नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने एक मुस्लिम संगठन द्वारा दायर याचिका पर शुक्रवार को केंद्र और छह राज्यों से जवाब मांगा। याचिका में अंतर-धार्मिक विवाह के कारण धर्मांतरण को विनियमित करने वाले राज्यों के कानूनों को चुनौती देने वाले 21 मामलों को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की गई है।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने अधिवक्ता एमआर शमशाद के माध्यम से दायर जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर नोटिस जारी किया और अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को जवाब दाखिल करने को कहा।
मुस्लिम संगठन ने गुजरात उच्च न्यायालय में लंबित तीन याचिकाओं, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पांच, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में तीन, झारखंड उच्च न्यायालय में तीन, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में छह और कर्नाटक उच्च न्यायालय में लंबित एक याचिका को स्थानांतरित करने की मांग की है, जिनमें संबद्ध राज्यों के कानूनों को चुनौती दी गई है।
पीठ ने कहा, ‘‘इन याचिकाओं में नोटिस जारी करें, जिनमें स्थानांतरण याचिका सहित अब तक कोई नोटिस जारी नहीं किया गया है।’’
अदालत याचिकाओं के एक समूह की सुनवाई कर रही है, जिसमें उन दलीलों को भी शामिल किया गया है, जिनमें प्रलोभन या बल प्रयोग द्वारा कथित धर्मांतरण पर सवाल उठाया गया है और राज्यों के धर्मांतरण रोधी कानूनों की वैधता को चुनौती दी है।
इसके अलावा, गुजरात और मध्य प्रदेश द्वारा दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें संबंधित उच्च न्यायालयों के अंतरिम आदेशों को चुनौती दी गई है। इन आदेशों के तहत धर्मांतरण पर राज्यों के कानूनों के कुछ प्रावधानों पर रोक लगा दी गई थी।
अदालत में अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने कहा कि पिछली सुनवाई में कई पक्षों ने अतिरिक्त हलफनामे में दी गई दलीलों पर आपत्ति जताई थी और इसलिए वह इसे वापस ले रहे हैं।
एक पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि उपाध्याय ने न केवल अतिरिक्त हलफनामे में, बल्कि रिट याचिकाओं में भी आपत्तिजनक दलीलें दी हैं।
पीठ ने दातार से कहा, “आप यहां अदालत के एक अधिकारी के रूप में उपस्थित हो रहे हैं। इसलिए, सुनिश्चित करें कि याचिका में भी ऐसा कोई बयान नहीं दिया गया है।”
पीठ ने कहा कि याचिकाओं में अगर एक जैसे सवाल उठाए गए हैं तो अदालत याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करेगी।
पीठ ने कहा कि उसने शुक्रवार को अंतिम दलीलें सुननी शुरू नहीं कीं क्योंकि कई याचिकाओं में नोटिस जारी नहीं किए गए थे और सभी पक्षों के जवाब रिकॉर्ड में आ जाने के बाद मामले की सुनवाई शुरू होगी। पीठ ने इसके साथ ही सुनवाई को तीन सप्ताह बाद के लिए निर्धारित कर दिया।
(इनपुट पीटीआई-भाषा)