याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट के वकील और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने CJI एन वी रमना से जल्द सुनवाई की मांग की है. उपाध्याय ने याचिका में ऐसे राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग की है, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत प्रत्याशियों के आपराधिक इतिहास का ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया है.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में अगले कुछ हफ्तों का ही वक्त बचा है. उसके पहले सुप्रीम कोर्ट एक अहम चुनावी याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा ना करने पर राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की याचिका पर जल्द सुनवाई करने को तैयार हो गया. शीर्ष अदालत ने कहा कि वो इस मामले की जल्द सुनवाई के लिए एक तारीख देगा. इस मामले में याचिकाकर्ता बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने CJI एन वी रमना से जल्द सुनवाई की मांग की है.
CJI ने पूछा कि ‘क्या हम आपराधिक इतिहास वाले लोगों को नामांकन दाखिल करने से रोक सकते हैं?’ इसपर उपाध्याय ने कहा कि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला है तो CJI ने कहा कि सुनवाई के लिए वो एक तारीख देंगे.
बता दें कि उपाध्याय ने याचिका में ऐसे राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग की है, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत प्रत्याशियों के आपराधिक इतिहास का ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया है. याचिका में समाजवादी पार्टी के कैराना निर्वाचन क्षेत्र से नाहिद हसन को मैदान में उतारने का हवाला दिया गया है और समाजवादी पार्टी का पंजीकरण रद्द करने की मांग की गई है.
याचिका में कहा गया है कि गैंगस्टर नाहिद हसन, धोखाधड़ी और जबरन वसूली के मामलों का सामना कर रहा है, वो कैराना से हिंदू पलायन के पीछे मास्टरमाइंड भी है. समाजवादी पार्टी ने न तो उसके आपराधिक रिकॉर्ड को इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और सोशल मीडिया में प्रकाशित किया है, न ही उसके चयन का कारण बताया है, जो फरवरी 2020 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार अनिवार्य है.
इसमें यह भी कहा गया है कि उन राजनीतिक दलों के अध्यक्ष के खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला दर्ज किया जाए जो पिछले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन करते हैं. याचिका में कहा गया है कि सुनिश्चित करें कि प्रत्येक राजनीतिक दल प्रत्येक उम्मीदवार के आपराधिक मामलों के विवरण के साथ-साथ इस तरह के चयन के कारण को अपनी आधिकारिक वेबसाइट के होम पेज पर 48 घंटे के भीतर बड़े अक्षरों में प्रकाशित करें.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2021 में बिहार विधानसभा में अपनी आधिकारिक वेबसाइटों के साथ-साथ समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का ब्योरा ना देने पर आठ राजनीतिक दलों पर जुर्माना लगाया था.
(इनपुट) एनडीटीवी