नई दिल्ली: भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव किए हैं, जिसके तहत 16 अक्टूबर से 15 मुस्लिम बहुल देशों को हलाल-प्रमाणित मांस और मांस उत्पादों का निर्यात शुरू करने का फैसला किया है. सरकार का यह कदम काफी दिलचस्प और बहस को जन्म देता है, क्योंकि देश के भीतर हलाल प्रमाणन को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है. कुछ साल पहले हलाल मांस को लेकर अक्सर टीवी डिबेट देखने को मिलते थे. फिलहाल, एक बार यह मुद्दा फिर सामने आ गया है. अब भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन वस्तुओं के निर्यात को सक्रिय रूप से सुविधाजनक बना रही है.
एबीपी की खबर के मुताबिक़, विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) ने एक अधिसूचना जारी की है, जिसमें नए दिशा-निर्देश और शर्तें बताई गई हैं, जिनके तहत हलाल मांस के निर्यात की अनुमति होगी. इन उत्पादों को ‘भारत अनुरूपता मूल्यांकन योजना (I-CAS) हलाल’ प्रमाणन का अनुपालन करना होगा, जिसकी देखरेख भारतीय गुणवत्ता परिषद (QCI) द्वारा की जाती है. इन्हें 15 मुस्लिम बहुल देशों को भेजने के लिए निर्धारित किया गया है.
डीजीएफटी द्वारा हलाल मांस निर्यात के लिए पहचाने गए 15 देशों में बहरीन, ईरान, इराक, कुवैत, मलेशिया, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, जॉर्डन, ओमान, फिलीपींस, कतर, सऊदी अरब, सिंगापुर, तुर्की और यूएई शामिल हैं. ये देश हलाल उत्पादों के लिए प्रमुख बाजार हैं, क्योंकि इनमें मुस्लिम आबादी अधिक है और हलाल-प्रमाणित मांस की मांग अधिक है.
डीजीएफटी की अधिसूचना में यह स्पष्ट किया गया है कि निर्यात की खेप इन देशों में खरीदार तक पहुंचने के बाद निर्यातक को आई-सीएएस हलाल योजना के तहत जारी वैध हलाल प्रमाणन प्रदान करना होगा. नीति में बदलाव से वैश्विक बाजार में भारतीय हलाल उत्पादों की विश्वसनीयता बढ़ने की उम्मीद है, जिसके आने वाले वर्षों में तेजी से बढ़ने का अनुमान है. राजनीतिक शोर के बावजूद, भारत में हलाल उद्योग लगातार बढ़ रहा है. बाजार के अनुमानों के अनुसार, वैश्विक हलाल खाद्य बाजार 2021 में 1,978 बिलियन डॉलर के मूल्य पर पहुंच गया और 2027 तक लगभग दोगुना होने की उम्मीद है.