Homeदेशभारत में सबसे ज़्यादा ग़ैर महफ़ूज़ मुसलमान हैं: असदुद्दीन ओवैसी

भारत में सबसे ज़्यादा ग़ैर महफ़ूज़ मुसलमान हैं: असदुद्दीन ओवैसी

हैदराबाद: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अपने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वह कह रहे हैं कि ‘भारत में अगर सब से ज़्यादा किसी की बेइज्जती की जाती है तो वह मुसलमान हैं. भारत में अगर सबसे ज़्यादा कोई ग़ैर महफ़ूज़ है तो वह मुसलमान हैं.’

उन्होंने कहा कि देश तो आज़ाद हो गया लेकिन देश में गौ रक्षकों को जो आज़ादी मिली है वह नहीं मिलनी चाहिए.

ओवैसी ने भाषण के दौरान कहा कि इतिहास में मुसलमानों का योगदान किसी और से कम नहीं है, हमें साथ मिलकर आजादी का जश्न मनाना है. उन्होंने कहा कि हमारे देश को आजादी तो मिल गई है लेकिन आज भी गरीबी से छुटकारा नहीं पाया जा सका है. आज भी देश में किसानों की आय कम है.

पल पल न्यूज़ की खबर के अनुसार, ओवैसी ने कहा कि हमारे लिए आजादी का मतलब कतई नहीं कि गौरक्षकों को कुछ भी करने की आजादी मिल जाए. आज देश में अगर कोई सबसे पिछड़ा है तो मुसलमान हैं. उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि चीन ने आज हमारे 100 स्क्वायर किलोमीटर पर कबजा कर लिया है लेकिन कोई आवाज उठाने वाला नहीं है. सब मिलकर रहेंगे तभी इस देश का विकास होगा लोग खुशहाल होंगे.

ओवैसी ने कहा कि एक तरफ जब पूरा देश आजादी के 75वां साल मना रहा है, वहीं दूसरी तरफ फासीवादी और सांप्रदायिक ताकतें चाहती हैं कि देश की आजादी की जो लड़ाई मुसलमानों ने लड़ी है उसे खत्म कर दिया जाए. ये ताकतें इतिहास को विकृत करने की कोशिश कर रही हैं ताकि या तो आजादी की लड़ाई में मुसलमानों की भूमिका को मिटाया जा सके या इसे नजरअंदाज किया जा सके.

ओवैसी ने कहा, ‘हमारे वतन में जो जाहिल लोग हैं और जिन्होंने हमारे देश के लोगों में मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरा है, हम उनको एक आईना दिखाना चाहते हैं और बताना चाहते हैं कि इस मुल्क की आज़ादी की लड़ाई में मुसलमानों का क्या किरदार रहा है. 15 अगस्त को देश को आजादी मिली लेकिन क्या सिर्फ 1910 और 1920 की जद्दोजहद से ही देश को आज़ादी मिली, तो इसके लिए तारीख को देखना पड़ेगा.’

असदुद्दीन ओवैसी ने आगे कहा, ‘1947 में मुल्क आजाद हुआ तो 1857 में जंग-ए-आज़ादी मिली. 1857 से पहले 1757 में एक और जंग हुई थी बैटल ऑफ प्लासी यानी सिराजुद्दौला की जंग. उसके बाद 1764 में जंग-ए-बक्सर हुई. 1774 में रोहिला की जंग हुई और फिर 1799 में टीपू सुल्तान की शहादत हुई. जो कुर्बानी टीपू सुल्तान ने दी, उससे एक हौसला मिला, रोहिला की जंग से एक हौंसला मिला, बक्सर की जंग से हौंसला मिला.’

सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ‘1947 में आजादी मिली लेकिन हम मुल्क की आजादी को 1920 से ही देखेंगे, यक़ीनन लोगों ने कुर्बानी दी. लेकिन क्या हम सिराजुद्दौला की कुर्बानी भूल जाएंगे? क्या हम भूल जाएंगे उनको, जो बक्सर की जंग में शहीद हुए थे? क्या हम रोहिला की जंग को भूल जाएंगे? इसीलिए हम सबको ये याद रखना जरूरी है.’

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