दिल्ली हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म द्वारा डाटा साझा करने पर चिंता जताते हुये बुधवार को कहा कि अधिकतर यूजर्स को यह जानकारी ही नहीं होती है कि उनका डाटा किसी कैम्ब्रिज एनालिटिका जैसी कंपनी के साथ साझा किया जा रहा है.
जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस पूनम ए बाम्बा की खंडपीठ ने व्हाट्सऐप और उसकी पैरेंट कंपनी मेटा (पूर्व में फेसबुक) की याचिका पर सुनवाई के दौरान अपनी चिंता व्यक्त की.
दोनों कंपनियों ने दिल्ली हाईकोर्ट की एक सदस्यीय पीठ के जून 2021 में जारी आदेश के खिलाफ याचिका दायर की है. हाईकोर्ट की एक सदस्यीय पीठ ने व्हाट्सऐप की नयी प्राइवेसी पॉलिसी के खिलाफ भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) की जांच में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था.
नये आईटी नियमों के खिलाफ व्हाट्सऐप और फेसबुक की याचिका का विरोध करते हुये अक्टूबर 2021 को केंद्र सरकार ने भी हाईकोर्ट को जानकारी थी कि व्हाट्सऐप ने विवाद समाधान अधिकारों को मना करके देश के यूजर्स के मौलिक अधिकारों का पहले ही हनन किया है.
यूजर्स की निजता के अधिकार के हनन के मामले पर चिंता व्यक्त करते हुये खंडपीठ ने कहा कि अधिकतर यूजर्स को पता ही नहीं होता कि उनका डाटा कैम्ब्रिज एनालिटिका जैसे कंपनी के साथ साझा किया जा रहा है.
गौरतलब है कि कैम्ब्रिज एनालिटिका एक ब्रिटिश पॉलीटिकल कंसल्टिंग फर्म है और यह तब सुर्खियों में आयी जब यह खुलासा हुआ कि फेसबुक ने इसके साथ लाखों यूजर्स का डाटा साझा किया था.
ऐसा आरोप है कि फेसबुक ने लाखों यूजर्स का डाटा इस कंपनी के साथ साझा किया था, जिसका इस्तेमाल करके इस कंपनी ने ब्रेग्जिट पर हुये जनमत संग्रह और 2016 के अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में मतदाताओं के रुझान को प्रभावित किया था.
खंडपीठ ने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म डाटा का कैसे इस्तेमाल करते हैं, ये चिंता की बात है.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि नयी प्राइवेसी पॉलिसी यूजर्स को यह अधिकार देती है कि वे अपना डाटा साझा करें या ना करें और ऐसा करने में कोई जबरदस्ती नहीं की जा रही है.
सीसीआई द्वारा व्हाट्सऐप और फेसबुक के खिलाफ जारी नोटिस का जवाब देने की अवधि हाईकोर्ट ने गत तीन जनवरी को बढ़ा दी थी. खंडपीठ ने कहा कि दोनों अपना लिखित जवाब अगली सुनवाई से पहले पेश कर दें.
इस मामले की अगली सुनवाई अब 21 जुलाई को होगी.
(इनपुट आईएएनएस)