हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) का उच्च स्थान

हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) का उच्च स्थान

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(अल्लाह दयावान, कृपाशील के नाम से)

प्रिय दर्शको,

आज हम आपको हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) के बारे में कुछ बातें बताएँगे। हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) चालीस वर्ष की आयु में मुहम्मद (सल्ल.) के निकाह में आईं और लगभग 25 वर्ष तक आपके साथ जीवन-संगिनी के रूप में रहीं। अल्लाह ने आप (सल्ल.) को जो भी संतान दी वह हज़रत ख़दीजा के माध्यम से ही प्रदान की, सिवाय हज़रत इबराहीम के जो हज़रत मारिया (रज़ि.) के गर्भ से थे, जो मिस्र से मक्का आईं थीं। उस समय आप (सल्ल.) की आयु लगभग 60 साल हो चुकी थी।

हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) ने जीवन-संगिनी का कर्तव्य पूरी तरह निभा दिया। उनके साथ आप (सल्ल.) का जीवन बहुत सुखद और सुखी रहा। अल्लाह के रसूल (सल्ल.) दुनिया की बिगड़ी व्यवस्था से बहुत दुखी रहा करते थे। आप (सल्ल.) ने किसी बुत की कभी पूजा नहीं की। अज्ञानतापूर्ण बातों से आप (सल्ल.) दूर रहे। उससे पहले ही लोगों ने आपको ‘अमीन’ (यानी अमानतदार) और ‘सादिक़’ (यानी बहुत अधिक सच्चे) की उपाधियाँ दे रखी थीं।

नबी (सल्ल.) चिंतन-मनन करते। लेकिन ज़ाहिर है कि उनके पास कोई मार्गदर्शन नहीं था, कोई वह्य (ईश-प्रकाशना) नहीं थी। हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) उस समय भी और पैग़म्बरी मिलने के बाद भी आप (सल्ल.) का साथ देती रहीं। चुनाँचे हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) के इंतिक़ाल के बाद भी नबी (सल्ल.) उनको बहुत याद करते थे। आप (सल्ल.) के अल्लाह की ओर से नबी बनाए जाने के बाद, हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) ने अपनी सारी दौलत आप (सल्ल.) के क़दमों में लाकर डाल दी। उस दौलत का इस्तेमाल नबी (सल्ल.) ने इस्लाम के प्रचार-प्रसार और निर्धनों एवं ज़रूरतमंदों के काम आने पर ख़र्च किया।

हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को पैग़म्बरी मिलने के बाद की घटना है। एक बार अल्लाह के एक फ़रिश्ते हज़रत जिब्रील अमीन (अलैहि.) आए और कहा, “ऐ अल्लाह के रसूल, मैं अल्लाह की तरफ़ से आपकी सेवा में आया हूँ और अल्लाह तआला की ओर से एक सन्देश लाया हूँ। वह सन्देश यह है कि….” इतना कहकर उन्होंने एक ओर इशारा करते हुए कहा, “देखिए, वो ख़दीजा आ रही हैं और वो एक कटोरा ला रही हैं। उनके कटोरे में कोई खाने की चीज़ है।……अल्लाह तआला की ओर से मैं उनके लिए सलामती का सन्देश लेकर आया हूँ और मैं जिब्रील भी उनकी सेवा में सलाम पेश करता हूँ। ख़दीजा का जो व्यवहार और साथ निभाने का गुण है, उसकी वजह से अल्लाह तआला ने उनके लिए जन्नत (स्वर्ग) में एक महल बनाया है, इसकी ख़बर आप उन्हें अभी दे दीजिए।”

हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) के इंतिक़ाल के बाद भी, जब वे लगभग 65 वर्ष से अधिक की हो चुकी थीं, उस समय भी नबी (सल्ल.) बहुत आदर-सम्मान और प्रेम तथा निष्ठा के साथ उनका ज़िक्र किया करते थे और आप (सल्ल.) के यहाँ जब भी क़ुरबानी होती, तो क़ुरबानी के गोश्त को उनकी सहेलियों को तोहफ़े के रूप में भेजा करते थे।

तो यह था हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) का व्यवहार। उन्होंने अपने पति के लिए और अल्लाह के दीन (इस्लाम) की ख़ातिर अपने जीवन को पूर्णतः समर्पित कर दिया था। इसलिए हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) का स्थान बहुत ऊँचा है। इसी लिए हम उनको ‘उम्मुल-मोमिनीन’ (यानी ईमानवालों की माँ) कहते हैं। वे केवल नबी (सल्ल.) पत्नी और जीवन-संगिनी ही नहीं थीं, बल्कि सारे ईमानवालों के लिए माँ की तरह प्रतिष्ठित थीं। सिर्फ़ हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) ही नहीं, बल्कि अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की तमाम पत्नियाँ ईमानवालों के लिए माँ का दर्जा रखती हैं और इस प्रकार उन्हें ‘उम्महातुल-मोमिनीन’ (ईमानवालों की माएँ) कहा जाता है।
सलाम हो हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) पर अल्लाह तआला की असीम कृपा हो।

आप और हम जो मरेंगे और एक लम्बा समय बीतेगा, जो कितना लम्बा होगा अल्लाह ही जानता है। और जब हम आख़िरत में अल्लाह की दया से जन्नत के हक़दार ठहरेंगे, तब कभी-कभी हमको नबी (सल्ल.) और हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) का दीदार करने का भी सौभाग्य मिलेगा। उस समय हम देखेंगे कि नबी (सल्ल.) की क्या शान होगी।

अतः मेरे भाइयो, अपनी ज़िन्दगी को अल्लाह की राह में लगा दीजिए, राहे-मुहब्बत में लुटा दीजिए, ताकि हम हमेशा की ज़िन्दगी में नबी (सल्ल.) और आपकी पवित्र पत्नी हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) के महान व्यक्तित्व के दर्शन कर सकें।

अल्लाह तआला हमें और आपको भले काम करने की ओर उन्मुख करे।

व आख़िरु दअवा-न अनिल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल-आलमीन।

SADAA Enterprises

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