नई दिल्ली: राजनीतिक सिद्धान्तकार प्रोफ़ेसर राजीव भार्गव की किताब ‘राष्ट्र और नैतिकता: नए भारत से उठते 100 सवाल’ का लोकार्पण किया गया।
राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब का लोकार्पण गुरुवार शाम इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हुआ। कार्यक्रम मेें लेखक-राजनयिक गोपालकृष्ण गाँधी, विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा, इतिहासकार एस. इरफ़ान हबीब, सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता संजय हेगड़े, लेखक राजीव भार्गव और अनुवादक अभिषेक श्रीवास्तव बतौर वक्ता मौजूद रहे।
किताब के बारे में
भारत की सामूहिक नैतिक पहचान बहुत दबाव में है। हमारी सामूहिक भलाई किस चीज़ में है, इस पर देश में कोई आम सहमति नहीं दिखती। कुछ समूह मानते हैं कि भारत आख़िरकार अपनी हिन्दू पहचान को वापस पा रहा है और फिर से एक महान राष्ट्र-राज्य बनने की राह पर है। कुछ अन्य के लिए यह बदलाव हमें अपने उस सभ्यतागत चरित्र को गवाँ देने के कगार पर ला चुका है, जहाँ समावेशी होने का अर्थ कम हिन्दू या कम भारतीय होना नहीं था।
राजनीतिक सिद्धान्तकार प्रोफ़ेसर राजीव भार्गव का मानना है कि एक समावेशी और बहुलतावादी भारत के विचार से जिन लोगों का भी मोहभंग हो चुका है, उनकी जायज़ चिन्ताओं को भारत के संवैधानिक लोकतंत्र के खाँचे के भीतर ही सम्बोधित किया जा सकता है। अपने संक्षिप्त, सहज और सुबोध लेखों में वे पाठकों को भारतीय गणतंत्र के बुनियादी आख्यानों तक ले जाते हैं। वे यह बताने की कोशिश करते हैं कि अगर मूल नीतियों और नैतिक दृष्टि पर हमारी समझ सही बन पाई, तो हो सकता है कि हम अपने देश को और ज़्यादा ध्रुवीकरण से अब भी बचा ले जाएँ और साथ ही कुछ दरारों को भी भर सकें।
लेखक के बारे में
राजीव भार्गव का जन्म सन 1954 में हुआ। शिक्षा दिल्ली और ऑक्सफ़ोर्ड में प्राप्त की। दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया। विभिन्न विश्वविद्यालयों में व्याख्यान दे चुके हैं; विज़िटिंग प्रोफ़ेसर के पद पर रहे हैं और फ़ेलो के रूप में हार्वर्ड विश्वविद्यालय (संयुक्त राज्य अमेरिका), ब्रिस्टल विश्वविद्यालय (यूनाइटेड किंगडम), इंस्टीट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज़ (जेरुसलम), विस्सेन शॉफ़्ट्स कॉलेज (बर्लिन) तथा दी इंस्टीट्यूट फ़ॉर ह्यूमन साइंसेज़ (विएना) से जुड़े रहे हैं। इसके अलावा इंस्टीट्यूट फ़ॉर रिलीजन, कल्चर एंड पब्लिक लाइफ़, कोलम्बिया विश्वविद्यालय में विशिष्ट रेज़िडेंट स्कॉलर तथा साइंसेज़ पो (पेरिस) के एशिया चेयर भी रह चुके हैं। 2015-17 के दौरान स्टैनफ़ोर्ड (कैलीफ़ोर्निया), त्सिंगुआ (बीजिंग) तथा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालयों में बर्ग्रुएन फ़ेलो रहे हैं। 2014-18 के बीच इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल जस्टिस, एसीयू (सिडनी) में प्रोफ़ेशन फ़ेलो, 2022 में लाइपज़िग विश्वविद्यालय (जर्मनी) में सीनियर रिसर्च फ़ेलो रहे।
उनकी प्रकाशित एवं चर्चित कृतियों में प्रमुख हैं: ‘बिटवीन होप एंड डिस्पेयर’, ‘इंडिविडुअलिज़्म इन सोशल सांइस’, ‘ह्वाट इज़ पॉलिटिकल थिअरी एंड व्हाइ डू वी नीड इट?’ तथा ‘द प्रॉमिज़ ऑफ़ इंडियाज़ सेक्युलर डेमोक्रेसी’। ‘सेक्युलरिज़्म एंड इट्स क्रिटिक्स’, ‘पॉलिटिक्स एंड एथिक्स ऑफ़ द इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन’ तथा ‘पॉलिटिक्स, एथिक्स एंड द सेल्फ़ : री-रीडिंग हिंद स्वराज’ उनकी सम्पादित पुस्तकें हैं।
बेलिअल कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड (यूनाइटेड किंगडम) में मानद फ़ेलो हैं। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसायटीज़ (सीएसडीएस), दिल्ली में मानद फ़ेलो और इसके पारेख इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडियन थॉट के निदेशक हैं। 2007 से 2014 तक सेंटर के निदेशक भी रहे। फिलहाल वे दिल्ली में रहते हैं।