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जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने उठाए अहम मुद्दे.. बिहार चुनाव, महिला सुरक्षा और दिल्ली दंगा केस में आरोपियों के रिहाई की बात की

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने 2020 के दिल्ली दंगों की साज़िश के मामले में आरोपियों को वर्षों से क़ैद में रखे जाने पर अत्यंत निराशा और गंभीर चिंता जताई. जमाअत ने कहा कि निर्दोष छात्र और एंटी CAA एक्टिविस्ट बिना किसी उचित ट्राइल के लगभग पाँच साल से जेल में हैं.

नई दिल्ली: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने आज यानी कि शनिवार, 1 नवंबर को अपने मासिक प्रेस कांफ्रेस में आगामी बिहार विधानसभा चुनाव, देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध और दिल्ली दंगों के साजिश मामले में लंबे समय से जेल में बंद छात्र कार्यकर्ताओं के विषय पर बात की.

जमाअत ने बिहार विधानसभा चुनाव पर क्या कहा?

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने बिहार के लोगों से आगामी विधानसभा चुनावों में बड़ी संख्या में हिस्सा लेने और विवेक एवं ज़िम्मेदारी के साथ अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल करने की अपील की. जमाअत ने कहा कि वोट देना सिर्फ़ एक अधिकार नहीं है, बल्कि लोकतंत्र को मज़बूत बनाने और एक न्यायपूर्ण, शांतिपूर्ण और विकसित समाज बनाने के लिए एक पवित्र कर्तव्य है. मतदाता पार्टियों और उम्मीदवारों को उनके विज़न, परफॉर्मेंस, ईमानदारी और लोगों की मूल समस्याओं – गरीबी, बेरोज़गारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय – को हल करने की प्रतिबद्धता के आधार पर आंकना चाहिए, न कि भावनात्मक, विभाजक या सांप्रदायिक अपील के आधार पर.

राजनितिक दलों से ये अपील की

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने साथ ही सभी राजनितिक दलों से अपील की कि वे एक सार्थक और सकारात्मक राजनितिक चर्चा में हिस्सा लें. चुनावी सभा और रैलियों में नफरती भाषणों, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण या पर्सनल अटैक करने के बजाय नीतियों और लोगों की भलाई पर ध्यान दें. पैसे और बाहुबल का इस्तेमाल, या सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल लोकतंत्र को बहुत कमज़ोर करता है और चुनावी प्रक्रिया पर लोगों का भरोसा खत्म करता है.

जमाअत ने चुनाव आयोग को क्या कहा?

जमाअत ने चुनाव आयोग से यह भी अपील की है कि वह यह पक्का करे कि चुनाव आज़ादी से, निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हों, और सभी पार्टियों और उम्मीदवारों को बराबर मौका मिले. आचार संहिता के किसी भी उल्लंघन या गलत तरीकों से वोटर्स को प्रभावित करने की कोशिश करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. बिहार राजनितिक जागरूकता और सामाजिक सद्भाव का एक गौरवशाली विरासत रहा है.

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद समझती है कि बिहार के लोग बांटने वाली बातों से ऊपर उठकर ऐसे प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे जो सबके विकास, न्याय और शांति के लिए प्रतिबद्ध हों. इन चुनावों का नतीजा एक बेहतर बिहार और एक मज़बूत भारत के लिए सबकी सामूहिक इच्छा को दिखाना चाहिए.

जमाअत ने महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध पर जताई चिंता

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने पूरे भारत में महिलाओं की लगातार असुरक्षा, यौन हिंसा पर गहरी चिंता व्यक्त की. जमाअत ने कहा कि महाराष्ट्र के सतारा ज़िले के फलटन में एक महिला सरकारी डॉक्टर एक होटल के कमरे में मृत पाई गई. उसने अपनी हथेली पर एक दिल दहला देने वाला नोट लिखा था, जिसमें उसने एक पुलिस अधिकारी एवं अन्य द्वारा बार-बार यौन हिंसा और उत्पीड़न का आरोप लगाया था. इस मामले की पीड़िता सार्वजनिक सेवा से जुडी है, जो पावर के गलत इस्तेमाल और महिलाओं को दुर्व्यवहार और डराने-धमकाने से बचाने के लिए बनाए गए इंस्टीट्यूशनल सिस्टम की नाकामी को दर्शाता है.

