पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) का तीव्र विरोध
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(अल्लाह दयावान, कृपाशील के नाम से)
प्रिय दर्शको, आप सबको मेरा प्यार भरा सलाम।
दीन (धर्म) का रास्ता आसान नहीं है। जब भी लोगों ने अल्लाह के दीन को अपनाया तो उन्हें विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अल्लाह तआला क़ुरआन मजीद में कहता है—
وَلَنَبْلُوَنَّكُمْ بِشَيْءٍ مِنَ الْخَوْفِ وَالْجُوعِ وَنَقْصٍ مِنَ الْأَمْوَالِ وَالْأَنْفُسِ وَالثَّمَرَاتِ وَبَشِّرِ الصَّابِرِينَ* الَّذِينَ إِذَا أَصَابَتْهُمْ مُصِيبَةٌ قَالُوا إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ* أُولَئِكَ عَلَيْهِمْ صَلَوَاتٌ مِنْ رَبِّهِمْ وَرَحْمَةٌ وَأُولَئِكَ هُمُ الْمُهْتَدُونَ
“और हम अवश्य ही कुछ भय से, और कुछ भूख से, और कुछ जान-माल और पैदावार की कमी से तुम्हारी परीक्षा लेंगे। और धैर्य से काम लेनेवालों को शुभ-सूचना दे दो। जो लोग उस समय, जबकि उनपर कोई मुसीबत आती है, कहते हैं : निस्संदेह हम अल्लाह ही के हैं और हम उसी की ओर लौटनेवाले हैं। यही लोग हैं जिनपर उनके रब की विशेष कृपाएँ हैं और दयालुता भी, और यही लोग हैं जो सीधे मार्ग पर हैं।” (क़ुरआन, 2/155-157)
यह संसार सत्य-असत्य का युद्ध क्षेत्र है। दुनिया के पहले इंसान हज़रत आदम (अलैहि.) से लेकर आज तक यह संघर्ष जारी है, यह आज़माइश हो रही है। अतः जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए हैं, जिनको आख़िरत (परलोक) की हमेशा रहनेवाली ज़िन्दगी में सफलता प्राप्त करना है, और संसार से बहुदेववाद, पापों और अत्याचारों को समाप्त करके यहाँ पर न्याय की स्थापना करनी है, उन्हें इन सब चीज़ों को सहन करना चाहिए।
इस मामले में सबसे अधिक कड़ी परीक्षाओं से अल्लाह के पैग़म्बरों को गुज़रना पड़ा, और उनमें भी सबसे ज़्यादा हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को। पहले व्यंग्य बाणों से आप (सल्ल.) का मुक़ाबला किया गया, फिर फब्तियाँ कसी जाने लगीं, मज़ाक़ उड़ाया जाने लगा, और फिर उसके बाद जब आप (सल्ल.) के सन्देश पर जब बहुत से लोग ईमान लाने लगे, इस्लाम स्वीकार करने लगे, तो इन दुष्ट लोगों की शरारतें बढ़ती चली गईं । वे न केवल ज़बान से कष्ट देते, बल्कि शारीरिक यातना भी देते। आप (सल्ल.) का सगा चचा अबू लहब जो बहुत बड़ा सरदार था, उसने तो विरोध के मामले में सारी सीमाएँ ही पार कर दी थीं। वह आप (सल्ल.) का पड़ोसी था। आपपर गन्दगी और कचरा फेंक देता था। उसकी पत्नी उम्मे-जमील भी कम नहीं थी। वह काँटे लाकर डाल दिया करती थी, ताकि आप (सल्ल.) के पैरों में चुभ जाएँ और आप घायल हो जाएँ।
नबी (सल्ल.) की दो बेटियाँ अबू लहब के दो बेटों से ब्याही गई थीं। एक बेटे का नाम था ‘उत्बा’ और दूसरे का नाम था ‘उतैबा’। अबू लहब ने अपने बेटों से कहा, “ख़ुदा की क़सम! जब तक तुम मुहम्मद की बेटियों को तलाक़ नहीं दोगे, उस समय तक मैं तुमसे कोई संबंध न रखूँगा।” इस बात पर उसके बेटों ने आप (सल्ल.) की दोनों बेटियों को तलाक़ देकर घर से निकाल दिया और वे आप (सल्ल.) के घर आ गईं ।
