अंसार और मुहाजिर भाई-भाई बन गए
प्रिय दर्शको, आप सबको मेरा प्यार भरा सलाम।
नबी करीम (सल्ल.) को एक बहुत बड़ा मेंडेट दिया गया था, जिसके तहत इस्लामी व्यवस्था की स्थापना करनी थी। आप (सल्ल.) आख़िरी नबी थे, और आपके बाद कोई नबी नहीं आएगा। आप (सल्ल.) ने वहाँ जाने के बाद इस्लामी राज्य की बुनियादें मज़बूत कीं। मदीना एक छटो-सा राज्य था, जिसमें कुछ हज़ार की आबादी थी। उसकी तुलना में मक्का एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र था। मदीना के आसपास बाग़ फैले हुए थे। वहाँ औस और ख़जरज नामक दो क़बीले थे, जिनमें औस छोटा क़बीला था और ख़जरज़ उसके मुक़ाबले में बड़ा था। इसके अलावा विभिन्न जगहों पर छोटी-छोटी बस्तियाँ आबाद थीं। वहाँ के यहूदियों के पास छोटे-छोटे क़िले थे, उनकी आबादियाँ थीं और वहाँ पर उनका वर्चस्व था। और इस वर्चस्व को बनाए रखने के लिए वे वहाँ के लोगों को आपस में लड़ाते भी रहते थे। उन लोगों ने ब्याज को भी प्रचलित कर रखा था।
मक्का से जो लोग मदीना गए, वे लुट-पिटकर ख़ाली हाथ गए थे, उन्होंने बड़ी परेशानियाँ झेली थीं, कुछ भी नहीं था उनके पास। जानेवालों में नबी (सल्ल.) के अलावा अबू-बक्र सिद्दीक़ (रज़ि.), हज़र उमर (रज़ि.) और अनगिनत लोग थे। इस्लाम-दुश्मनों ने इनमें से किसी का माल छीना, तो किसी की पत्नी को ज़बरदस्ती रोक लिया तो किसी के बच्चे को रोक लिया। आप जानते होंगे कि नबी (सल्ल.) की बेटी हज़रत ज़ैनब (रज़ि.) जब अपने पिता के साथ मदीना रहने के लिए जा रही थीं, तो हब्बार-बिन-असवद ने एक तीर चलाया, जो सीधे हज़रत ज़ैनब (रज़ि.) को, जो उस समय गर्भवती थीं, लगा, वे ऊँट से गिर गईं, उनका गर्भपात हो गया और अन्ततः फिर इसी स्थिति में मदीना पहुँचने के बाद उनका इंतिक़ाल हो गया।— फ़त्हे-मक्का के दिन हब्बार-बिन-असवद आया था, लेकिन नबी (सल्ल.) ने उसको भी माफ़ कर दिया।
जब ये लोग मदीना पहुँचे तो मदीना में व्यापार का अधिक ज़ोर न था, जबकि मक्का के लोग अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करते थे। ये लोग यमन जाते, भारत के समुद्रतटो तक भी आते, फिर मिस्र जाते, सीरिया जाते और क़ुस्तुनतुनिया तक जाया करते थे। लेकिन इस्लाम की ख़ातिर सब कुछ छोड़-छाड़कर, और कुछ लोग अपने बाल-बच्चों को भी छोड़कर जब मदीना आए तो नबी करीम (सल्ल.) ने इस बात की ज़रूरत महसूस की कि उनमें और मदीना के स्थानीय लोगों में भाईचारे की स्थापना की जाए और उन्हें आपस में भाई-भाई बना दिया जाए। चुनाँचे आप (सल्ल.) ने मुहाजिरीन (मक्का से मदीना आनेवालों) और अंसार (मदीना के वे स्थानीय लोग जिन्होंने मक्का से आनेवालों की मदद की) दोनों को एक मकान में इकट्ठा किया और विभिन्न लोगों को विभिन्न लोगों का भाई बना दिया। और फिर मदीना के ‘अंसार’ ने, संसाधनों की कमी के बावजूद, अपनी आधी-आधी जायदादें अपने मुहाजिर भाइयों को दे दीं। यहाँ तक कि एक सहाबी ने तो अपने मुहाजिर भाई से यहाँ तक कहा कि मेरी दो पत्नियाँ हैं, और तुम अकेले हो, तुम्हारे साथ कोई नहीं है, इसलिए अगर तुम चाहो तो मैं अपनी एक पत्नी को तलाक़ दे दूँ और उससे तुम निकाह कर लो। लेकिन उक्त मुहाजिर ने मना कर दिया और कहा कि इसकी ज़रूरत नहीं, आप तो मुझे बस बाज़ार का रास्ता बता दें, जिससे कि मैं व्यापार कर सकूँ। यानी इस हद तक त्याग की भावना थी उनके अन्दर।