जमाअत ने आगे कहा कि नई दिल्ली में, एक हॉस्पिटल कर्मचारी के साथ कथित तौर पर एक डिलीवरी बॉय ने रेप किया, जिसने सोशल मीडिया पर खुद को आर्मी ऑफिसर बताया था और उसका भरोसा जीतने के लिए उसे यूनिफॉर्म वाली तस्वीरें भेजी थीं. यह घटना डिजिटल धोखे का एक भयावह उदाहरण है, जो दर्शाता है कि कैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल अनजान महिलाओं के खिलाफ हथियार के तौर पर किया जा रहा है. दिल्ली के एक और हालिया मामले में एक 18 साल की MBBS की छात्रा ने एक होटल पार्टी के बाद एक दोस्त पर उसे ड्रग्स देने, रेप और ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया है. इससे पता चलता है कि शहरी इलाकों में युवतियों से फायदा के लिए शराब, भरोसे और टेक्नोलॉजी का किस तरह गलत इस्तेमाल किया जा सकता है. यूनिवर्सिटी, हॉस्पिटल, सरकारी ऑफिस और घरों में होने वाले मामले अलग तरह की दुखद घटनाएं नहीं हैं. ये भारतीय महिलाओं द्वारा रोज़ाना झेली जाने वाली असुरक्षा का एक पैटर्न दिखाते हैं, चाहे उनकी पढ़ाई-लिखाई या पेशा कुछ भी हो.

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने कहा कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की लेटेस्ट क्राइम इन इंडिया 2023 रिपोर्ट इस परेशान करने वाले ट्रेंड की पुष्टि करती है. 2023 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,48,211 मामले दर्ज किए गए, जो पिछले साल के मुकाबले लगातार बढ़ोतरी दिखाते हैं. राजस्थान में एक बार फिर राज्यों में सबसे ज़्यादा रेट दर्ज किया गया, जबकि दिल्ली संघ राज्य क्षेत्रों में सबसे ऊपर रहा, जिससे यह पता चलता है कि शहरी और ग्रामीण दोनों भारत में जेंडर-बेस्ड हिंसा से जूझना जारी है. इस डेटा में पतियों और रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता, यौन हमले, ट्रैफिकिंग और और घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत उल्लंघन शामिल हैं. यह सब एक ऐसे समाज की ओर भी इशारा कर रहा है जहाँ नैतिक रोक और हमदर्दी धीरे-धीरे खत्म हो रही है, और जहाँ अपराधी अक्सर बिना किसी डर के काम कर रहा है.

‘महिलाओं के खिलाफ बढ़ते यौन हिंसा को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं’

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने केंद्र और राज्य सरकारों से अपील की है कि वे महिलाओं के खिलाफ बढ़ते यौन हिंसा को रोकने के लिए तुरंत और ठोस कदम उठाएं. इसके लिए सभी मामलों में तेज़ी से ट्रायल और पीड़ित-केंद्रित न्याय सुनिश्चित किया जाए, और पुलिस, न्यायपालिका और हेल्थकेयर वर्कर्स के लिए व्यापक जेंडर-सेंसिटिविटी ट्रेनिंग लागू की जाए. लेकिन, इन प्रशासनिक कदमों से परे पूरा पैटर्न एक गंभीर नैतिक और सामाजिक गिरावट की ओर इशारा करता है जिसे सिर्फ कानून ठीक नहीं कर सकते.

जमाअत का मानना है कि यह संकट सिर्फ पुलिसिंग या न्याय देने में नाकामी नहीं है, बल्कि समाज के अंदर गहरी आध्यात्मिक और नैतिक गिरावट को दर्शाता है. इसलिए जमाअत ने सभी संबंधित नागरिकों से अपील की है कि वे भारत में हर लड़की और महिला के लिए सुरक्षा, सम्मान और न्याय सुनिश्चित करने में सक्रिय भूमिका निभाएं, और यौन उत्पीड़न और यौन अपराधों के खतरे के प्रति अपने सामूहिक दृष्टिकोण पर फिर से विचार करें. सख्त कानूनों के साथ-साथ समाज में नैतिक सुधार भी ज़रूरी है.

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने इस बात पर ज़ोर दिया कि महिलाओं के खिलाफ सेक्शुअल क्राइम की समस्या से पूरी तरह निपटा जाना चाहिए – इसके लिए सख्त कानून, तेज़ी से ट्रायल और अपराधियों को कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए, साथ ही नैतिक सुधार के लिए भी एक आंदोलन चलना चाहिए. जब तक लोग खुदा के डर और मरणोपरांत जवाबदेही जैसी बातों को अपने अंदर नहीं अपनाएंगे, तब तक महिलाओं का शोषण और अपमान होता रहेगा, जो हमारी इंसानियत की आत्मा को खत्म कर देगा.

CAA विरोधी राजनीतिक कैदियों के मामले पर क्या कहा?

