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‘फ्रीडम ऑफ स्पीच और एक्सप्रेशन को समझना होगा’, सुप्रीम कोर्ट ने MP इमरान के मामले में पुलिस को लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि संविधान लागू होने के 75 साल बाद तो 'कम से कम' पुलिस को फ्रीडम ऑफ स्पीच और एक्सप्रेशन को समझना चाहिए.

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में सोमवार, 3 मार्च को राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी द्वारा कथित रुप से भड़काऊ गीत शेयर करने के मामले में सुनवाई हुई. जहां कोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि संविधान लागू होने के 75 साल बाद तो ‘कम से कम’ पुलिस को फ्रीडम ऑफ स्पीच और एक्सप्रेशन को समझना चाहिए.

बता दें कि भड़काऊ गीत मामले में इमरात प्रतापगढ़ी के खिलाफ गुजरात पुलिस ने कार्रवाई शुरू की थी. इसके बाद इमरान ने पुलिस की कार्रवाई पर रोक लगाने की अपील करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. उसी याचिका पर कल सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई.

क्या है पूरा मामला, गुजरात पुलिस ने क्या कहा?

दरअसल, गुजरात के जामनगर में आयोजित सामूहिक विवाह समारोह के दौरान कथित भड़काऊ गीत के लिए प्रतापगढ़ी के खिलाफ तीन जनवरी को प्राथमिकी दर्ज की गई थी. गुजरात पुलिस की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ‘‘सड़क छाप” किस्म की कविता थी और इसे फैज अहमद फैज जैसे प्रसिद्ध शायर और लेखक से नहीं जोड़ा जा सकता. उन्होंने कहा, ‘‘(सांसद के) वीडियो संदेश ने परेशानी पैदा की.”

बेंच ने फैसला सुरक्षित रखा

वहीं राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि वीडियो संदेश प्रतापगढ़ी ने नहीं बल्कि उनकी टीम ने साझा किया था. मेहता ने कहा कि सांसद को उनकी टीम द्वारा उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर वीडियो संदेश अपलोड किए जाने पर भी जवाबदेह ठहराया जाएगा. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद बैंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया.

‘पुलिस को संविधान के अनुच्छेद पढ़ना और समझना चाहिए’

इमरान के मामले की सुनवाई जस्टिस अभ्य एस ओका और जस्टिस उज्जवल भुइयां की बेंच कर रही थी. जहां बेंच ने सुनवाई के दौरान संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन को हाइलाइट किया. जस्टिस ओका ने सुनवाई के दौरान कहा जब अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात आती है, तो इसे सुरक्षित करना होगा. उन्होंने आगे कहा कि प्राथमिकी दर्ज करने से पहले पुलिस को कुछ संवेदनशीलता दिखानी होगी. उन्हें (संविधान के अनुच्छेद को) पढ़ना और समझना चाहिए.

‘कविता किसी धर्म के विरुद्ध नहीं’

जस्टिस ओका ने आगे कहा कि ‘‘आखिरकार तो यह एक कविता” थी और वास्तव में यह अहिंसा को बढ़ावा देने वाली थी. जस्टिस ओका ने कहा, ‘‘इसके ट्रांसलेशन में कुछ समस्या प्रतीत होती है. यह किसी धर्म के विरुद्ध नहीं है. यह कविता अप्रत्यक्ष रूप से कहती है कि भले ही कोई हिंसा में शामिल हो लेकिन हम हिंसा में शामिल नहीं होंगे. कविता यही संदेश देती है.”

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