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यक़ीन है कि सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम महिलाओं के सम्मान और आज़ादी को महफूज रखेगाः मौलाना कल्बे जवाद नक़वी

नई दिल्ली: हिजाब के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यी बेंच के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने कहा है कि हमें यक़ीन है सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम पर्सनल लॉ और भारत के संविधान की रोशनी में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों और आज़ादी को महफ़ूज़ रखेगा.

आवाज- द वॉयस की खबर के अनुसार, मौलाना ने कहा कि हमारा संविधान मुस्लिम महिलाओं को सम्मानजनक और सशक्त जीवन जीने की अनुमति देता है. इस अधिकार और सम्मान को अनुशासन का बहाना बना कर ठेस न पहुंचाई जाए.

मौलाना ने अपने बयान में कहा कि हिजाब इस्लाम का अटूट अंग है और मुस्लिम महिलाओं की पहचान है. हिजाब महिलाओं की आज़ादी और तरक़्क़ी में रुकावट नहीं बनता, उसकी हज़ारों मिसालें मौजूद हैं.

एक बेहतरीन मिसाल मेरी बेटी है जिसने हिजाब में रहते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय से 8 स्वर्ण पदक हासिल किए हैं. ये मिसाल उन लोगों के मुंह पर तमाचा है जो तंज़ करते हैं कि हिजाब शिक्षा और तरक़्क़ी में बाधा हैं.

मौलाना ने कहा कि हिजाब की आड़ में मुस्लिम महिलाओं के सम्मान और आज़ादी पर हमला न किया जाये. जो लड़कियां हिजाब पहनना चाहती हैं यह उनकी पसंद और आज़ादी का मामला है. इसलिए हिजाब पर राजनीति करना देश के हित में नहीं है.

मौलाना ने कहा कि कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ के ख़िलाफ़ था. कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब के मसले को सही तरीके से समझने की कोशिश नहीं की, इसीलिए यह विवाद इतना बढ़ गया है.

उन्होंने कहा कि मुसलमानों को अदालत पर पूरा भरोसा है, लेकिन शरीयत के मसलों में हस्तक्षेप करने से पहले अदालत मुस्लिम उलेमा से क़ुरान और मुस्लिम पर्सनल लॉ के आयामों को समझने के लिए संपर्क कर सकती है.

उन्होंने कहा कि अदालत को शरई मामलों में अंतिम राय देने का अधिकार हासिल नहीं हैं जैसा कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब पर प्रतिबंध लगाते हुए कहा है कि ‘हिजाब इस्लाम का अटूट हिस्सा नहीं है, इसलिए इसे प्रतिबंधित किया जा सकता है’.

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