नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के जिला बरेली में एक मुस्लिम शख्स को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए 5 साल लग गए। चांद मोहम्मद को 5 साल आतंकवादी के तौर पर बिताने के बाद बरेली कोर्ट ने बेकसूर बताकर बरी कर दिया।
चांद मोहम्मद के खिलाफ जो लिखे हुए नक्शे लिटरेचर पुलिस ने कोर्ट को सबूत के तौर पर दिखाए थे, उनको लेकर कोर्ट ने पाया कि चांद मोहम्मद पढ़ लिख ही नहीं सकते बल्कि वे अनपढ़ हैं, तो वह ऐसे नक्शे कैसे बना सकते हैं, अब पुलिस के इस दावों को खारिज करते हुए उन्हें बरी कर दिया गया है। सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस को पहले नहीं पता था कि चांद अनपढ़ है, इस आरोप को साबित करने में जरा देर नहीं लगी, लेकिन उन्हें आरोप को झूठा साबित करने के लिए पांच साल लग गए।
इस बात में कोई दोराय नहीं है कि एक मुसलमान को आतंकवादी का ठप्पा आसानी से लगा दिया जाता है, वहीं बेकसूर साबित होने पर उन्हें ना तो कोई मुआवजा दिया जाता है, ना ही उन्हें कोई नौकरी दी जाती है।
बता दें कि हाल ही में जाकिर नाइक नीत इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (आईआरएफ) के 2016 में अर्शी कुरैशी के साथ भी ऐसा ही हुआ। उनकी जिंदगी के 6 साल बर्बाद होने के बाद कोर्ट ने उनपर लगे सभी आरोपों से उन्हें दोषमुक्त कर दिया। उन्हें 2016 में युवाओं को भ्रमित कर उन्हें आईएसआईएस आतंकी संगठन में शामिल करने का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया था।
कुरैशी पर आईएसआईएस की गतिविधियों का समर्थन करने और भारत में घृणा फैलाने का आरोप था। विशेष एनआईए न्यायाधीश ए. एम. पाटिल ने कुरैशी को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया। अब वह जेल से बाहर और जिंदगी को फिर से शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं।
वहीं अब चांद मोहम्मद को भी 5 साल जेल में रखने के बाद उन पर लगे आरोपों को पुलिस सही साबित नहीं कर पई, जिसके बाद बरेली कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। लेकिन इन 5 सालों में उन्होंने जो खोया वो कोई नहीं लौटा सकता।
खबर के मुताबिक, चांद मोहम्मद की मानें तो वह आतंकवादी के ठप्पे के साथ ही मरेंगे और हर दिन उनको यही सताता है। उनका कहना है कि मुझे अब नौकरी कौन देगा? मैं क्या काम करूंगा?
इस आतंकवादी ठप्पे के साथ ना ही उनको कभी नौकरी मिली और ना ही रिश्तेदारों या पड़ोसियों ने सही नजरों से देखा। उन्हें हमेशा ताने ही दिए गए। जानकारी के मुताबिक 2009 में बरेली शहर के प्रेम नगर थाने के अधिकारियों ने किला नदी के पास जुआ खेलने वालों को पकड़ने के लिए छापेमारी की। यहां पुलिस को देखते ही नदी में कूदने से तीन लोगों की मौत हो गई थी। चांद पुलिस के खिलाफ इस मामले में एक मात्र गवाह बने थे। ऐसे में चांद को इससे पहले ही थाने बुलाकर आतंकवादी बताकर पुलिस ने हिरासत में ले लिया।
चांद के साथ 11 साल की लड़की भी थी जो की उसके दोस्त की बेटी थी। उसको भी हिरासत में ले लिया गया और कथित रूप से प्रताड़ित किया गया। 13 अक्टूबर 2009 को चांद को पुलिस ने हिरासत में लिया और चांद के लिए आतंकवादी होने की बात कही गई। बताया गया कि वह नाबालिग लड़की को आतंकवादी बनाने की तैयारी कर रहे थे। . यहां तक कहा गया कि वह आतंकी शिविर से प्रशिक्षण प्राप्त है। लेकिन आज यह सारे आरोप झूठे साबित हुए। अगर आरोप सच्चे होते तो क्या कोर्ट उन्हें दोषमुक्त करके बरी करता?
बता दें कि चांद ने अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा कि मैं नौकरी करना चाहता हूं, लेकिन कोई मुझे नौकरी नहीं देगा। मेरी प्रतिष्ठा और सालों के नुकसान के लिए मुझे कोई मुआवजा नहीं दिया गया। मैं जीवन की बुनियादी जरूरतों के लिए भी पूरी तरह से अपने बेटों पर निर्भर हूं।
चांद कहते हैं कि मुझे गिरफ्तार करने वाले निरीक्षक ने तब दावा किया था कि मैं एक आतंकवादी था और भारत और अमेरिका में वांछित था। मांझा निर्माताओं द्वारा छोड़े गए कबाड़ को बम बनाने के लिए सामग्री के रूप में दिखाया गया था। मुझे कई दिनों तक प्रताड़ित किया गया। चांद अपना दर्द बयां करते हुए कहते हैं कि अपमान और पीड़ा को सहन करने में असमर्थ, मैंने पुलिस से इसके बजाय मुझे गोली मारने का अनुरोध किया था।
पुलिस ने यह भी दावा किया कि चांद ने पाकिस्तान में एक आतंकी शिविर में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। पुलिस ने चांद से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े सभी लोगों से पूछताछ की। चांद बताते हैं कि इस दौरान नाबालिग लड़की के भाई को कई दिन पेड़ों पर बिताने पड़े, क्योंकि पुलिस ने उसे पकड़ने के लिए एक अभियान चला रखा था।
बाद में, चांद और नाबालिग लड़की का गुजरात के सूरत में नार्को टेस्ट किया गया, लेकिन उसमें कुछ भी सामने नहीं आया। आज नाबालिग लड़की बरेली में नर्सरी चलाती है। चांद ने कहा जब मैं पुलिस हिरासत में था, तो मैंने उनसे मुझ पर झूठे आरोप लगाने के बजाय मुझे मारने का अनुरोध किया।
मैं अपने देश के प्रति वफादार हूं। चांद को न्याय दिलाने में उनकी मदद करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता योगेंद्र कुमार गुप्ता ने बताया कि चांद अनपढ़ हैं और यह अदालत में उनके पक्ष में गया। क्योंकि पुलिस ने दावा किया कि उन्होंने चांद के कब्जे से नक्शे और आतंकवाद से संबंधित अन्य साहित्य बरामद किए थे। अदालत ने पुलिस के दावों को खारिज कर दिया, क्योंकि अदालत ने पाया कि वह पढ़-लिख नहीं सकते।
(इनपुट मिल्लत टाइम्स)