नई दिल्ली: सहारनपुर स्थित विश्व प्रसिद्ध इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद में आज़ादी का जश्न मनाया गया. जश्न ए आज़ादी कार्यक्रम में जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि जिन लोगों ने देश की आजादी में रत्ती भर योगदान नहीं दिया, वही आज देश के लिए जान देने वाले मुसलमानों को देशद्रोही बता रहे हैं.
मिल्लत टाइम्स की खबर के अनुसार, मौलाना अरदश मदनी ने देश की जंग ए आजादी में दिए गए उलेमा और मुसलमानों के योगदान पर रोशनी भी डाली. अरशद मदनी ने कहा कि बड़े दुख की बात है कि असल में देशद्रोही वे हैं जो देश में नफरत का माहौल पैदा करके दिलों को बांटने का काम कर रहे हैं.
बिना किसी का नाम लिए मौलाना मदनी ने कहा, ‘हमने हमेशा इस देश के प्यार मोहब्बत भाईचारे और एकता अखंडता को हमेशा मजबूत करने का काम किया है. लेकिन आपने कुछ साल में ही देश को नफरत की आग में झोंक दिया है. नफरत की राजनीति छोड़कर देश के विकास की सियासत की जानी चाहिए.’
मौलना मदनी ने कहा कि जिस समय किसी के अंदर अंग्रेज के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत नहीं थी, उस समय उलेमा ने देश की आजादी की लड़ाई का बिगुल बजाया. उन्होंने कहा कि साल 1803 के आसपास देश के सबसे ज्यादा सम्मानित इस्लामिक विद्वान एवं मदरसा संचालक शाह वलीउल्लाह देहलवी के बेटे शाह अब्दुल अजीज देहलवी ने हिंदुस्तान को दारूल हरब यानि युद्ध की भूमि घोषित करते हुए अंग्रेजो के खिलाफ जिहाद का फतवा जारी कर दिया था.
इससे सभी मुस्लिमों और हिन्दुओं का अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करना फर्ज हो गया था. मदनी ने याद दिलाया कि अंग्रेजों ने शाह अजीज पर जबरदस्त जुलम ढाए और उनका मदरसा भी तहस नहस कर दिया. लेकिन वह अपने रास्ते से हटे नहीं. उलेमा ए देवबंद ने 200 साल तक आजादी की लड़ाई लड़ी.
देश के बंटवारे पर मौलना मदनी ने कहा, ‘बंटवारे से भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश तीनों को बड़ा नुकसान हुआ है. तीनों इकट्ठे होते तो आज चीन और रूस जैसी ताकतें इसका मुकाबला करने की हिम्मत नहीं कर सकती थीं.’