नई दिल्ली: हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि मंदिर मस्जिद करने से देश में नफरत पैदा होगी. देश के कई मुस्लिम नेताओं ने भागवत के इस बयान का स्वागत किया है. लेकिन नेताओं ने संघ परिवार और उसके सहयोगियों की कार्रवाइयों पर शक जताया है. मुस्लिम नेताओं ने कहा है कि जैसा मोहन भागवत कहते हैं उन्हें वैसा करना भी चाहिए.
कांग्रेस नेता हुसैन दलवई ने भागवत के बयान की तारीफ की. लेकिन उन्होंने सामाजिक तनाव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की भूमिका पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा, “मोहन भागवत का बयान सही है, लेकिन मुसलमानों के खिलाफ हिंसा-भीड़ की तरफ से कत्ल, उनके घरों को ध्वस्त करना और दूसरे दमनकारी कामों के बारे में उनका क्या कहना है? ये काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की विचारधारा का पालन करने वाले लोग करते हैं. उन्हें रोकने के लिए कुछ क्यों नहीं किया जाता?”
महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता नसीम खान ने भी भागवत के बयान का स्वागत किया, लेकिन इसको लागू करने पर शक जताया है. उन्होंने कहा, “ऐसे बयानों को सुनना अच्छा है, लेकिन उनका असर क्या है? भारत में आज संघर्ष हो रहा है, मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है, भीड़ की तरफ से कत्ल जारी हैं और यहां तक कि संविधान पर भी हमला हो रहा है.” उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) एकता की बात करता है, लेकिन विभाजन का अभ्यास करता है. ये गड़बड़ी पैदा करने वाले लोग संघ परिवार से जुड़े हुए हैं.”
एनसीपी (एसपी) नेता और पूर्व सांसद मजीद मेमन ने भी अपनी चिंता जाहिर की है. मेमन ने कहा, “भागवत अक्सर अच्छे बयान देते हैं, लेकिन उन्हें शायद ही कभी लागू किया जाता है. उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के भीतर इन मुद्दों को बताना चाहिए. प्रचार के बजाय सही बदलाव पर ध्यान देना चाहिए.” उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री का ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा एक साजिश जैसा लगता है. मुसलमानों के घरों पर बुलडोजर चलाया जाता है, मस्जिदों को ध्वस्त किया जाता है. भागवत के शब्दों को कार्रवाई में बदलने की जरूरत है.”
समाजवादी पार्टी की सांसद इकरा चौधरी ने भी भागवत के बयान का स्वागत किया. उन्होंने दूसरे भाजपा नेताओं से भी ऐसा ही करने को कहा. चौधरी ने कहा, “मोहन भागवत से ऐसा बयान सुनना हैरतअंगेज है. मुझे उम्मीद है कि यह बदलाव का संकेत है. देश को राजनीतिक फायदे के लिए धर्म का दोहन करने के बजाय वास्तविक सार्वजनिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है.”
इससे पहले गुरुवार को पुणे में एक प्रग्राम में भागवत ने देश भर में मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उभरने पर चिंता जाहिर की. उन्होंने ऐसे लोगों की आलोचना की जो खुद को “हिंदुओं के नेता” के तौर पर पेश करने के लिए ऐसे मुद्दों का फायदा उठाते हैं. उन्होंने कहा, “राम मंदिर आस्था से जुड़ा था तथा हिंदू इसे बनवाना चाहते थे. लेकिन नफरत की वजह से नए स्थलों के बारे में विवाद खड़ा करना ठीक नहीं है.”