बाबरी मस्जिद का इतिहास, बाबर से मोदी तक, जानिए

नई दिल्ली: बाबरी मस्जिद को शहीद करने और रामलला के जन्मस्थान से लेकर मंदिर के निर्माण तक, इस पूरे इतिहास में अनगिनत घटनाएं हुई हैं. यह वर्ष 1526 था जब बाबर ने भारत पर हमला किया और पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराया, जिससे मुगल साम्राज्य का आगाज़ हुआ.

उसके एक सेनापति ने पूर्वोत्तर भारत पर विजय की शुरुआत तब की जब उसने 1528 में अयोध्या में एक विशाल मस्जिद बनवाई और बाबर को श्रद्धांजलि देने के लिए इसका नाम बाबरी मस्जिद रखा। इस मस्जिद में हिंदुओं के लिए मस्जिद के बाहर लेकिन मस्जिद परिसर के भीतर पूजा करने की व्यवस्था भी की।

यहां हम विवाद और लंबी मुकदमेबाजी की घटनाओं का विवरण दे रहे हैं, जो 22 जनवरी, 2024 को प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति में अयोध्या राम मंदिर के उद्घाटन पर समापन तक पहुंच जायेगी.

1528: बाबर ने यहां एक मस्जिद बनवाई जिसका नाम बाबरी मस्जिद रखा गया.

1853: हिंदुओं ने आरोप लगाया कि राम मंदिर को तोड़कर यह मस्जिद बनाई गई थी. इस मुद्दे पर पहली हिंसा हिंदुओं और मुसलमानों के बीच हुई थी.

1859: ब्रिटिश सरकार ने विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुसलमानों और हिंदुओं को अलग-अलग पूजा करने की अनुमति दी और बैरिकेड लगा दिया.

1885: मुकदमा पहली बार अदालत में पहुंचा. महंत राघोबर दास ने बाबरी मस्जिद के बगल में राम मंदिर बनाने की अनुमति के लिए फैजाबाद अदालत में अपील दायर की.

1959: निर्मोही अखाड़े ने विवादित जमीन को लेकर कोर्ट में ट्रांसफर याचिका दायर की.

1961: यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ने भी बाबरी मस्जिद पर कब्जे के लिए याचिका दायर की.

1961: यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ने भी बाबरी मस्जिद पर क़ब्ज़ा की याचिका दायर की.

23 दिसंबर, 1949: लगभग 50 हिंदुओं ने कथित तौर पर मस्जिद के केंद्र में राम की एक मूर्ति रख दी, जिसके बाद हिंदुओं ने उस स्थान पर नियमित पूजा शुरू कर दी, मुसलमानों ने प्रार्थना करना बंद कर दिया.

16 जनवरी 1950: गोपाल सिंह विशारद ने रामलला की पूजा की विशेष अनुमति के लिए फैजाबाद अदालत में अपील दायर की.

5 दिसंबर, 1950: महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू पूजा जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राम की मूर्ति रखने के लिए मुकदमा दायर किया. इस मस्जिद का नाम ‘ढांचा’ रखा गया.

17 दिसंबर, 1959: निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल को स्थानांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया.

18 दिसंबर, 1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के स्वामित्व के लिए मुकदमा दायर किया.

1984: विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने बाबरी मस्जिद का ताला खोलने और राम जन्म स्थान को स्वायत्त बनाने और एक विशाल मंदिर बनाने के लिए एक अभियान शुरू किया. एक कमेटी बनाई गई.

1 फरवरी, 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने हिंदुओं को विवादित स्थल पर पूजा करने की अनुमति दी. ताले दोबारा खोले गए. नाराज मुसलमानों ने विरोध स्वरूप बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया.

जून 1989: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने एक नया मंदिर आंदोलन शुरू करते हुए वीएचपी को औपचारिक समर्थन देना शुरू किया.

1 जुलाई 1989: भगवान रामलला विराजमान के खिलाफ पांचवां मामला दर्ज किया गया.

9 नवंबर 1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के पास शिलान्यास की इजाजत दी.

25 सितंबर, 1990: भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिससे देश भर में कई स्थानों पर सांप्रदायिक दंगे हुए.

नवंबर 1990: बिहार के समस्तीपुर में आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसके बाद भाजपा ने प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया.

अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आसपास की 2.77 एकड़ ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया.

6 दिसंबर 1992: हजारों कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया. इसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए. एक अस्थायी राम मंदिर बनाया गया था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का वादा किया था.

16 दिसंबर, 1992: मस्जिद के विध्वंस के लिए जिम्मेदार परिस्थितियों की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन किया गया.

1994: बाबरी मस्जिद विध्वंस मामला इलाहबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में शुरू हुआ.

