‘मस्जिदों के सर्वे पर लगाएं रोक, नहीं तो मुल्क के हालात हो जाएंगे खराब…’: मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी

बदायूं: उत्तर प्रदेश के जिला संभल में शाही जामा मस्जिद के बाद बदायूं जामा मस्जिद पर विवाद जारी है. इस मामले पर शनिवार को सुनवाई हुई थी. अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 3 दिसंबर 2024 की तारीख तय की है. इस बीच, ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के नेशनल अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने बदायूं जामा मस्जिद मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है.

उन्होंने कहा, “भारत के सूफी विचारक बादशाह शमसुद्दीन अल्तमस ने जब बदायूं का दौरा किया, तो उन्होंने यहां पर अल्लाह की इबादत के लिए एक मस्जिद बनाने का फैसला लिया. इसके तहत, 1223 में उन्होंने शम्सी जामा मस्जिद बनवाई थी. यह मस्जिद शुरू से ही इस इलाके में एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल के रूप में स्थापित हुई और उसका नाम शम्सी जामा मस्जिद पड़ा. यह मस्जिद आज भी बदायूं में एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में जानी जाती है.”

ज़ी सलाम की खबर के अनुसार, मौलाना ने आगे कहा, “1856 तक जो ब्रिटिश काल का इतिहास था, उस समय तक शम्सी जामा मस्जिद बदायूं में दर्ज थी. उस समय से लेकर अब तक इस मस्जिद के आसपास किसी भी प्रकार का मंदिर या मूर्तियों का कोई भी सबूत नहीं मिला है. जो बयान और दावे इस समय किए जा रहे हैं कि यहां मंदिर था या मूर्तियां पाई गई हैं, वे पूरी तरह से गलत और असत्य हैं. ये दावे इतिहास के उलट और फैक्ट्स के खिलाफ हैं और यह बेहद दुख की बात है कि हिंदुस्तान, जो गंगा जमुनी तहज़ीब के लिए मशहूर है, यहां अब सांप्रदायिक मुद्दे उठाए जा रहे हैं. हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की यह मजबूत बुनियाद अब खतरे में दिखाई दे रही है. कुछ लोग जानबूझकर माहौल को खराब करने की कोशिश कर रहे हैं और मुल्क में मजहबी तनाव पैदा करने की दिशा में काम कर रहे हैं. इसी तरह के मुद्दों को लेकर बदायूं में पहले भी सांप्रदायिक मुद्दे हो चुके हैं, जैसे कि शम्सी जामा मस्जिद के सर्वे के नाम पर संभल में एक दंगा हुआ, इसमें कई लोग मारे गए.”

उन्होंने आगे कहा, “धार्मिक नफरत फैलाने वाले तत्‍व अब फिर से देश का माहौल खराब करने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए मुझे पीएम नरेंद्र मोदी से एक खास अपील करनी है कि वह इस मुद्दे में हस्तक्षेप करें. जहां-जहां भी मस्जिदों के सर्वे हो रहे हैं, वहां मंदिर या मूर्तियां ढूंढ़ने की कोशिश की जा रही है, उसे फौरन रोक दिया जाए. इस तरह के विवादों को बढ़ावा देने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाए. अगर इसे फौरन नहीं रोका गया, तो यह मुल्क के हालात को और भी खराब कर सकता है.”

दरअसल, बदायूं जामा मस्जिद को लेकर मामला 2022 में तब शुरू हुआ जब अखिल भारत हिंदू महासभा के संयोजक मुकेश पटेल ने कोर्ट में दावा किया कि शम्सी मस्जिद की जगह पहले नीलकंठ महादेव का मंदिर था. हिन्दू पक्ष ने कोर्ट में याचिका दायर कर यहां पूजा-अर्चना करने की अनुमति मांगी. उन्होंने दावा किया है कि मस्जिद की मौजूदा स्ट्रक्चर नीलकंठ महादेव के प्राचीन मंदिर को ध्वस्त करके बनाई गई है.

वहीं, मुस्लिम पक्ष हिन्दू पक्ष के इस दावे को खारिज कर दिया. मस्जिद के इंतजामिया कमेटी ने कहा कि शम्सी जामा मस्जिद करीब 840 साल पुरानी है. इस मस्जिद का निर्माण शमसुद्दीन अल्तमस ने करवाया था और यहां मंदिर का कोई अस्तित्व नहीं है.

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