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सोशल मीडिया ही एक विकल्प है जिससे जनता की उम्मीदें जुड़ी हुई हैं, सरकार अपने प्रस्तावों पर विचार करे: वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया

नई दिल्ली: वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया ने इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय को अपने प्रस्तावों और सिफारिशों में कहा कि मंत्रालय को संविधान में निहित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए अपने प्रस्तावों पर विचार करना चाहिए.

वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सैयद कासिम रसूल इलयास ने एक प्रेस बयान में कहा कि मंत्रालय ने 6 जून को सूचना प्रौद्योगिकी के संबंध में डिजिटल मीडिया के नियंत्रण के लिए 30 दिनों के भीतर कुछ नए नियमों पर जनता की राय मांगी है, ताकि डिजिटल मीडिया को रेगुलेट किया जा सके.

ऐसे समय में जब मुख्यधारा का मीडिया सरकार की गोद में बैठ गया है, सोशल मीडिया ही एक विकल्प है जिससे जनता की उम्मीदें जुड़ी हुई हैं, अगर इन आवाजों को भी आईटी नियमों ने दबा दिया, तो अभिव्यक्ति और विचार की स्वतंत्रता का तो जनाज़ा ही निकल जाएगा.

डॉ. इलयास ने कहा कि वेलफेयर पार्टी के नीति हस्तक्षेप विभाग (Department of Policy intervention) ने प्रस्तावों पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद कहा कि मंत्रालय का मसौदा संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता के मौलिक अधिकार के सीधे टकराता है और जनता के हितों पर चोट करता है.

उन्होंने कहा कि मंत्रालय के मसौदा प्रस्तावों में से एक इंटरनेट पर समाचार या संदेश का स्रोत बताने से संबंधित है. इस मुद्दे पर इस लिए भी चर्चा नहीं की जा सकती है कि यह विषय सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.

दूसरे, यह इंटरनेट पर विभिन्न ऐप द्वारा दिए गए उस आश्वासन से भी टकराता है कि इस ऐप के उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता सुरक्षित है. इससे भक्तों को तो छूट मिल जाएगी, लेकिन असहमति रखने वालों पर नकेल कस दी जाएगी.

उन्होंने कहा कि इन विनियमों से सरकार को इंटरनेट मीडिया को सेंसर करने का अधिकार भी मिल जाता है जिसके तहत वह उसकी सामग्री को ब्लॉक कर सकती है. सरकार को ये सभी शक्तियां संसद में बिना किसी बहस मिल जाती हैं.

उन्होंने कहा कि इन विनियमों के अनुसार, सरकार ने पीड़िता को अदालत के विकल्प के रूप में फैसला सुनाने के लिए एक अपीलीय समिति का भी प्रस्ताव रखा है, जो शिकायत अधिकारी के फैसले को भी पलट सकती है. मानो न्याय के कानूनी रास्ते भी बंद कर दिए गए हैं.

उन्होंने कहा, ‘समय से पहले सेंसरशिप के बाद, इंटरनेट पर हमारे सामने आने वाली सामग्री विकृत हो जाएगी.’ चूंकि इंटरनेट सामग्री को विश्व स्तर पर अपलोड किया जाता है और जनता के लिए उपलब्ध कराया जाता है, इन विनियमों के लिए यह आवश्यक होगा कि इंटरनेट कंपनियां भारत के लिए एक अलग स्थान बनाएं यदि वे कानूनी रूप से अपनी रक्षा करना चाहते हैं.

आशंका जताई जा रही है कि इंटरनेट का बंटवारा हो जाएगा, जिससे न सिर्फ विश्व की अर्थव्यवस्था बल्कि यूजर्स के हितों को भी नुकसान होगा.

डॉ. इलयास ने कहा कि हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय में ट्यूटर द्वारा दायर एक याचिका में कहा गया था कि मंत्रालय द्वारा लगाए गए विभिन्न नियम मनमाने और असंतुलित हैं. यदि मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित इन नियमों को लागू किया जाता है, तो यह वास्तव में असहमति की स्वतंत्रता पर हमला होगा और विपक्षी राजनीतिक दलों के आंदोलन और कार्रवाई को भी प्रभावित करेगा.

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