मदीना में यह भाईचारा सारी इस्लामी दुनिया के लिए, आनेवाले दौर की इंसानियत के लिए एक मॉडल की हैसियत रखता था, जिसे नबी (सल्ल.) ने छोटे स्तर पर क़ायम किया था कि मुसलमान मुसलमान का भाई है। चुनाँचे जो लोग मक्का से मदीना आए थे, उन्होंने व्यापार शुरू किया, और इधर-उधर जाने लगे, या मदीना में जो बाग़ थे, उनमें काम करने लगे।
मुस्लिम समुदाय के सभी लोगों को यह बात याद रखनी चाहिए कि यह भाईचारा छोटे स्तर पर क़ायम किया गया था और बाद में इस्लामी जगत् में बड़े पैमाने पर यह फैला कि हमारे ज़माने अलग होंगे, हमारे क़बीले अलग होंगे, नस्ली तौर पर हम अलग-अलग होंगे, हमारा खान-पान, हमारे तौर-तरीक़े ये सब अलग होंगे, लेकिन हम एक अल्लाह के बन्दे और सारी दुनिया को एक अल्लाह की ओर बुलानेवाले लोग हैं। अतः हमारा खान-पान, हमारा रहन-सहन, हमारा मौसम और हमारी इस तरह की आदतें जो कल्चर से संबंध रखती हैं, वे भले ही अलग-अलग हैं, लेकिन हम सबका मक़सद एक है और वह यह कि हम सारे इंसानों को अल्लाह की ओर बुलाएँ। इस तरह हम कह सकते हैं कि मदीना में इसका छोटा-सा मॉडल क़ायम हुआ था। और वह मॉडल ही तो होता है, जिसके आधार पर किसी बड़ी चीज़ को बनाया जाता है। इसी तरह नबी (सल्ल.) ने मदीना में एक मिसाली इस्लामी राज्य क़ायम करके दिखा दिया कि दुनिया में इसी प्रकार इस्लामी व्यवस्था स्थापित करनी है।
उसके बाद जैसे-जैसे इस्लाम दुनिया भर में फैलता चला गया, जैसे ईरानी आए, रोमी आए, क़िब्ती आए, फिर भारत आया, फिर अफ़ग़ानिस्तान आया, फिर लोग मलयेशिया और इंडोनेशिया तक पहुँचे। तो—
एक हों मुस्लिम हरम की पासबानी के लिए
नील के साहिल से लेकर ता ब-ख़ाके-काशग़र
इसकी बुनियाद रखी थी और इसका बीज डाला था नबी करीम (सल्ल.) ने मदीना के नवजात इस्लामी राज्य में। आज दुनिया बहुत बड़ी हो चुकी है, जबकि नबी करीम (सल्ल.) के ज़माने में दुनिया की आबादी यही कोई 18-20 करोड़ के लगभग रही होगी, आज 780 करोड़ हो गई है और अगले 30-40 वर्षों में दुनिया की आबादी 1000 करोड़ तक पहुँच जाएगी। फिर उसके बाद आगे नहीं बढ़ेगी, इसका कारण वे सामाजिक और आर्थिक कारक हैं, जिनके कारण आबादी का ग्राफ़ रुक जाएगा।
अभी यह दुनिया टुकड़ों-टुकड़ों में और गिरोहों में बँटी हुई है। आज इस बात की ज़रूरत है कि हम सबके सब इस्लाम के भाईचारे के सन्देश को दुनिया के सामने पेश करें और जाति, बिरादरी, नस्ल और नगरों तथा देशों की सीमाओं से ऊपर उठकर अल्लाह के सन्देश को अल्लाह के बन्दों के सामने पेश करके दुनिया को एकतासूत्र में बाँधने की कोशिश करें। इसी में दुनिया की भी भलाई है और आख़िरत की भी।
अल्लाह तआला हमें इन बातों पर ग़ौर करने और इन उसूलों को आम करने की ताक़त, हिम्मत और जज़्बा दे। आमीन, या रब्बल-आलमीन।
व आख़िरु दअवा-न अनिल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल-आलमीन।