मदरसों के बच्चों ने मेडिकल शिक्षा में हासिल की सफलता, गरीबों को सस्ती मेडिकल सेवाएं उपलब्ध कराने का वादा

नई दिल्ली: इन दिनों लगातार सर्वे के जरिए मदरसों और उसमें पढ़ने वाले बच्चों को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है. लेकिन अब मदरसों के बच्चों ने नीट जैसी परिक्षा में सफलता हासिल करके उन लोगों के समाने एक मिसाल पेश किया है, जो कह रहे थे कि मदरसों में दुनियावी तालीम नहीं दी जाती, वहां उन्हें जाहिल बनाया जाता है. लेकिन मदरसों से भी निकलकर मेडिकल शिक्षा में जा रहे छात्र मानते हैं कि सरकार और मुख्य धारा का मीडिया मदरसों के ख़िलाफ़ एक ऐसा प्रोपेगंडा फैला रहे हैं, जिससे देशभर में मदरसों को लेकर गलत छवि बन रही है.

मिल्लत टाइम्स की खबर के अनुसार, मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए यूजी स्तर पर आयोजित की जाने वाली देश की एकल प्रवेश परीक्षा नीट में सफल होने वाले यह छात्र हाफिज़ ए कुरान भी हैं. इनका कहना है कि इन्होंने जो कुछ मदरसे में पढ़ा है, वह अब उसको ‘व्यावसायिक’ जीवन में ‘वास्तव’ में करके दिखायेंगे. यह छात्र कहते हैं, इनको पढ़ाया गया है कि, ‘जिसने एक इंसान की जिंदगी बचाई, उसने सारी इंसानियत (मानवता) को बचाया.’

नीट में सफलता हासिल करने वाले छात्रों का कहना है कि उन्होंने इस परीक्षा के लिए बहुत मेहनत की है. अब वह अपनी सफलता हासिल करने के बाद अपनी कौम के लिए काम करेगें और जिस तरह सरकारी चिकित्सा सेवाओं में भ्रष्टाचार, प्राइवेट डॉक्टरों की लम्बी फीस और महंगी दवाओं और जांचो के खर्चे ने ग़रीब नागरिकों के लिए चिकित्सा को कठिन बना दिया है, ऐसे लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहेंगे. वह गरीबों के लिए सस्ती चिकित्सा सेवाओं को उपलब्ध कराएंगे.

आज एक प्रेस कॉन्फेस में कुछ छात्रों से पूछा गया कि उन्होंने इस परीक्षा के लिए कितनी मेहनत की है और वह मदरसा एजुकेशन से मेडिकल एजुकेशन की तरफ क्यों आये और वह भविष्य में समाज के लिए क्या करना चाहते हैं? मोहम्मद अली इक़बाल बताते हैं कि वे चार साल, बेंगलूरु, में रहे.

जहां उन्होंने मदरसा ‘ज़ियाउल क़ुरान’ में क़ुरान हिफ्ज़ किया. अब उनको नीट की परीक्षा में 680 अंक प्राप्त हुए हैं. अली इक़बाल का कहना है कि उनको मेडिकल लाइन में जाने के लिए हमेशा उनकी मां ने प्रेरणा दी है. उनकी मां जो एक गृहिणी हैं, हमेशा उनको ‘दीनी तालीम’ (धर्मशास्र) और आधुनिक शिक्षा के बीच में संतुलन बनाने को कहती हैं. इक़बाल ने बताया कि उनके पांच में से चार भाई हाफिज़ हैं, जिसमें से एक इंजीनियर भी है.

कक्षा 7वीं से दीनी तालीम हासिल कर रहे हुज़ैफ़ा मंज़ूर मिर्ज़ा को नीट में 602 अंक प्राप्त हुए हैं. दीनी तालीम के साथ आधुनिक की तरफ उनका झुकाव उनके पिता की प्रेरणा से हुआ. मिर्ज़ा कहते हैं कि यह मुश्किल था कि मदरसे के साथ मेडिकल की तैयारी करें लेकिन असंभव नहीं था.

उनका कहना है कि उनका मकसद है कि पढाई पूरी होने के बाद चिकित्सा क्षेत्र से भ्रष्टाचार को ख़त्म किया जाये. वह कहते हैं कि ‘मुझको अपनी बहन की बीमारी के दौरान 2020 में अंदाज़ा हुआ कि अस्पतालों में कैसा लूट का माहौल बन गया है.

मदरसे के बारे में बात करते हुए मिर्ज़ा कहते हैं कि मीडिया मदरसों की नकारात्मक छवि बना रहा है जबकि जो कुछ दिखाया जा रहा है वैसा कुछ भी नहीं होता है. वह कहते हैं कि मदरसे में क़ुरान पढाया जाता है जिसमें लिखा है ‘एक इन्सान का क़त्ल सारी इंसानियत का क़त्ल है.’

मोहम्मद सफीउल्लाह के पिता एक मस्जिद में नमाज़ पढ़ाते हैं और उनके भाई भी डॉक्टर हैं. वे कक्षा 04 के बाद से मदरसे से जुड़ गए. फिर क़ुरान हिफ्ज़ करने के बाद शाहीन अकादमी गए, जहां उन्होंने आधुनिक पढाई दोबारा शुरू की और कक्षा 10 में 91 और कक्षा 12 में 93 प्रतिशत नम्बर आये. इसी के साथ उन्होंने नीट में 577 अंक प्राप्त किये.

बता दें कि हाल ही में असम सरकार ने आतंकवाद से जुड़े होने के आरोप लगाते हुए चार मदरसों को ध्वस्त कर दिया. इसके अलावा उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने भी ग़ैर-मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे करा रही है.

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