4 मई, 2001: विशेष न्यायाधीश एसके शुक्ला ने लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत 13 भाजपा नेताओं को साजिश के आरोप से बरी कर दिया.

जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों के साथ बातचीत करने के लिए अपने कार्यालय में अयोध्या विभाग की शुरुआत की.

अप्रैल 2002: उच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने अयोध्या में विवादित स्थल के स्वामित्व पर सुनवाई शुरू की.

5 मार्च, 2003: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पुरातत्व विभाग को मंदिर या मस्जिद के साक्ष्य खोजने के लिए खुदाई करने का आदेश दिया.

अगस्त 2003: इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने दावा किया है कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष मिले हैं. इसे लेकर मुसलमानों में अलग-अलग राय थी और इस रिपोर्ट को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने चुनौती दी थी.

सितंबर 2003: एक अदालत ने फैसला सुनाया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए.

जुलाई 2009: अपने गठन के 17 साल बाद लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी.

26 जुलाई 2010: मामले की सुनवाई कर रही इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया और सभी पक्षों को आपसी सहमति से मामला सुलझाने की सलाह दी. लेकिन कोई भी दल आगे नहीं आया.

28 सितंबर, 2010: सुप्रीम कोर्ट ने विवादास्पद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट को फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज कर फैसले का रास्ता साफ कर दिया.

30 सितंबर 2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने फैसला सुनाया. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया, एक हिस्सा राम मंदिर को, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड को और तीसरा निर्मोही अखाड़े को.

9 मई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी.

जुलाई 2016: बाबरी मस्जिद मामले के एक पक्षकार, अनुभवी मुद्दई हाशिम अंसारी का निधन हो गया.

21 मार्च 2017: सुप्रीम कोर्ट ने आपसी समझौते से विवाद सुलझाने को कहा.

19 अप्रैल, 2017: सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत कई बीजेपी और आरएसएस नेताओं के खिलाफ आपराधिक मामला चलाने का आदेश दिया.

16 नवंबर 2017: हिंदू गुरु श्री श्री रविशंकर ने मामले को सुलझाने की कोशिश शुरू की और इस क्रम में उन्होंने कई पक्षों से मुलाकात की.

फरवरी 2018: नियमित सुनवाई की अपील खारिज कर दी गई. 8 फरवरी को सुन्नी वक्फ बोर्ड का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने मामले पर औपचारिक सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट से अपील की, लेकिन पीठ ने अपील खारिज कर दी.

27 सितंबर 2018: ‘मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं’ मामले को बड़ी बेंच को भेजने से इनकार. 1994 के इस्माइल फारूकी बनाम भारत संघ मामले में, अदालत ने फैसला सुनाया था कि ‘एक मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है’. इसे चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी लेकिन यह भी साफ किया कि जमीन पर कब्जा लेने का फैसला एक खास स्थिति में दिया गया है और इससे किसी अन्य मामले पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

29 अक्टूबर 2018: सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जल्द सुनवाई की याचिका खारिज कर दी और मामले को जनवरी 2019 तक के लिए स्थगित कर दिया.

8 मार्च, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा. पैनल को 8 सप्ताह के भीतर कार्यवाही समाप्त करने के लिए कहा गया था.

अगस्त 2019: मध्यस्थता पैनल समाधान खोजने में विफल रहा.

16 अक्टूबर, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई पूरी की और फैसला सुरक्षित रखा. 1 अगस्त को मध्यस्थता पैनल ने रिपोर्ट सौंपी: 2 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल मामले को सुलझाने में विफल रहा है और इस मामले की दैनिक सुनवाई 6 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में शुरू हुई.

9 नवंबर, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि बाबरी मस्जिद स्थल पर राम मंदिर के निर्माण के लिए जमीन एक ट्रस्ट को सौंपी जानी चाहिए और सरकार को ट्रस्ट बनाना चाहिए. साथ ही विकल्प के तौर पर सुन्नी वक्फ बोर्ड को किसी अन्य स्थान पर मस्जिद निर्माण के लिए जमीन दी जाए.

अगस्त 2019: केंद्र सरकार ने राम मंदिर ट्रस्ट की घोषणा की.

24 फरवरी, 2020: उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अयोध्या की सोहावल तहसील के धनीपुर गांव में मस्जिद के निर्माण के लिए राज्य सरकार द्वारा दी गई पांच एकड़ जमीन स्वीकार कर ली.

5 अगस्त 2020: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में प्रस्तावित राम मंदिर की आधारशिला रखी. ट्रस्ट का कहना है कि मंदिर छह महीने या एक साल में बनकर तैयार हो जाएगा.

25 अक्टूबर 2023: राम जन्मभूमि ट्रस्ट ने पीएम मोदी को राम मंदिर के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया.

22 जनवरी 2024: राम मंदिर का उद्घाटन.

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