मेराज का सफ़र-2
प्रिय दर्शको,
पिछले एपिसोड में आपने मेराज के सफ़र के बारे में कुछ बुनियादी बातें सुनी थीं, आज उसी का शेष भाग आपकी सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है।
मेराज का वाकिया, मुस्लिम समुदाय के उत्थान के समय का आरंभ था। अल्लाह तआला ने अपनी सृष्टि के बहुत सारे दृश्य और अपनी व्यवस्था से संबंधित बहुत सारे तथ्य नबी (सल्ल.) को दिखाए। अतः आप (सल्ल.) को जहन्नम दिखाई गई, और यह भी दिखाया गया कि वहाँ पर किस प्रकार के अपराधों पर क्या सज़ा दी जाती है, इसके अलावा और भी बहुत कुछ दिखाया गया। यह तो अल्लाह ही बेहतर जानता है, या फिर उसके पैग़म्बर, जिन्हें अल्लाह ने परोक्ष संबंधी तथ्यों के दर्शन कराए, जानते हैं कि सृष्टि की व्यवस्था और सृष्टि के विभिन्न विभागों के संबंध में अपने प्रिय बन्दे और अपने श्रेष्ठतम पैग़म्बर (सल्ल.) को क्या कुछ दिखाया।
मेराज के सफ़र में नबी (सल्ल.) के द्वारा हमें एक और तोहफ़ा मिला, यह तोहफ़ा है दिन में पाँच बार नमाज़ का अदा करना। उस समय तक केवल दो वक़्त की नमाज़ फ़र्ज़ (अनिवार्य) थी। इस सफ़र के बाद आप (सल्ल.) के माननेवालों (मुसलमानों) पर दिन में पाँच बार नमाज़ पढ़ना फ़र्ज़ ठहराया गया। इसके अलावा ख़ुद अल्लाह के रसूल (सल्ल.) के लिए तहज्जुद (आधी रात के बाद नींद से उठकर पढ़ी जानेवाली नमाज़) को फ़र्ज़ कर दिया गया, अगरचे आप (सल्ल.) उसे पहले से ही पढ़ते आ रहे थे।
हदीस के हवाले से आपने वह बात सुनी होगी कि अल्लाह के रसूल (सल्ल.) की उम्मत (अनुयायी समुदाय) के लिए पहले-पहल प्रतिदिन पचास बार नमाज़ पढ़ने का आदेश दिया गया। इसपर मूसा (अलैहि.) ने आप (सल्ल.) को इसे कम कराने का मशवरा दिया, जिसपर आप (सल्ल.) ने अल्लाह तआला से इसमें कमी करने का निवेदन किया, और फिर कम करते-करते आख़िरकार दिन में केवल पाँच वक़्त की नमाज़ रह गई । मूसा (अलैहि.) ने कहा, “मेरी क़ौम बनी-इसराईल तुम्हारी क़ौम के मुक़ाबले में बहुत ज़्यादा मज़बूत थी, तुम इन नमाज़ों को और भी कम कराओ। शायद तुम्हारी उम्मत पाँच नमाज़ों की मेहनत भी सहन न कर सके।”
नबी (सल्ल.) ने फ़रमाया, “अब मुझे शर्म आती है, मैं अब कमी नहीं कराऊँगा।”
इस वाकिया में हमारे लिए बहुत से सबक़ हैं—
पहला सबक़ यह है कि अल्लाह तआला, जिसने हमारे लिए सारी सृष्टि की रचना की और धरती का फ़र्श हमारे लिए बिछाया और प्रकृति की बहुत सी शक्तियों को हमारे लिए काम में लगा दिया। अल्लाह तआला ने हवा, वर्षा, पहाड़, बाग़ कितनी ही चीज़ों को हमारे लिए उपयोगी बना दिया। इससे यह पता चलता है कि अगर पचास वक़्त की नमाज़ पढ़ने का आदेश हमको दिया गया होता, तो कुछ ग़लत न होता, लेकिन अल्लाह तआला ने हमारी मजबूरियों का ध्यान रखते हुए उसे पाँच नमाज़ों तक ही सीमित कर दिया।
दूसरा सबक़ यह मिलता है कि पैग़म्बर लोग अपनी उम्मतों (अनुयायी समुदायों) के प्रति बहुत दयालु होते हैं। हज़रत मूसा (अलैहि.) नमाज़ें कम कराने का सुझाव देते रहे और आप (सल्ल.) अल्लाह से बार-बार विनती करते रहे कि ‘और कुछ कम कर दी जाएँ, और कुछ कम कर दी जाएँ’।
तीसरी बात यह मालूम होती है कि जो व्यक्ति पाँच वक़्त की नमाज़ पढ़ेगा, अल्लाह ने चाहा तो वह पचास समयों की नमाज़ों ही का सवाब (पुण्य) हासिल करेगा।
चौथी बात यह समझ में आती है कि अगर कोई व्यक्ति पाँच वक़्त की नमाज़ भी नहीं पढ़ सकता, तो कितने बड़े दुर्भाग्य की बात होगी कि अल्लाह के जो उपकार हमपर हैं, जिसमें हमारा रोम-रोम बँधा हुआ है, उन उपकारों को देखते हुए अगर पचास वक़्त की नमाज़ें भी हमपर अनिवार्य होतीं, तो हमें पढ़ना चाहिए था।
अब ज़रा इस बात पर विचार करें कि हम पाँच वक़्त की नमाज़ों का भी हक़ अदा नहीं करते। हमारे दिल किन्हीं दूसरी चीज़ों में अटके रहते हैं। जबकि नमाज़ एक बहुत बड़ा उपहार है, जो नबी (सल्ल.) हमारे लिए लेकर आए हैं।
नमाज़ के अलावा मुहम्मद (सल्ल.) को मेराज में ही यह इशारा भी दे दिया गया था कि ‘अब तुम्हें मक्का की बस्ती को छोड़ना है, अब तुम्हें ज़ालिमों के चंगुल से निकलना है, अब तुम्हें मदीना जाना है, वहाँ तुम्हारा स्वागत किया जाएगा, और वहाँ पर तुम एक इस्लामी समाज का गठन करोगे और एक इस्लामी राज्य की स्थापना करोगे।’ और ग़ैब (परोक्ष) के परदे के पीछे अल्लाह तआला की सृष्टि की व्यवस्था कैसे चलती है, इसके भी बहुत से दृश्य नबी (सल्ल.) ने देखे और जो परोक्ष की जितनी जानकारी किसी पैग़म्बर के लिए ज़रूरी हो सकती है, उतनी जानकारी नबी (सल्ल.) को दे दी गई। इससे आप (सल्ल.) का दिल और भी सन्तुष्ट हुआ तथा आप (सल्ल.) को और भी ज़्यादा बल मिला कि ‘मैं उस रब का बन्दा और रसूल हूँ और मुझे समस्त मानवता का सुधार करना है।
अल्लाह की बहुत बड़ी कृपा है कि पाँच वक़्त की ये नमाज़ें जो एक व्यावहारिक उपहार के रूप में हमको मिली हैं, हमें इनका हक़ अदा करना चाहिए।
व आख़िरु दअवा-न अनिल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल-आलमीन।