उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से किस्मत आजमा रहे पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉ अयूब ने मंगलवार को ‘धर्मनिरपेक्ष’ और मुस्लिम वोटों के बंटवारे के लिए सपा, बसपा और कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि अगर तीनों एक साथ आते तो 90 प्रतिशत मतों का विभाजन नहीं होता.
यूनाइटेड डेमोक्रेटिक अलायंस (यूडीए) के बैनर तले मौलाना अमीर रशदी के नेतृत्व वाली नेशनल उलमा काउंसिल, कुर्मी नेता डॉ बीएल वर्मा के नेतृत्व वाली किसान पार्टी, श्याम सुंदर चौरसिया की जनहित किसान पार्टी, मोहम्मद शमीम के नेतृत्व वाली नागरिक एकता पार्टी जैसी छोटी पार्टियों ने एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतरे.
डॉ अयूब की पीस पार्टी यूडीए के हिस्से के रूप में 50 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
मुस्लिम वोटों के बंटवारे और पीस पार्टी, राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM जैसी पार्टियों के कारण बीजेपी को इससे फायदा होने पर डॉ अयूब ने कहा कि पीस पार्टी या ओवैसी की पार्टी नहीं है जो बीजेपी की जीत के लिए जिम्मेदार है, बल्कि कांग्रेस है, सपा और बसपा मिलकर भगवा पार्टी की जीत सुनिश्चित करते हैं.
‘धर्मनिरपेक्ष वोटों के साथ, ये दल मुस्लिम वोटों को भी विभाजित करते हैं. अगर वे (सपा, बसपा, कांग्रेस) साथ होते तो इस 90 फीसदी वोटों का बंटवारा नहीं होता.
पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के बरहालगंज के पिछड़े मुस्लिम समुदाय के जाने-माने सर्जन डॉ अयूब ने 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान पीस पार्टी की स्थापना की और उत्तर प्रदेश में 2012 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी के चार विधायक थे.
संत कबीरनगर जिले के खलीलाबाद विधानसभा क्षेत्र से खुद डॉ. अयूब ने चुनाव जीता था.
बाद में उनकी पार्टी टूट गई और तीन विधायकों ने डॉ. अयूब को विधायक दल के नेता पद से हटाकर रायबरेली के अखिलेश सिंह को अपना नेता बना लिया.
2017 में डॉक्टर अयूब एक भी सीट नहीं जीत सके थे.
पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में, डॉ अयूब ने अपनी पार्टी में विभाजन के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘2012 में पीस पार्टी के उदय से सपा, बसपा, कांग्रेस और भाजपा डर गए, यह बिल्कुल सच है. इन दलों ने सोचा कि अगर इस (पीस पार्टी) को नहीं रोका गया तो उनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा. अगर सेक्युलर और मुस्लिम वोट सब एक हो जाएं तो उनका वजूद खत्म हो जाएगा.
डॉ. अयूब ने कहा कि भाजपा को मुसलमानों और सबसे पिछड़े, दलितों और दलितों के भविष्य के लिए सत्ता में आने से रोकना उनकी प्राथमिकता है और कहा कि भाजपा न केवल मुसलमानों की ‘दुश्मन’ है बल्कि पिछड़ों और दलितों की भी बड़ी दुश्मन है.
विधानसभा चुनाव परिणामों के बारे में डॉ अयूब ने दावा किया कि इस बार उनका गठबंधन मजबूत स्थिति में है लेकिन किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा और त्रिशंकु विधानसभा होगी.
यह पूछे जाने पर कि क्या वह जरूरत पड़ने पर भाजपा का समर्थन करेंगे, उन्होंने कहा कि वे किसी भी कीमत पर भाजपा को समर्थन नहीं देंगे, क्योंकि हम दुश्मन के साथ नहीं जा सकते.
विकास के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि अगर काम और विकास के परिणाम मिलते तो भाजपा कभी सरकार नहीं बनाती.
उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा केवल अफवाहें और नफरत फैलाती है, और 2014, 2017 और 2019 में लोगों को गुमराह किया था, लेकिन अब लोग वास्तविकता को समझ गए हैं.
इस चुनाव में मुसलमान क्या सोच रहे हैं, इस पर उन्होंने कहा कि समुदाय अपने भविष्य के बारे में सोच रहा है.
उन्होंने कहा, ‘मुसलमानों के साथ किसी ने न्याय नहीं किया और सभी सरकारों ने उनका शोषण किया. समुदाय समझ गया है कि उसे अपने नेतृत्व में राजनीति करनी चाहिए.’
यह पूछे जाने पर कि क्या मुसलमानों का झुकाव समाजवादी पार्टी की ओर है, उन्होंने कहा कि 2012 में सपा ने मुसलमानों को 18 प्रतिशत आरक्षण देने की बात की थी और जब सरकार बनी तो यादवों को चपरासी से एसडीएम नियुक्त किया गया लेकिन मुसलमानों को उनका हक नहीं दिया गया.
उन्होंने कहा कि ‘उनकी कथनी और करनी में अंतर है. लेकिन हमारे शब्दों और कर्मों में कोई अंतर नहीं है.’
बता दें कि 2017 में पीस पार्टी ने 68 सीटों पर चुनाव लड़ा और 1.56 फीसदी वोट हासिल किए, हालांकि उसका कोई भी उम्मीदवार नहीं जीता. 2012 में उसने 208 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे न केवल 4.54 प्रतिशत वोट मिले बल्कि उसके चार विधायक भी थे.
(द डेली सियासत इनपुट के साथ)