अल्लाह के रसूल (सल्ल.) का नर्म स्वभाव
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(अल्लाह दयावान, कृपाशील के नाम से)
प्रिय दर्शको, आप सबको मेरा प्यार भरा सलाम।
नबी करीम (सल्ल.) की एक बहुत बड़ी विशेषता यह थी कि आप अत्यंत नर्म स्वभाव और सभ्य थे। अल्लाह तआला क़ुरआन मजीद में कहता है—
اِنَّکَ لَعَلٰی خُلُقٍ عَظِیْمٍ
“निस्संदेह तुम एक महान नैतिकता के शिखर पर हो।” (क़ुरआन, 68/4)
मदीना में घटित एक घटना आपके सामने पेश कर रहा हूँ। मदीना में ज़ैद-बिन-सअला नामक एक साहब थे, जो यहूदी थे, तौरात का ज्ञान भी रखते थे और यह बात अच्छी तरह समझते थे कि मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह के रसूल हैं और वही रसूल हैं, जिनका ज़िक्र तौरात और इंजील में आ चुका है, लेकिन वह परीक्षा लेकर देखना चाहते थे।
एक बार ऐसा हुआ कि लोग बहुत परेशान थे। ज़ैद-बिन-सअना ने अल्लाह के रसूल के सामने प्रस्ताव रखा कि मुझसे अस्सी मिस्क़ाल सोना ले लें और फ़सल पकने पर इतनी ही खजूरें मुझे दे दें। फिर हुआ यह कि अभी निश्चित अवधि में दो-तीन दिन बाक़ी रह गए थे। ज़ैद-बिन-सअना ने सोचा कि चलो आज मुहम्मद को आज़माएँगे। नबी (सल्ल.) किसी जनाज़े में इमामत करने के बाद उससे निबटकर कुछ सहाबा के साथ एक दीवार की छाँव में बैठे थे। ज़ैद-बिन-सअना वहाँ आए और उन्होंने सख़्ती के साथ अल्लाह के रसूल (सल्ल.) का दामन खींचा और कहा, “आपने अब तक मेरा क़र्ज़ नहीं दिया? आपने अस्सी मिस्क़ाल सोना मुझसे लिया था। ये अबू-तालिब के ख़ानदान के सब लोग ऐसे ही होते हैं। इन्हें लेना आता है, देना नहीं।”
हज़रत उमर (रज़ि.) ने, जो बहुत कठोर स्वभाव के थे और अल्लाह के रसूल (सल्ल.) से बहुत प्रेम करते थे, और इस प्रकार की बातों को सहन नहीं किया करते थे, क्रुद्ध होकर ज़ैद-बिन-सअना की ओर देखा और कहा, “ख़ुदा के दुश्मन, क्या बकता है? ख़ुदा की क़सम, अगर अल्लाह के रसूल इजाज़त देते तो मैं तेरी गर्दन उड़ा देता।”
लेकिन नबी (सल्ल.) जो नैतिकता के शिखर पर आसीन थे, उन्होंने कहा, “उमर, यह क्या किया तुमने? उसका हक़ है, वह माँग रहा है।” हालाँकि अभी दो-तीन दिन बाक़ी थे, अवधि पूरी नहीं हुई थी। नबी (सल्ल.) ने कहा, “उमर, होना तो यह चाहिए था कि तुम मुझे उत्तम रूप से अदा करने की नसीहत करते कि चलिए अगर वह माँग रहा है तो अल्लाह के रसूल, दो-तीन दिन पहले ही दे दीजिए, और उसे उत्तम रूप से माँगने की नसीहत करते, लेकिन तुमने यह क्या किया कि तुमने उसे डाँट दिया? उसका हक़ है…..जब अकाल का समय था, मैं और मेरे साथी सख़्त मुश्कलों और ग़रीबी और भूख से परेशान थे, उस समय इस व्यक्ति ने ख़ुद प्रस्ताव रखा और अस्सी मिस्क़ाल सोना हमें क़र्ज़ दिया।” फिर आपने कहा कि उसका क़र्ज़ अदा किया जाए और कहा, “उमर, सुनो ज़रा, कुछ खजूरें ज़्यादा दो उसे।”
तो यह था नबी (सल्ल.) का तरीक़ा। हर वक़्त आपने नर्मी, प्रेम और मुहब्बत तथा माफ़ कर देने का रवैया ही अपनाया। आज हम देखते हैं कि हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग हैं जो बात-बात पर बिगड़ जाते हैं, झल्ला उठते हैं। इसके बजाय हमें नर्मी का तरीक़ा अपनाना चाहिए।
अल्लाह तआला हम सबको नर्मी और शराफ़त का तरीक़ा अपनाकर दुनिया के लोगों को इस्लाम की ओर लाने और उनके दिल मोह लेने की क्षमता प्रदान करे, क्योंकि हमें नबी (सल्ल.) की तरह, जो मानवता उपकारक थे, हमें भी मानवता का सेवक बनना है।
अल्लाह तआला से दुआ है कि वह हम सबको इसकी भावना प्रदान करे।
व आख़िरु दअवा-न अनिल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल-आलमीन।