर दर्जा दिया गया। 13 वर्ष आप (सल्ल.) ने मक्का अल्लाह तआला के दीन (इस्लाम) का सन्देश दिया। बाक़ी 10 वर्ष आपने मदीना में गुज़ारे। और इस प्रकार 23 वर्ष के संक्षिप्त सी अवधि में आप (सल्ल.) ने इस्लाम को अरब प्रायद्वीप के एक बड़े हिस्से में परिचित करा दिया, और उसको प्रभावी कर दिया।
अल्लाह तआला फ़रमाता है—
ھُوَالَّذِيْٓ اَرْسَلَ رَسُوْلَہٗ بِالْہُدٰى وَدِيْنِ الْحَقِّ لِيُظْہِرَہٗ عَلَي الدِّيْنِ كُلِّہٖ وَكَفٰى بِاللہِ شَہِيْدًا
“हुवल्लज़ी अर-स-ल रसू-लहू बिल्हुदा व दीनिल-हक़्क़ि लियुज़हि-रहू अला दीनि कुल्लिही व कफ़ा बिल्लाहि शहीदा।”
अर्थात् “वही है जिसने अपने रसूल को मार्गदर्शन और सत्यधर्म के साथ भेजा, ताकि उसे पूरे के पूरे धर्म पर प्रभुत्व प्रदान करे और गवाह की हैसियत से अल्लाह काफ़ी है।” (क़ुरआन, सूरा-48, आयत-28)
हम और आप ही नहीं, दुनिया के तमाम बुद्धिजीवी गवाही देते हैं कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) मानवता उपकारक थे। आप (सल्ल.) ने संसार की व्यवस्था को बदल दिया। बड़े-बड़े इतिहासकार हैरान हैं 23 वर्ष की संक्षिप्त स अवधि में नबी (सल्ल.) ने किस प्रकार दुनिया को बदल दिया।
1986 ई. में माइकिल एच.हार्ट (Michael H. Hart) ने ‘द हंड्रेड’ (The 100) नामक पुस्तक लिखी The 100: A Ranking of the Most Influential Persons in History. और उन्होंने सबसे ऊपर मुहम्मद (सल्ल.) का नाम रखा और कहा— “He was the most successful person in all the great personalities of the world and He changed the world with in a very short period and He set an example and He founded He religion and He gives certain principles on the basis of which the world was changed.”
अर्थात् “वह संसार की तमाम महान विभूतियों में सबसे सफल व्यक्ति थे, जिन्होंने एक बहुत छोटी सी अवधि में दुनिया को बदल कर रख दिया और एक मिसाल क़ायम की और अपने धर्म की स्थापना की और ऐसे निश्चित मौलिक सिद्धांत दिए जिनसे दुनिया की कायापलट हो गई।”
यह श्रद्धांजलि है माइकल एच. हार्ट की जो इतिहास के एक मेधावी छात्र थे, इतिहास का बड़ी गहरी जानकारी रखते थे और नासा (The National Aeronautics and Space Administration) से भी उनका संबंध था। उन्होंने उपर्युक्त पुस्तक लिखकर मुहम्मद (सल्ल.) को श्रद्धांजलि दी है।
अल्लाह तआला मुहम्मद (सल्ल.) पर अपनी दया एवं कृपा की वर्षा करे और हम जो स्वयं को उनका अनुयायी कहते हैं, हमें भी आप (सल्ल.) का पूरा-पूरा अनुपालन करने वाला बनाए। और जिन लोगों तक अभी आप (सल्ल.) का सन्देश नहीं पहुँचा है, उन लोगों तक भी आपके सन्देश को पहुँचानेवाला बनाए।
आमीन, या रब्बल आलमीन।
व आख़िरु दअवा-न अनिल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल-आलमीन।