Supreme Court On Waqf: वक़्फ़ संशोधन कानून 2025 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज यानी कि बुधवार, 16 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सर्वोच्चा अदालत ने कई महत्वपूर्ण बिंदूओं पर टिप्पणी करते हुए केंद्र सरकार से कई सवाल किए. बता दें कि चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की खंडपीट वाली बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट ने वक़्फ़ संशोधन कानून 2025 के खिलाफ दायर लगभग 70 याचिकाओं पर सुवाई की. इस दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का हिस्सा बनने की इजाजत दी जाएगी.
कोर्ट ने कहा..
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से पूछा कि वक़्फ़ बाय यूजर को कैसे अवैध ठहराया जा सकता है, इसकी वजह ये है कि बहुत से लोगों के पास इस तरह के वक़्फ़ को रजिस्टर्ड कराने के लिए महत्वपूर्ण और जरुरी दस्तावेज पूरे नहीं होंगे. इस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल पूछा कि वक़्फ़ बाय यूजर को कैसे रजिस्टर करेंगे, उनके पास कौन से दस्तावेज़ होंगे? कोर्ट ने कहा कि इससे पहले से स्थापित चीजों को खत्म करने की नौबत आ जाएगी. इसका नाजायज इस्तेमाल हुआ है, लेकिन कुछ असली वक़्फ़ भी हैं.
कोर्ट ने केंद्र सरकार से आगे कहा कि उन्होंने प्रिवी काउंसिल के फैसलों को भी देखा है, वक़्फ़ बाय यूजर को मान्यता प्राप्त है. ऐसे में अगर आप इसे खारिज करते हैं, तो कई परेशानियां पैदा हो जाएंगी.
‘मुस्लिमों को हिंदू धार्मिक ट्रस्ट बोर्डों का हिस्सा बनने की इजजात देंगे?’
सुनवाई के दौरान केंद्र का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबका वक़्फ़ कानून के अधीन नहीं आना चाहता है. तुषार मेहता की इस दलील पर कोर्ट ने उनसे पूछा कि क्या आप यह कह रहे हैं कि अब से आप मुस्लिमों को हिंदू धार्मिक ट्रस्ट बोर्डों का हिस्सा बनने की इजजात देंगे? इस बिंदु पर जरा खुलकर बात रखें. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जब कोई सार्वजनिक ट्रस्ट 100 या 200 साल पहले वक़्फ़ घोषित हुई थी, तो अब अचानक वक़्फ़ बोर्ड के जरिये उसे जब्त कर उसके स्वरूप को बदला नहीं जा सकता है. आप इतिहास को दोबारा नहीं लिख सकते हैं.