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‘मानव अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन..’ बंगाली भाषी लोगों को अवैध रूप से किया गया डिटेन- बोले APCR के नेशनल सेक्रेटरी नदीम खान

एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स के नेशनल सेक्रेटरी नदीम खान ने कहा कि एक पुश बैक की पॉलिसी बना दी गई है और यह मान लिया गया है कि अगर बंगाली बोलने वाला मुसलमान है तो वो बांग्लादेशी है.

Nadeem Khan On Bengali speaking people were illegally detained: देश में बंगाली भाषी लोगों को अवैध बांग्लादेशी बताकर लगातार परेशान किया जा रहा है. ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक, बड़ी संख्या में बंगाली भाषी मुसलमानों को जबरन बांग्लादेश भेज दिया गया. भारत सरकार द्वारा की जा रही इस कार्रवाई पर एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR)  के नेशनल सेक्रेटरी नदीम खान ने कहा कि भारत के कई राज्यों छत्तीसगढ़, असम, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली- एनसीआर में बंगाली भाषी लोगों का उत्पीड़न किया जा रहा है. राजस्थान के जयपुर में लगभग आठ से दस हजार बंगाली भाषी लोगों को डिटेन किया गया और उनसे दस्तावेज मांगे गए.

ऐसा ही अहमदाबाद और सूरत में देखने को मिला, जहां लगभग दस हजार लोगों को डिटेन कर के तीन – चार दिनों तक रखा गया. इसके बाद पता चला कि उसमें महाराष्ट्र और बिहार के लोग है.

‘पुरूषों, महिलाओं और बच्चों को अवैध रूप से डिटेन किया गया’

नदीम खान ने कहा कि इस कार्रवाई में सबसे ज्यादा गुड़गांव में बंगाली भाषी लोगों को परेशान किया जा रहा है. गुड़गांव में काम करने वाले लगभग 2 लाख बंगाली भाषी लोग रहते हैं. यहां रात में कई दिनों तक पुरूषों, महिलाओं और बच्चों को अवैध रूप से डिटेन किया गया. बिना किसी नियम का पालन किए बिना वर्दी में आई पुलिस लोगों को उठाकर ले गई. इसके कई वीडियो सोशल मीडिया में मौजूद हैं. इसके बाद किसी को तीन दिन तो किसी को चार दिन के बाद छोड़ा गया.

‘गुड़गांव में रहने वाले 90 प्रतिशत बंगाली भाषी लोग वापस लौटे’

उन्होंने आगे कहा कि इसके साथ ही उन लोगों को अन्य लोगों के सामने पीटा गया ताकि अन्य लोगों में डर आ जाए. इन घटनाओं के बाद गुड़गांव में रहने वाले 90 प्रतिशत बंगाली भाषी लोग बंगाल वापस लौट चुके हैं. इनमें मालदा, मुर्शिदाबाद, 24 परगना के रहने वाले लोग हैं. इतने ज्यादा लोगों को परेशान करने के बाद गुड़गांव पुलिस कह रही है कि हमने 10 बांग्लादेशियों को पकड़ा है. वो बांग्लादेशी हैं भी नहीं इसकी कोई जानकारी नहीं है.

‘मानव अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन किया गया’

नदीम खान ने कहा कि इस पूरी कार्रवाई में मानव अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन किया गया. बच्चों की पीटा गया, महिलाओं को रात के अंधेरे में पीटा गया. इसमें एक पुश बैक पॉलिसी बना दी गई है और यह मान लिया गया है कि अगर बंगाली बोलने वाला मुसलमान है तो वो बांग्लादेशी है. जबकि सबको यह मालूम है कि अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 27 प्रतिशत बंगाली मुसलमान रहते हैं.

नदीम खान ने और क्या कहा ?

नदीम खान ने आगे कहा कि इस पूरी प्रक्रिया के तहत 7 मई से 15 मई के बीच 1500 लोगों को जबरदस्ती बांग्लादेश भेजा गया. वहीं इसी दौरान असम से लगभग 300 लोगों को बांग्लादोश भेजा गया. वहीं 100 रोहिंग्या को असम से बांग्लादेश भेजा गया. इसके अलावा 40 लोगों को दिल्ली से अंडमान लो जाया गया, जहां उनके हाथ पैर बांधकर समंदर में फेंक दिया गया, जिनमें से कुछ लोगों को नेवी ने बचाया. इनमें से बहुत सारे लोग भारतीय थे, जिन्हें वापस लाया गया. यह पूरा प्रोसेस भेड़ चाल की तरह किया जा रहा है.

भारत सरकार से की यह मांग

नदीम खान ने मांग की कि बंगाली भाषी नागरिकों की सभी अवैध हिरासत और निर्वासन पर तत्काल रोक लगाई जाए तथा कानून के तहत उचित प्रक्रिया का सख्ती से पालन किया जाए. साथ ही जिन अधिकारियों ने महिलाओं, बच्चों के साथ दुर्व्यवहार किया है कि उसकी न्यायिक जांच की जाए.

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