सहाबियों में परस्पर त्याग की भावना

Sahaba’s Selflessness || Maulana Ejaz Ahmed Aslam || SADAA Times

सहाबियों में परस्पर त्याग की भावना

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(अल्लाह दयावान, कृपाशील के नाम से)

प्रिय दर्शको, आप पर सलामती हो, और अल्लाह की रहमतें और बरकतें उतरें।

नबी (सल्ल.) तेरह साल तक मक्का में मुसीबतों और समस्याओं की भीड़ में रहने के बाद हिजरत करके मदीना चले गए। मदीना एक छोटा-सा क़स्बा था। एक बहुत बड़ी समस्या थी और वह यह कि जो लोग अपना सब कुछ छोड़कर मक्का से मदीना आ गए थे, उनके मदद करने और उन्हें सहारा देना था। इसके लिए आप (सल्ल.) ने अत्यंत श्रेष्ठ व्यवस्था ‘मुआख़ात’ अर्थात् ‘भाईचारा’ स्थापित की। मदीना के अंसार ने अपने इन मुहाजिर भाइयों के साथ त्याग और बलिदान की जो नीति अपनाई उसका उदाहरण मानव इतिहास में नहीं मिलता।

जब मक्का के लोग हिजरत करके मदीना पहुँचे तो नबी (सल्ल.) ने एक-एक मुहाजिर (मक्का से मदीना जानेवाले) को एक-एक अंसार (मुहाजिरीन के सहयोगी मदीनावासी) का भाई बना दिया, तो उन्होंने बिल्कुल भाइयों जैसा ही व्यवहार किया। अल्लाह तआला ने अंसार के त्याग और बलिदान की प्रशंसा क़ुरआन में यह कहकर की है—

“वे उनसे प्रेम करते हैं जो हिजरत करके उनके यहाँ आए और जो कुछ भी उन्हें दिया गया उससे वे अपने सीनों में कोई खटक नहीं पाते और वे उन्हें अपने मुक़ाबले में प्राथमिकता देते हैं, यद्यपि अपनी जगह वे स्वयं मुहताज ही हों। और जो अपने मन के लोभ और कृपणता से बचा लिया जाए, तो ऐसे लोग ही सफल हैं।” (क़ुरआन, 59/9)

आपके पास ज़रूरत से ज़्यादा माल हो और आप दूसरों को उसमें से दें, तो यह भी अच्छी बात है, लेकिन आप ख़ुद ग़रीब और ज़रूरतमन्द हों, संसाधन न हों फिर भी आप दूसरों को स्वयं पर प्राथमिकता दें तो यह निश्चय ही बहुत बड़ा त्याग है। अंसार भी यही कुछ कर रहे थे। अतः उन्होंने नबी (सल्ल.) से कहा कि हमारे बाग़ हाज़िर हैं, आप इन्हें हमारे और और इन मुहाजिर भाइयों के बीच बाँट दें।

नबी (सल्ल.) ने कहा, “ये लोग तो बाग़बानी नहीं जानते। ये उस इलाक़े से आए हैं जहाँ बाग़ नहीं हैं। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि अपने इन बाग़ों में काम तुम करो और पैदावार में इनको भी हिस्सा दो?” उन्होंने कहा, “हमने सुना और हमने मान लिया।”

इसपर मुहाजिरीन ने कहा, “हमने कभी ऐसे लोग नहीं देखे जो इतना बड़ा त्याग करनेवाले हों। ये काम ख़ुद करेंगे और हिस्सा हमको देंगे? हम तो समझते हैं कि सारा अज्र यही लूट ले गए।”

नबी (सल्ल.) ने फ़रमाया, “नहीं, जब तक तुम इनकी तारीफ़ करते रहोगे, और इनके लिए भलाई की दुआ करते रहोगे, तुम्हें भी अज्र (प्रतिदान) मिलता रहेगा।”

कुरआन की सूरा अनफ़ाल जो बद्र की जंग के बाद अवतरित हुई थी, उसमें अल्लाह तआला फ़रमाता है—

“जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने अल्लाह के मार्ग में घरबार छोड़े और संघर्ष किया और जिन्होंने पनाह दी और सहायता की वही सच्चे ईमानवाले हैं। उनके लिए उनकी भूलों पर क्षमा है और उत्तम रोज़ी है।”

नबी (सल्ल.) ने मदीना में ‘भाईचारे’ की जो व्यवस्था बनाई, इसके कारण जो लोग लुट-पिटकर मक्का से मदीना आ गए थे, उनकी सारी की सारी आर्थिक समस्याएँ हल हो गईं। उसके बाद नबी (सल्ल.) को 9-10 वर्ष तक मदीना में रहने का मौक़ा मिला और उसके बाद अल्लाह तआला ने उन्हें आपको वापस बुला लिया, आप (सल्ल.) का इंतिक़ाल हो गया। जो फ़त्हें हुईं, जो माले-ग़नीमत (युद्ध में प्राप्त माल) आया, जो अच्छे-अच्छे लोग मदीना में आकर इकट्ठा हुए उसकी वजह से मदीना जो तेज़ी से विकास कर रहा था, एक बड़ा राज्य बन गया और विभिन्न लोग जो आपस में लड़ते रहते थे, उदारणार्थ औस और ख़ज़रज नामक दो क़बीले, उनमें आप (सल्ल.) ने परस्पर मेल करादिया था।

एक बात याद रखिए कि बड़ा मक़सद इंसान को बड़ा बनाता है, उसे उच्चता और महानता प्रदान करता है। आप (सल्ल.) के पास भी एक मक़सद था और वह यह कि अल्लाह तआला के सन्देश को सारी दुनिया के सामने पेश कर देना, ज़ुल्म को समाप्त करना और संगठित करना, एकजुट करना।

तो यह था आधार ‘भाईचारे’ का और ये थीं उसकी बरकतें कि मदीना एक बहुत ही फूलता-फलता शहर बन गया और इस्लामी राज्य का कैपिटल बन गया।

यह बात याद रखिए कि ये सब बातें केवल सुनने-सुनाने के लिए नहीं हैं, बल्कि ये बातें इसलिए हैं कि हम इन बातों के अनुरूप अपने आपको बनाएँ। आज दुनिया में विभिन्न प्रकार की समस्याएँ पेश आती रहती हैं? लोग मुसीबतों का शिकार होते रहते हैं, तो हम सबकी ज़िममेदारी है कि हम इस अन्तर्राष्ट्रीय इस्लामी बिरादरी का ख़याल रखें। जहाँ भी किसी पर कोई विपत्ति आए तो उस मुसीबत में हम तन-मन-धन के साथ उनकी सहायता करें और यह सोचें कि हमपर भी यह मुसीबत आ सकती थी। अल्लाह तआला हमें जो एक मौक़ा देता है, कुछ माल देकर, कोई ठिकाना दे कर। इसके द्वारा हम उनकी मदद करें कि, बल्कि ख़ुद तकलीफ़ उठाकर उनकी मदद करने की कोशिश करे। यह वह सबक़ है, जो उम्मते-मुस्लिमा के लोगों को याद रखना है? अल्लाह के बन्दों को अल्लाह का हक़ीक़ी बन्दा बनाना। इसके लिए त्याग और बलिदान को हमेशा निगाहों के सामने रखना चाहिए

अल्लाह तआला से दुआ है कि वह आपको और हमको इन मुश्किल हालात में इस लम्बी-चौड़ी बड़ी और लगभग आठ सौ करोड़ इनसानों से भरी हुई दुनिया में अन्याय, अज्ञानता, ग़रीबी, बहुदेववाद को समाप्त करने और लोगों को ऊँचा उठाने के लिए, लोगों को अल्लाह का बन्दा बनाने के लिए त्याग और बलिदान से काम लें। आमीन, या रब्बल-आलमीन।

व आख़िरु दअवा-न अनिल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल-आलमीन।

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