नई दिल्ली: इस्लाम परिवार नियोजन की इजाजत नहीं देता. केवल दबाव में संतान न होने की छूट है. अल्लाह ने भरण-पोषण का वादा किया है, मुसलमानों को जनसंख्या में कमी या इच्छा होने पर वृद्धि की दर निर्धारित करने का कोई अधिकार नहीं है. ये विचार उलेमाओं ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान के जवाब में व्यक्त किए हैं कि धर्म के आधार पर जनसंख्या नियंत्रण पर एक व्यापक नीति बनाई जानी चाहिए.
इस्लामिक फिक्ह अकादमी ऑफ दिल्ली के विद्वान मुफ्ती अहमद नादिर कासमी ने कहा कि देश में जनसंख्या का निर्धारण धार्मिक अनुपात के अनुसार किया जाना चाहिए और इसके लिए एक नीति तैयार की जानी चाहिए, यह समझ में नहीं आता है. उन्होंने कहा कि इस्लाम एक प्राकृतिक धर्म है और इसकी स्थिति अलग है. जिन परिस्थितियों में प्रजनन निषिद्ध है, वह सशर्त है.
मुफ्ती अहमद नादिर कासमी ने कहा कि केवल आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण स्वस्थ अवस्था में जनसंख्या नियंत्रण या प्रसव के प्रति सावधानी बरतना ठीक नहीं है. इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता. प्रकृति दुनिया में आने वाले मनुष्यों के अनुपात को निर्धारित करती है. मनुष्य के पास ऐसा करने की शक्ति नहीं है.
इसी तरह, काजी शहर दिल्ली मुफ्ती अफरोज आलम कासमी ने कहा कि इस्लाम परिवार नियोजन के सिद्धांत का समर्थन नहीं करता है और इस पर कोई नीति बनाने की अनुमति नहीं देता है. हां, अगर पति या पत्नी का स्वास्थ्य उन्हें बच्चे पैदा करने की अनुमति नहीं देता है, तो उन्हें छूट है. पहले उन्हें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए, बाद में बच्चे पैदा करने के बारे में सोचना चाहिए.
उन्होंने आगे कहा कि इस संबंध में अल्लाह और रसूल के आदेशों के आलोक में निर्णय लिया जाना चाहिए. अगर कोई परिवार नियोजन करता है, क्योंकि आर्थिक स्थिति इसकी अनुमति नहीं देती है. इस कारण यदि वह संतान को जन्म नहीं देती है, तो यह गलत है, क्योंकि यह कार्य ईश्वर के आदेश के विरुद्ध होगा. क्योंकि अगर इसकी अनुमति दी जाती, तो मनुष्य बच्चे पैदा नहीं करता. दुनिया की व्यवस्था अल्लाह के द्वारा चलाई जानी है, न कि मनुष्य द्वारा. प्रकृति दुनिया में आने वाले मनुष्यों के अनुपात को निर्धारित करती है और यह किसी व्यक्ति या देश के परिवार नियोजन पर निर्भर नहीं हो सकती है.
(इनपुट आवाज द वॉयस)