जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा- जुल्म सह लेंगे लेकिन देश पर आंच नहीं आने देंगे…

सहारनपुर: उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के देवबंद में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी के नेतृत्व में मुस्लिम संगठनों की दो दिवसीय इजलास शनिवार को शुरू हुई.

इस इजलास में पूरे देश से करीब 5 हजार मुस्लिम उलेमा ने शिरकत की और इजलास में मुल्क के वर्तमान हालात पर चर्चा की जा रही है.

इस इजलास में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने भी अपनी बात रखी और कहा कि हालात तो मुश्किल है लेकिन मायूसी की कोई ज़रूरत नहीं है, कोई मौका नहीं है मायूसी का.

उन्होंने कहा कि अभी कुछ दिन पहले मैं सोच रहा था कि हमें मुश्किल ज़रूर है और मुश्किल को झेलने के लिए हमें सहारा चाहिए. हम कमज़ोर लोग हैं और कमज़ोरी का ये मतलब नहीं है कि कोई हमारे बारे में कुछ भी बोलता रहे. जमीयत उलेमा-ए-हिंद का यह फैसला है कि हम ज़ुल्म को बर्दाश्त कर लेंगे. अगर जमीयत उलेमा-ए-हिंद का ये फैसला है कि हम दुखों को सह लेंगे लेकिन मुल्क पर आंच नहीं आने देंगे, तो ये फैसला कमज़ोरी की वजह से नहीं बल्कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ताक़त की वजह से है और हमें ये ताक़त क़ुरआन ने दी है. हम सब कुछ बर्दाश्त कर सकते हैं लेकिन अपने ईमान के साथ समझौता नहीं कर सकते हैं.

उन्होंने आगे कहा कि हमारा ईमान हमें सिखाता है कि हमें मायूस नहीं होना है.

मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि उनका प्लान किया है? वह चाहते किया हैं? मेरे साथियों सुन लो- बहुसंख्यक लोग उनके साथ नहीं हैं जो नफरत के पुजारी हैं, जो नफरत के खिलाडी हैं उनकी अक्सरियत नहीं हैं. पहले तो वह बहुत छोटी अकलियत थे. आज वह ज़्यादा नज़र आ रहे हैं और अगर हम ने उन्हीं के अंदाज़ में जवाब देना शुरू कर दिया तो वह अपने मक़सद में कामयाब हो जायेंगे.

मुल्क की खामोश अक्सरियत आज भी इस बात को अच्छी तरह समझती है कि नफरत की बाजार सजाने वाले लोग मुल्क दुश्मन और गद्दार हैं. वह मुल्क दुश्मनों के एजेंट हैं और नफरत का जवाब कभी नफरत से नहीं हो सकता. नफरत को मोहब्बत से बुझाया जा सकता है.

उन्होंने कहा कि मैं कह देना चाहता हूं कि अगर ज़रूरत पड़ी तो देश के लिए क़ुर्बान हो जायेंगे, हम ने अपने बुज़र्गों से सीखी है लेकिन ज़ुल्म बर्दाश्त कर लेना, अन्याय अत्याचार को सह लेना, गालियां खा लेना, बेइज़्ज़त हो जाना और बेइज़्ज़त होकर भी खामोश रह जाना, ये कोई हम से सीखे. तू तू मैं मैं करना तो बहुत आसान है ये तो एक आम आदमी की प्रतिक्रिया होती है, तुम हमारे बड़ों को गालियां दोगे तो हम भी गालियां देंगे, ये हर आदमी करता है लेकिन मुस्लमान नहीं कर सकता है, न किया है और न ही कभी करेंगे.

उन्होंने कहा कि मेरे मुल्क में मुझसे ही पूछते हैं कि तुम कहां से आये हो? कौन हो और क्या नाम है? ये लोग बात देश की एकता और अखंडता की बात करते हैं, देश को अखंड भारत बनाने की बात करते हैं और मुल्क के मुसलमानों को रास्ता चलना दुश्वार कर दिया है. वह लोग किस अखंड भारत की बात कर रहे हैं? आप मुल्क के साथ दुश्मनी कर रहे हैं वापस आ कर देखिये कि आप क्या खो रहे हैं और क्या पा रहे हैं.

उन्होंने कहा कि इम्तिहान हमारे सब्र का है और ये हमारी ताक़त है. सब्र कमज़ोरी की अलामत नहीं है. ज़रूरत पड़ी तो देश को आबाद करेंगे और ये किसी के फैसले से नहीं होगा ये आप के फैसले से होगा. कोई बोलेगा तो कोई लिखेगा लेकिन जो भी फैसला होगा, आपका होगा, किसी और का नहीं होगा.

उन्होंने कहा कि मस्जिदों के बारे में बात होगी लेकिन जमीअत के फैसले के बाद. जमीअत का जो भी फैसला होगा उसके बाद हम पीछे नहीं हटेंगे.

उन्होंने कहा कि जिसने देश के लिए क़ुर्बानी दी हो उसको ज़्यादा देश की फ़िक्र होगी या जिसने माफ़ी मांगी है उसको होगी. उन्होंने कहा कि एक जोश की ज़रूरत है जो मुल्क को गलत रास्ते पर जाने से बचाये, जो उनकी प्लानिंग को नाकाम करे.

उन्होंने कहा कि हम वह नहीं करेंगे जो आप करवाना चाहते हैं, हम वह करेंगे जिसको जिस वक़्त सही समझेंगे, तुम्हारी बनाई हुई प्लानिंग पर हम नहीं चलेंगे, हम अपनी प्लानिंग पर चलेंगे.

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