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने 2020 के दिल्ली दंगों की साज़िश के मामले में आरोपियों को वर्षों से क़ैद में रखे जाने पर अत्यंत निराशा और गंभीर चिंता जताई. जमाअत ने कहा कि निर्दोष छात्र और एंटी CAA एक्टिविस्ट बिना किसी उचित ट्राइल के लगभग पाँच साल से जेल में हैं. इस तरह की लंबी प्री-ट्रायल हिरासत असल में प्रक्रिया के माध्यम से सजा है, जो इस बुनियादी कानूनी सिद्धांत को कमज़ोर करता है कि बेल नियम है और जेल अपवाद.

जमाअत ने आगे कहा कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ज़मानत याचिकाओं की सुनवाई सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी है, जिससे अभियुक्तों और उनके परिवारों पर पहले से ही भारी पड़ रही अनिश्चितता और बढ़ गई है. इससे भी ज़्यादा चिंताजनक है दिल्ली पुलिस का ज़मानत का कड़ा विरोध, जिसमें 2020 के दंगों को “सत्ता परिवर्तन की कार्रवाई” के रूप में कथित रूप से चित्रित करना भी शामिल है. एक सरकारी एजेंसी की ओर से इस तरह की बयानबाज़ी निष्पक्षता, वस्तुनिष्ठता और आनुपातिकता को लेकर गंभीर चिंताएँ पैदा करती है, और ऐसा लगता है कि अदालतों को सबूतों का आकलन करने का मौका मिलने से पहले ही जनता के मन में मामले के प्रति पूर्वाग्रह पैदा हो गया है.

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद समझती है कि छात्र कार्यकर्ताओं, शोधकर्ताओं और शांतिपूर्ण सीएए-विरोधी प्रदर्शनों में भाग लेने वाले नागरिक समाज के सदस्यों के खिलाफ UAPA के लगातार इस्तेमाल बेहद परेशान करने वाला है. हथियारों की बरामदगी, हिंसा की प्रत्यक्ष घटनाओं या उकसावे के प्रत्यक्ष सबूतों के अभाव में, व्हाट्सएप ग्रुप की सदस्यता, भाषण के अंश या विरोध प्रदर्शनों के समन्वय को “आतंकवाद” की परिभाषा से परे साजिश का सबूत माना गया है. इस तरह की व्याख्याएं असहमति को अपराधी और लोकतांत्रिक विरोध को गैर-कानूनी बताती हैं जबकि ये दोनों ही भारत के संविधान के तहत सुरक्षित हैं. इस मामले में न्यायपालिका के दृष्टिकोण में असंगति भी उतनी ही चिंताजनक है.

उमर खालिद, शरजील इमाम को लेकर कही ये बात

जमाअत ने कहा कि जहाँ कुछ सह-आरोपियों को ज़मानत मिल गई है, वहीं उमर खालिद, खालिद सैफी, गुलफिशा, मीरान, शरजील इमाम और कई अन्य लोग अभी भी जेल में हैं. चयनात्मक व्यवहार और अभियोजन पक्ष की दलीलों में स्पष्ट राजनीतिक संकेत कानून के समक्ष निष्पक्षता और समानता की धारणा पर एक लंबी छाया डाल दी है. “देश को बदनाम करने” या “सांप्रदायिक बंटवारा पैदा करने” जैसे बड़े और बिना सबूत के दावों को भरोसेमंद, पक्के सबूतों की जगह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को लगातार हिरासत में रखने से सभी नागरिकों, खासकर छात्रों, अल्पसंख्यकों और मानवाधिकार रक्षकों को एक डरावना संदेश जाता है कि असहमति जताने के अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल करने पर अनिश्चित काल के लिए जेल हो सकती है. यह भी दुख की बात है कि नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में हिंसा करने वाले असली गुनहगारों को सज़ा नहीं मिली है, जबकि जिन लोगों ने सिर्फ एक विवादित कानून से असहमति जताई थी, वे अभी भी जेल में सड़ रहे हैं.

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने सुप्रीम कोर्ट से अपील करते हुआ कहा कि वह इस मामले को प्राथमिकी तौर पर देखे, ताकि न्याय और संवैधानिक आज़ादी की भावना बनी रहे. जमाअत ने सभी अधिकारियों, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका से आग्रह किया कि वे यह सुनिश्चित करें कि न्याय निष्पक्ष, पारदर्शी और राजनीतिक प्रभाव से मुक्त होकर दिया जाए. हम फिर से कहते हैं कि विरोध करने की आज़ादी लोकतंत्र की आत्मा है, और इसे दबाने से गणतंत्र की बुनियाद ही खतरे में पड़ जाती है. कानून के राज, निष्पक्ष सुनवाई और अधिकारों की समान सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता से ही भारत अपने संविधान में लिखे आदर्शों को बचा सकता है और न्याय की संस्थाओं में लोगों का भरोसा बनाए रख सकता है.

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