Imran Pratapgarhi: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 28 फरवरी को काग्रेंस नेता और राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ गुजरात पुलिस की तरफ से दर्ज मुकदमे को खारिज कर दिया. इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ एफआईआर (FIR) उनके इंस्टाग्राम पोस्ट ‘ऐ खून के प्यासे बात सुनो’ कविता को लेकर दर्ज की गई थी. जहां सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर देते हुए इस FIR को खारिज कर दिया.
‘कविता में हिंसा का कोई संदेश नहीं है, बल्कि यह अहिंसा को बढ़ावा देती है’
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि कोई अपराध नहीं हुआ है. जब आरोप लिखित रूप में हों, तो पुलिस अधिकारी को इसे ध्यान से पढ़ना चाहिए. बोले गए शब्दों का सही अर्थ समझना जरूरी है. कविता में हिंसा का कोई संदेश नहीं है, बल्कि यह अहिंसा को बढ़ावा देती है.
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान आगे कहा कि भले ही बहुत से लोग किसी दूसरे के विचारों को नापसंद करते हों, लेकिन विचारों को व्यक्त करने के व्यक्ति के अधिकार का सम्मान और संरक्षण किया जाना चाहिए. कविता, नाटक, फिल्म, व्यंग्य और कला सहित साहित्य मनुष्य के जीवन को और अधिक सार्थक बनाता है.
क्या था पूरा मामला?
बता दें कि इमरान प्रतापगढ़ी ने 29 दिसंबर को अपने एक्स हैंडल पर कविता की 46 सेकेंड की वीडियो क्लिप पोस्ट की थी. बैकग्राउंड में ‘ऐ खून के प्यासे बात सुनो’ गीत बज रहा था. इसके बाद जामनगर की पुलिस ने 3 जनवरी को सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ धर्म और जात-पात के बातों पर लोगों के बीच दुश्मनी को फैलाने, मजहबी इत्तेकाद के खिलाफ बयान देने और मजहबी बातों की तौहीन करने के इल्जाम में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 196 (धर्म या नस्ल के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 197 (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक कथन) के तहत मामला दर्ज किया गया था.
इमरान प्रतापगढ़ी ने इस FIR को रद्द करने के लिए पहले गुजरात हाई कोर्ट का रुख किया था, लेकिन 17 जनवरी को हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी. जहां हाई कोर्ट ने कहा था कि जांच शुरुआती चरण में है और प्रतापगढ़ी ने जांच में सहयोग नहीं किया. इसके बाद सांसद ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.