इस घटना से नबी (सल्ल.) को कितना कष्ट पहुँचा होगा, सहज ही समझा जा सकता है। लेकिन नबी करीम (सल्ल.) ने कभी शराफ़त का दामन नहीं छोड़ा। जब आप (सल्ल.) बहुत अधिक परेशान हो जाते, सब्र करना मुश्किल हो जाता तो कहते, “आले मुत्तलिब, पड़ोसी के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हो?” क़ुरैश ने तो जैसे ठान लिया था कि सताना है, परेशान करना है, यहाँ तक कि मौक़ा मिले तो आपको क़त्ल कर देना है। लेकिन चूँकि बनू हाशिम एक मज़बूत ख़ानदान था, उनसे बदले का डर था, जंग छिड़ सकती थी। लेकिन सब विरोधी तरह-तरह की व्यंग्यपूर्ण बातें करते थे। कोई कहता, “क्यों मुहम्मद, आज आसमान से कोई आयत नहीं उतरी?” कोई कहता, “कहो मुहम्मद, ख़ुदा को कोई और नहीं मिला था जो तुम्हें रसूल बनाया? यहाँ तो एक से एक मालदार और उद्योगपति मौजूद हैं। क्यों नहीं उनमें से ख़ुदान ने किसी को रसूल बना दिया?” या तालियाँ पीटते और कमज़ोर लोगों को सताते, ठहाके लगाते, इशारे करते। और कभी कहते, “ओह! यह तो ज़मीन के बादशाह हैं, जल्द ही रोम के शासक और फ़ारस के शासक पर विजय प्राप्त कर लेंगे।” इस प्रकार विभिन्न परिस्थितियाँ प्रतिदिन सामने आती थीं। आज भी लोगों को समझना चाहिए कि इस प्रकार की आज़माइशें आती हैं, आती रहेंगी। हमें कभी शराफ़त के रवैये को छोड़ना नहीं चाहिए। आज तो ऐसे-ऐसे शैतान और फ़िरऔन जैसी प्रवृत्ति के लोग हैं। फ़िरऔन, शद्दाद, नमरूद और अबू जहल के रास्ते पर चलने वाले, जो झूठ बोलते हैं, बदनाम करने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोगों में बहुत से तथाकथित मुस्लिम नाम रखनेवाले लोग भी हैं, मुस्लिम शासक भी हैं, जो झूठे आरोप लगाकर अल्लाह के नेक बन्दों को फाँसी के फन्दे तक पहुँचा देते हैं। और यह सब वे लोकतंत्र के नाम पर करते हैं। आख़िरत में कैसी सख़्त यातना होगी उनके लिए, इसका उन्हें अभी अन्दाज़ा नहीं है।
तो मेरे दोस्तो, भाइयो और बहनो, अल्लाह से आज़माइश से पनाह माँगिए, लेकिन अगर अल्लाह के रास्ते में आज़माइश आ जाए तो हरगिज़ घबराएँ नहीं। यह नबी करीम (सल्ल.) की सुन्नत है। ‘सुन्नत’ का अर्थ केवल यह नहीं है कि आप दाहिने हाथ से खाना खाएँ, या तीन घूँट में पानी पिएँ, बल्कि सुन्नत का मतलब नबी (सल्ल.) की पूरा-पूरा अनुपालन करना है। किसी शायर ने कहा है—
चला जाता हूँ हँसता-खेलता मौजे-हवादिस से
अगर आसानियाँ हों, ज़िन्दगी दुशवार हो जाए
इधर आ रक़ीब तुझको मैं ज़रा गले लगा लूँ
मेरा इश्क़ बेमज़ा था तेरी दुश्मनी से पहले
यह अल्लाह से प्रेम है, अल्लाह के रसूल (सल्ल.) से प्रेम है, यह इंसानों की मुहब्बत है, यह समाज सेवा की भावना है। इसके लिए हर तरह की मुश्किलें बरदाश्त करने के लिए हमको तैयार रहना चाहिए। अल्लाह तआला हमें और आपके सत्कर्म करने के सुअवसर प्रदान करे।
व आख़िरु दअवा-न अनिल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल-आलमीन।