बदायूं: उत्तर प्रदेश में मस्जिदों और दरगाहों पर विवाद जारी है. संभल में शाही जामा मस्जिद को हरिहर मंदिर और अजमेर दरगाह में शिव मंदिर का दावा इन दिनों काफी सुर्खियो में हैं. इसी बीच, अब बदायूं की जामा मस्जिद के नीलकंठ महादेव मंदिर होने के वाद की पोषणीयता (सुनवाई योग्य) पर शनिवार को सुनवाई हुई.
अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 3 दिसंबर 2024 की तारीख मुकर्रर की है. सिविल लजज (सीनियर डिवीजन) अमित कुमार की अदालत ने इस मामले में मस्जिद इंतजामिया कमेटी के वकील की दलीलें सुनने के बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख तय की.
वहीं, अदालत में पेश भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट के बुनियाद पर मुकदमे में सरकार की तरफ से बहस पूरी हो चुकी है. शम्सी शाही मस्जिद इंतजामिया कमेटी के वकील असरार अहमद ने दावा किया कि मस्जिद करीब 850 साल पुरानी है और वहां मंदिर का कोई अस्तित्व नहीं है और हिंदू महासभा को इस मामले में याचिका दायर करने का अधिकार ही नहीं है. अदालत में पेश हुए वादी फरीक के वकील विवेक रेंडर ने कहा कि उन्होंने मंदिर में पूजा-अर्चना की इजाजत के लिए अदालत में ठोस सबूत के साथ याचिका दायर की है और यह याचिका की पोषणीयता को लेकर आज मस्जिद कमेटी ने अपनी दलीलें दीं.
दरअसल, यह मामला 2022 में तब शुरू हुआ जब अखिल भारत हिंदू महासभा के संयोजक मुकेश पटेल और अन्य ने अदालत दावा किया कि बदायूं शहर में मौजूद जामा मस्जिद की जगह पहले नीलकंठ महादेव का मंदिर था. हिन्दू पक्ष ने अदालत में पिटीशन में दायर कर यहां पूजा-अर्चना की इजाजत मांगी. उन्होंने दावा किया है कि मस्जिद की मौजूदा स्ट्रक्चर नीलकंठ महादेव के प्राचीन मंदिर को ध्वस्त करके बनाई गई है.
वहीं, मस्जिद के इंतजामिया कमेटी ने हिन्दू पक्ष के इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि जामा मस्जिद शम्सी करीब 840 साल पुरानी है. इस मस्जिद का निर्माण शमसुद्दीन अल्तमश ने करवाया था और यहां मंदिर का कोई अस्तित्व नहीं है.
इस मामले में आज इंतज़ामिया कमेटी की तरफ से पक्ष रखा गया था. इंतज़ामिया कमेटी के वकील अनवर आलम का कहना है कि यह मुकदमा चलने योग्य नहीं है इसको ख़ारिज किया जाना चाहिए, क्योंकि यह प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ है. इस तरह के केसों से मुल्क माहौल ख़राब होता है. वहीं, इस पर वादी मुकेश पटेल का कहना है हम पूरे सबूतों के साथ कोर्ट में गए हैं और हर सवाल का जवाब हमारे पास है. हमें हमारा हक़ मिलेगा. सरकार की तरफ से पुरातत्व विभाग पहले ही कोर्ट में जा चुका है.
बदायूं मस्जिद की सुनवाई ऐसे समय में हो रही है जब यूपी के संभल में पिछले सप्ताह शाही मस्जिद के सर्वे के दौरान हिंसा भड़की थी. मस्जिद के सर्वे के दौरान 24 नवंबर को प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प में हो गई थी, जिसमें 4 लोगों की मौत हो गयी थी और 25 अन्य घायल हो गये थे.
वहीं इस मामले पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने शनिवार को कहा है कि उत्तर प्रदेश के बदायूं में स्थित जामा मस्जिद को निशाना बनाया जा रहा है.
असदुद्दीन ओवैसी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट कर कहा, “बदायूं उत्तर प्रदेश की जामा मस्जिद को भी निशाना बनाया गया है. अदालत में 2022 में केस किया गया था और उसकी अगली सुनवाई 3 दिसंबर को होगी.”
उन्होंने आगे कहा, ”एएसआई (जो भारत सरकार के तहत काम करती है) और उत्तर प्रदेश सरकार भी केस में पार्टी है. दोनों सरकारों को 1991 एक्ट के अनुसार, अपनी बात रखनी होगी. शर पसंद हिंदुत्ववादी तंजीमें किसी भी हद तक जा सकते हैं, उन पर रोक लगाना भारत के अमन और इत्तिहाद के लिए बहुत जरूरी है. आने वाली नस्लों को ‘एआई’ की पढ़ाई के बजाए ‘एएसआई’ की खुदाई में व्यस्त कर दिया जा रहा है.”