बेंगलुरू: विपक्ष के कड़े विरोध के बीच विवादास्पद संशोधन विरोधी विधेयक कर्नाटक विधान परिषद में पारित हो गया. कांग्रेस और एचडी कुमारस्वामी की जनता दल सेक्युलर ने सदन में बिल का विरोध किया. विपक्ष ने तर्क दिया कि ऐसा कानून संविधान में निहित धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करेगा.
वहीं सरकार ने विपक्ष के दावे को खारिज करते हुए कहा कि यह कानून लोगों को जबरन धर्म परिवर्तन से बचाएगा. धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण विधेयक, 2021, जिसे धर्मांतरण विरोधी विधेयक के रूप में जाना जाता है, को कर्नाटक विधान सभा द्वारा दिसंबर 2021 में पारित किया गया था. लेकिन तब इसे विधान परिषद के समक्ष नहीं लाया गया, क्योंकि उस समय सत्ताधारी भाजपा के पास उच्च सदन में बहुमत नहीं था.
आवाज़ द वॉयस की खबर के मुताबिक, बिल पेश करते हुए गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने कहा कि यह बिल अवैध धर्मांतरण को रोकता है. नए कानून के तहत, गलत बयानी, जबरदस्ती, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, लालच या किसी धोखाधड़ी से धर्मांतरण को रोकने के लिए विधेयक पेश किया जा रहा है.
कानून में सजा का दायरा
इस कानून का उल्लंघन करने वालों को तीन से पांच साल की कैद और 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. नाबालिग का धर्म परिवर्तन करने पर दस साल तक की कैद और 50,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है. सामूहिक धर्मांतरण के मामले में 1 लाख का जुर्माना लगाया जा सकता है. दोबारा अपराध करने पर दो लाख तक का जुर्माना और कम से कम पांच साल की कैद की सजा हो सकती है.
विपक्ष ने बिल के खिलाफ क्या कहा?
इस विधेयक का विरोध करते हुए विधान परिषद में विपक्ष के नेता बीके हरिप्रसाद ने कहा कि यह एक असंवैधानिक विधेयक है और संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 15 और 29 के खिलाफ है. उन्होंने कहा, ‘‘सरकार कहती है कि यह किसी समुदाय के खिलाफ नहीं है, लेकिन ट्रेजरी बेंच की ओर से बोलने वाले ज्यादातर सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ जहर उगल रहे थे.’’ कानून मंत्री ने सरकार का बचाव किया. कानून मंत्री जेसी मधुस्वामी ने कहा कि यह बिल जबरन धर्म परिवर्तन से बचने के लिए बनाया गया है. जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया और शिकायत मिली तो कार्रवाई की जाएगी.
आपको बता दें कि भाजपा शासित राज्यों में धर्मांतरण विरोधी विधेयकों को पारित करने का आंदोलन तब शुरू हुआ, जब उत्तर प्रदेश ने 2020 में अवैध धर्मांतरण निषेध अध्यादेश पारित किया. मध्य प्रदेश, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश ने भी इसी तरह के कानून पारित किए हैं. इससे पहले ओडिशा, छत्तीसगढ़ और गुजरात ने भी इसी तरह के कानून पारित किए थे. उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट, 2018, शादी के मकसद से जबरन धर्म परिवर्तन पर रोक लगाता है.