नई दिल्ली: जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भाजपा शासित विभिन्न राज्यों में घरों और अन्य इमारतों को गिराने के लिए बुलडोजर के इस्तेमाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, इसे अपराध रोकथाम की आड़ में अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों को निशाना बनाने की साजिश बताया.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा, याचिका में अदालत से राज्यों को आदेश देने के लिए कहा गया है कि अदालत की अनुमति के बिना किसी के घर या दुकान को ध्वस्त ना करें. उत्तर प्रदेश में बुलडोजर की राजनीति पहले से ही चल रही है, लेकिन अब यह नापाक हरकत गुजरात और मध्य प्रदेश में भी शुरू हो गई है.
Jamiat Ulama-e-Hind has filed a petition in the Supreme Court against the dangerous politics of bulldozers that have been started to destroy minorities especially Muslims under the guise of crime prevention in BJP ruled states. https://t.co/6Os0EnbA7A
— Arshad Madani (@ArshadMadani007) April 17, 2022
मध्य प्रदेश के खरगोन शहर में रामनवमी के अवसर पर एक जुलूस के दौरान अत्यधिक भड़काऊ नारे लगाकर हिंसा शुरू की गई और फिर राज्य सरकार के आदेश पर मुसलमानों के घरों और दुकानों को ध्वस्त कर दिया गया. दूसरी ओर, मध्य प्रदेश सरकार अपने क्रूर कृत्य का बचाव कर रही है.
याचिका में केंद्र सरकार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात राज्यों को प्रतिवादी के रूप में नामित किया गया है, जहां हाल के दिनों में मुसलमानों को निशाना बनाया गया है.
याचिका अधिवक्ता सरीम नावेद ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से परामर्श के बाद तैयार की है, जबकि अधिवक्ता कबीर दीक्षित ने इसे ऑनलाइन दायर किया है. अगले कुछ दिनों में भारत के मुख्य न्यायाधीश से याचिका पर जल्द सुनवाई का अनुरोध किया जा सकता है.
देश में पिछले कुछ समय से चल रही नफरत और सांप्रदायिकता पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए मौलाना मदनी ने कहा, देशभर में धार्मिक उग्रवाद और नफरत का माहौल व्याप्त है. अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों को डराने-धमकाने की साजिशें रची जा रही हैं.
उन्होंने कहा, मुस्लिम मुहल्लों में मस्जिदों के बिलकुल सामने आकर उकसाया जा रहा है, पुलिस की मौजूदगी में लाठी-डंडे लहराकर नारे लगाए जा रहे हैं और सब मूक दर्शक बने हुए हैं. ऐसा लगता है जैसे देश में अब न तो कोई कानून रह गया है और न ही कोई सरकार जो उन्हें पकड़ सके. सांप्रदायिक ताकतों द्वारा मुसलमानों का जीना दूभर किया जा रहा है और केंद्र सरकार खामोश है.
उन्होंने कहा, जिस आपराधिक तरीके से पुलिस और प्रशासन ने खरगोन में गुंडों के समर्थन में काम किया है, उससे पता चलता है कि कानून लागू करना अब उनका लक्ष्य नहीं है. अगर पुलिस और प्रशासन ने संविधान के प्रति थोड़ी भी वफादारी दिखाई होती, तो मुसलमानों में करौली, राजस्थान को निशाना नहीं बनाया जाता और खरगोन में उनके घर और व्यवसाय नष्ट नहीं होते.
मौलाना अरशद मदनी ने कहा, हमने देश के उत्पीड़ित लोगों को न्याय दिलाने और देश के संविधान और लोकतंत्र को बचाने और कानून के शासन को बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. हमें उम्मीद है कि इस मामले में न्याय होगा. इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर यूपी सरकार द्वारा लगाए गए जुर्माने को रद्द कर दिया था और इसके लिए सरकार को फटकार लगाई थी.
उन्होंने कहा कि जब सरकार अपने संवैधानिक कर्तव्य को पूरा करने में विफल रहती है और उत्पीड़ितों की आवाज पर चुप रहती है, तो अदालतें न्याय की एकमात्र आशा की किरण होती हैं.
मदनी ने कहा, हमें पहले भी न्यायपालिका से न्याय मिला है, इसलिए हमें विश्वास है कि हमें इस महत्वपूर्ण मामले में सर्वोच्च न्यायालय से अन्य मामलों की तरह न्याय मिलेगा और अदालत धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए कड़ा फैसला करेगी. सकारात्मक परिणाम आने तक हमारा कानूनी संघर्ष जारी रहेगा.
–आईएएनएस