‘कोर्ट के फैसले से मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ भेदभाव और असुरक्षा का माहौल पैदा होगा’

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को मंगलवार को खारिज करते हुए कहा कि इस्लाम में हिजाब पहनना जरूरी नहीं है और कर्नाटक में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध को बरकरार रखा.

हिजाब फैसले पर मुस्लिम महिलाओं ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि हम इस फैसले से बहुत परेशान हैं और मानते हैं कि यह न केवल संवैधानिक कानून में एक बुरी मिसाल कायम कर रहा है बल्कि यह भी है कि यह कर्नाटक में सार्वजनिक संस्थानों में मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ एकमुश्त भेदभाव को सक्षम बनायेगा. हिजाब पहनने वाली महिलाओं के लिए एक असुरक्षित माहौल पैदा होगा. भीड़ की बढ़ती हिंसा और दमन के समय में वे असुरक्षित महसूस करेंगी.

फैसला तीन मुख्य प्रश्नों को उजागर करता है:

(1) हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है या नहीं.

(2) यदि ड्रेस कोड निर्धारित करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, और

(3) क्या कर्नाटक सरकार का आदेश दिनांक 05.02.2022 एक ड्रेस कोड को अनिवार्य करना मनमाना है और व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन करता है.

कोर्ट ने कहा है कि इस्लाम में हिजाब एक ‘आवश्यक’ धार्मिक प्रथा नहीं है,  इसे ‘सांस्कृतिक’ प्रथा कहते हैं, न कि धार्मिक. इसमें कहा गया है कि स्कूल की ड्रेस कोड का निर्धारण एक उचित प्रतिबंध है जो संवैधानिक रूप से अनुमेय है और छात्र इस पर आपत्ति नहीं कर सकते हैं.

अदालत ने कर्नाटक के सरकारी कॉलेजों की कॉलेज विकास समितियों (सीडीसी) को एक ड्रेस कोड स्थापित करने के लिए भी कहा है और कहा कि छात्रों को अपने संबंधित सीडीसी द्वारा तय की गई ड्रेस कोड का पालन करना चाहिए. यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि हिजाब पहनने पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है. उच्च न्यायालय ने इस पर फैसला नहीं किया है कि सभी शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब की अनुमति है या नहीं. केवल यह माना गया है कि इस्लाम में हिजाब एक आवश्यक प्रथा नहीं है, जिसके माध्यम से निर्णय ने हिजाब पहनने वाली महिलाओं के लिए कुछ शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश से वंचित करने का द्वार खोल दिया है.

कोर्ट द्वारा जो निर्णय लिया गया है वह मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ भेदभाव का एक स्पष्ट मामला है और शिक्षा के उनके अधिकार का उल्लंघन है. इसमें कहा गया है कि मुस्लिम महिलाओं को कक्षाओं के अंदर हिजाब में अनुमति देने से ‘सामाजिक दूरी’ बढ़ेगा लेकिन यह आदेश कक्षा में विभिन्न धर्मों के व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहा है, जो एक बहुल, समावेशी समाज को बढ़ावा देता है. हालांकि हम कुछ संस्थानों में वर्दी के अस्तित्व का पूरी तरह से विरोध नहीं कर रहे हैं, हम मानते हैं कि वर्दी समावेशी और सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करने वाली होनी चाहिए.

सैकड़ों मुस्लिम छात्रों जो सिर्फ उडुपी में ही 230 से अधिक हैं, इनको कोर्ट से कोई राहत प्रदान नहीं की गई है. जिनकी शिक्षा सीधे तौर पर अंतरिम आदेश से प्रभावित हुई है और जो अब अपने शैक्षणिक वर्ष का नुकसान झेलेंगी.

निर्णय मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ है जो उत्पीड़न और हिंसा को बढ़ावा देगा. दूसरी ओर, निर्णय भगवा शॉल और हिजाब की प्रथा के बीच एक झूठी समानता खींचता है, जो बदले में भीड़ के ज़रिये मुस्लिम महिलाओं को परेशान करने की शक्ति देता है.

हमारी मांगें:

  1. राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा अधिनियम में संशोधन करना चाहिए कि संबंधित अधिकारियों द्वारा अनिवार्य ड्रेस कोड सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता के लिए समावेशी और सम्मानजनक है. विभिन्न कॉलेजों के सीडीसी को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके द्वारा निर्धारित ड्रेस कोड समान रूप से समावेशी और गैर-भेदभावपूर्ण है.
  2. उन छात्रों को राहत मिलनी चाहिए जिनके शैक्षणिक वर्ष अदालत के फैसले से प्रभावित हुए हैं. जिन छात्रों की परीक्षा छूट गई है उन्हें अभी देने की अनुमति दी जानी चाहिए और तत्काल में लड़कियों को हिजाब पहनकर अपनी परीक्षा लिखने की अनुमति दी जानी चाहिए. उच्च न्यायालय का आदेश कहीं भी परीक्षा के लिए हिजाब पहनने पर रोक नहीं लगाता है. यदि कॉलेजों द्वारा लिखित परीक्षा के लिए कोई नया ड्रेस कोड पेश किया जा रहा है, तो उसे चालू वर्ष में लागू नहीं किया जाना चाहिए.
  3. अगर किसी वजह से किसी छात्र को इस मुद्दे के कारण एक वर्ष का नुकसान हुआ है तो उसे अगले वर्ष के लिए फिर से फीस का भुगतान नहीं करना चाहिए.
  4. सुनिश्चित करें कि आदेश को लागू करने के नाम पर आगे मुस्लिम छात्रों और उनके परिवारों को धमकाया और प्रताड़ित न किया जायेगा
  5. मुस्लिम छात्राओं या उनके परिवारों को डराने-धमकाने या परेशान करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ तत्काल प्राथमिकी दर्ज हो.
  6. जिन छात्रों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिजाब पहनकर कॉलेजों में जाने के लिए शरारतपूर्ण तरीके से दर्ज किए गए मामलों को तुरंत वापस लिया जाये.
  7. शैक्षणिक संस्थानों को सभी प्रभावित मुस्लिम छात्राओं को संस्थागत मानसिक स्वास्थ्य सहायता के लिए उचित क़दम उठाने चाहिए.
  8. हम सभी मीडिया घरानों से गैर-जिम्मेदार मीडिया कवरेज और विशेष रूप से नाबालिग छात्रों के परिणामस्वरूप हिंसा के विभिन्न रूपों की चपेट में आने वाली मुस्लिम महिला छात्रों की गोपनीयता बनाए रखने का उचित ध्यान रखने की अपील करते हैं. जिनमें से मीडियाकर्मियों द्वारा परेशान किया गया है.

बता दें कि कर्नाटक में हिजाब को लेकर विवाद की शुरुआत जनवरी में हुई थी. यहां उडुपी के एक सरकारी कॉलेज में 6 छात्राओं ने हिजाब पहनकर कॉलेज गई थीं. कॉलेज प्रशासन ने छात्राओं को हिजाब पहनने के लिए मना कर दिया. इसके बाद लड़कियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कॉलेज प्रशासन के खिलाफ विरोध दर्ज किया था. इसके विवाद कर्नाटक से लेकर पूरे देशभर में हिजाब को लेकर विवाद शुरू हुआ. स्कूलों में हिजाब के समर्थन और विरोध में प्रदर्शन किए गए.

ऐसे में कुछ छात्राओं ने स्कूल कॉलेजों में हिजाब पहनने की इजाजत मांगने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया था. मंगलवार को हाईकोर्ट ने याचिकाओं को खारिज कर दिया. अब छात्राओं ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.

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