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बहराइच हिंसा: रामगोपाल की हत्या केस में सरफराज को फांसी, तो अखलाक के कातिलों को सजा नहीं.. उठ रहे हैं सवाल

गोपाल मिश्रा की हत्या केस में आरोपियों को फांसी और उम्रकैद की सजा मिलने के बाद अखलाक के कातिलों और जयपुर- मुंबई सेंट्रल सुपरफास्ट एक्सप्रेस में मुस्लिम यात्रियों की हत्या करने वाले पूर्व कांस्टेबल चेतन सिंह चौधरी को जुर्म के आधार पर सजा नहीं मिलने पर सवाल उठ रहे हैं.

Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश के बहराइच के महाराजगंज कस्बे में पिछले साल हुई हिंसा के मामले में अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है. हिंसा के दौरान गोली लगने से हुई रामगोपाल मिश्रा की हत्या के मामले में अदालत ने सरफराज को फांसी की सजा सुनाई है. वहीं अन्य नौ लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. अदालत के फैसले के बाद सोशल मीडिया में मॉब लिंचिंग में मारे गए अखलाक के सभी 18 कातिलों के जमानत पर होने पर सवाल उठ रहे हैं.

इन्हें मिली फांसी और उम्रकैद की सजा

अदालत ने रामगोपाल मिश्रा की हत्या के केस में सरफराज को फांसी की सजा सुनाई. वहीं फहीम, सैफ अली, जावेद खान, अब्दुल हमीद, तालिब उर्फ सबलू, ईसान, सुएब खान, ननकऊ और मारूफ को उम्रकैद की सजा सुनाई है.

क्या है पूरा मामला?

बता दें कि बहराइच के महसी में दुर्गा विसर्जन यात्रा निकल रही थी. इस दौरान गोपाल मिश्रा मुस्लिम के घर के छत पर भगवा झंडा लगा रहा था. साथ ही इस धार्मिक जुलूस में भड़काऊ नारेबाजी विवादित गाने बजाए जाए जाने पर हिंसा शुरू हुई थी. इस हिंसा के दौरान गोली लगने से रामगोपाल मिश्रा की मौत हो गई थी.

अखलाक के कातिलों के जमानत पर उठ रहे हैं सवाल

गोपाल मिश्रा की हत्या केस में आरोपियों को फांसी और उम्रकैद की सजा मिलने के बाद अखलाक के कातिलों और जयपुरमुंबई सेंट्रल सुपरफास्ट एक्सप्रेस में मुस्लिम यात्रियों की हत्या करने वाले पूर्व कांस्टेबल चेतन सिंह चौधरी को जुर्म के आधार पर सजा नहीं मिलने पर सवाल उठ रहे हैं.

AIMIM नेता ने उठाए सवाल

AIMIM दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष शोएब जमई ने एक्स पर लिखा कि चंद महीने पहले बहराइच हिंसा के दोषियों को उम्र कैद, मगर कई साल पहले अखलाक हत्याकांड के दोषियों का मुकदमा वापस लेने की अर्जी. ट्रेन में मुस्लिम नाम पूछ कर गोली मारने वाले चेतन को मानसिक रोगी घोषित करने की कोशिश, तो 25 साल पहले बिलकिस बानो के बलात्कारियों को बेल और स्वागत.

सोशल मीडिया पर उठे गंभीर सवाल

प्रो. इलाहाबादी नामक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा कि बहराइच हिंसा में संवैधानिक कोर्ट द्वारा दोषी सरफराज को फांसी की सजा, 9 को उम्रकैद की सजा मिली. हम लोगों को पूरा विश्वास है कि मरहूम अखलाक उनके बेटे और महिलाओं पर पर हमला करने वालों को जल्द उम्र कैद होगी. साथ ही ट्रेन में जिस पुलिस वाले ने मुस्लिम युवकों को गोली मारी थी उसको फांसी होगी.

पत्रकार वसीम अकरम त्यागी ने कहा कि इंसान की जान लेने वाला गुनहगार बचना नहीं चाहिए. उसे सज़ा मिलनी ही चाहिए. लेकिन क्या कारण है कि महज एक साल में गोपाल मिश्रा हत्याकांड के आरोपितों को सजा हो जाती है और अखलाक हत्याकांड के आरोपितों को दस साल बाद भी सजा नहीं हो पाई? आखिर क्या कारण है कि यूपी सरकार अखलाक हत्याकांड के आरोपितों से आरोप वापस लेने के अन्यायपूर्ण कदम उठाती है?

न्याय प्रक्रिया का दोहरा चरित्र बताया

श्रवण यादव नामक यूजर ने लिखा कि बहराइच में पिछले साल दुर्गा पूजा पर हुए दंगे में मुस्लिम घर पर भगवा फहराने पर रामगोपाल मिश्रा की हत्या कर दी गई थी. इस हत्या में अब फैसला आया है. रामगोपाल मिश्रा को गोली मारने वाले सरफराज को फांसी की सजा दी गई.

वहीं दादरी उत्तर प्रदेश के रहने वाले अखलाक की 2015 में पीट पीट कर हत्या कर दी गई थी. हत्यारे जमानत पर बाहर घुम रहे हैं. इस हत्याकांड में स्थानीय बीजेपी नेता का बेटा भी शामिल है. अब उत्तर प्रदेश सरकार ने इन हत्या के आरोपियों पर से केस वापस लेने की अर्जी कोर्ट में डाली है. क्या यह न्याय प्रक्रिया का दोहरा चरित्र नहीं है? क्या न्याय अब धर्म और जाति देख कर किया जाएगा? जब न्यायप्रक्रिया इस तरह काम करेगी तो फिर न्यायप्रक्रिया पर कैसे भरोसा होगा?

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