मस्जिदे-नबवी का निर्माण
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(अल्लाह दयावान, कृपाशील के नाम से)
प्रिय दर्शको, नबी (सल्ल.) को पहले ही बता दिया गया था कि आपको हिजरत करनी है, और मेराज की यात्रा से वापस आने के बाद सूरा-17 बनी-इसराईल की आयत-80 में अल्लाह ने आपको दुआ सिखा दी थी—
وَقُل رَّبِّ أَدْخِلْنِى مُدْخَلَ صِدْقٍۢ وَأَخْرِجْنِى مُخْرَجَ صِدْقٍۢ وَٱجْعَل لِّى مِن لَّدُنكَ سُلْطٰنًا نَّصِيرًا
“मेरे रब, तू मुझे ख़ूबी के साथ दाख़िल कर और ख़ूबी के साथ निकाल, और अपनी ओर से मुझे सहायक शक्ति प्रदान कर।”
चुनाँचे नबी (सल्ल.) ने 13 वर्ष तक मक्का में इस्लाम के सन्देश को पेश करने के बाद मदीना की ओर हिजरत की। एक बार फिर याद रहे कि नबी (सल्ल.) की हत्या की साज़िश की गई थी और जब इस्लाम-दुश्मनों की ओर से नियुक्त किए गए हथियारबंद नवयुवकों ने आप (सल्ल.) के घर को चारों ओर से घेर लिया था, उसी रात आप (सल्ल.) वहाँ से रवाना हुए और क़ुरआन की सूरा-36 या-सीन, की शुरू की (1 से 4) आयतें आपकी ज़बान पर थीं—
بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
يٰسۗ۱ۚ وَالْقُرْاٰنِ الْحَكِيْمِ۲ۙ اِنَّكَ لَمِنَ الْمُرْسَلِيْنَ۳ۙ عَلٰي صِرَاطٍ مُّسْتَــقِيْمٍ۴ۭ
ये आयतें पढ़ते हुए नबी करीम (सल्ल.) वहाँ से बाहर आए, और आपने एक उपाय के तौर पर उत्तर की ओर जाने के बजाय दक्षिण की ओर गए, हालाँकि मक्का से मदीना उत्तर की ओर है। यह एक रणनीति थी जो आपने तत्त्वदर्शिता के साथ अपनाई थी, और इसका उद्देश्य यह था कि जब लोग आप (सल्ल.) को उत्तर की ओर तलाश करें तो आप उन्हें न मिलें। उसके बाद आप सौर नामक गुफा में गए, आप (सल्ल.) के दोस्त अबू-बक्र सिद्दीक़ (रज़ि.) आपके साथ थे। आप दोनों तीन दिन तक वहाँ रहे और फिर धीरे-धीरे यात्रा करते हुए आप (सल्ल.) मदीना पहुँचे। मदीना में पहले आप (सल्ल.) क़ुबा में ठहरे और वहाँ पर मस्जिदे-क़ुबा की बुनियाद डाली गई। फिर उसके बाद आप (सल्ल.) ने मदीना की ओर रुख़ किया, जहाँ आज मस्जिदे-नबवी बनी हुई है, जो शहर का केन्द्रीय भाग है, वहाँ आप पहुँचे। आप (सल्ल.) के मदीना पहुँचने से वहाँ के सभी लोग बहुत प्रसन्न हुए। क़बीला बनू-नज्जार (जिससे आपकी माँ हज़रत आमिना का संबंध था) के लोग, विशेषकर छोटी बच्चियाँ आपके आने से बहुत ख़ुश थीं और उछलकर, कूद-कूदकर नबी (सल्ल.) का स्वागत कर रही थीं। वे “त-लउल बद्रु अलैना…..” वाली प्रसिद्ध नज़्म गा रही थीं।
नबी (सल्ल.) के सिलसिले में हर व्यक्ति यह चाहता था कि आप (सल्ल.) का आतिथ्य सत्कार करने का सौभाग्य उसे प्राप्त हो। लेकिन नबी करीम (सल्ल.) ने साफ़ कह दिया कि “इस ऊँटनी को छोड़ दो। अल्लाह इसे जिधर ले जाएगा, उधर यह जाएगी।” चुनाँचे ऊँटनी इधर-उधर घूमती रही, फिर एक जगह बैठ गई। जहाँ ऊँटनी बैठी थी, वह हज़रत अबू-अय्यूब अंसारी (रज़ि.) का दो मंज़िला मकान था। नबी (सल्ल.) को ऊपर की मंज़िल में ठहरने की दावत दी गई।
सबसे पहला काम जो नबी करीम (सल्ल.) ने किया वह एक मस्जिद का निर्माण था, जिसे आज हम मस्जिदे-नबवी ( नबी की मस्जिद) के नाम से जानते हैं। मस्जिदे-नबवी के लिए जो जगह नबी (सल्ल.) ने पसन्द की वह दो यतीम बच्चों की थी। उन बच्चों के नाम थे ‘सहल’ और ‘सुहैल’। उन बच्चों ने अपनी मर्ज़ी से नबी (सल्ल.) की सेवा मे पेश किया और कहा, “ऐ अल्लाह के रसूल, इस ज़मीन को आप क़ुबूल करें। यह हमारे लिए बड़े सम्मान की बात होगी।”
लेकिन नबी (सल्ल.) ने, जो ख़ुद ग़रीबों, यतीमों और कमज़ोरों के अधिकारों का हर वक़्त ख़याल रखते थे, इस बात को पसन्द नहीं किया कि उस ज़मीन को यों ही ले लें, बल्कि आप (सल्ल.) ने उसकी क़ीमत चुकाई और उस प्लॉट को ख़रीद लिया।
अब देखिए कि मस्जिदे-नबवी वहाँ पर किस तरह बनी। कच्ची ईंटों की दीवारें थी, खजूर के तनों को छत की कड़ियों के रूप में इस्तेमाल किया गया था, फिर उसके बाद ऊपर से खजूर ही के पत्ते डाले गए थे। नीचे का फ़र्श पहले तो कच्चा ही था, लेकिन बाद में जब वर्षा के पानी के कारण वहाँ मुश्किल होने लगी तो वहाँ पर पत्थर बिछा दिए गए। यह थी आरंभ में बनी वह मस्जिदे-नबवी। उसकी तुलना आज की मस्जिदे-नबवी से कीजिए। तब से अब तक कितना परिवर्तन आ चुका है। उसके चमकते मीनार मीलों दूर से दिखाई देते हैं।
आप जानते हैं कि सबसे अधिक सवाब (पुण्य) मस्जिदे-हराम (यानी मक्का की वह मस्जिद जो काबा के चारों ओर बनी है) में नमाज़ पढ़ने का है, दूसरे नंबर पर सबसे अधिक सवाब मस्जिदे-नबवी में नमाज़ पढ़ने पर मिलता है।
उसके बाद नबी (सल्ल.) ने इस्लाम के प्रचार-प्रसार जैसे महान कार्य को करना शुरू किया, सूरा-2 बक़रा वग़ैरा में इस संबंध में आदेश देखे जा सकते हैं, जिनमें मुसलमानों को संगठित करने, उन्हें प्रशिक्षित करने, उनके दिल में अल्लाह का डर पैदा करने तथा उनकी सामाजिक स्थिति को ठीक करने के आदेश भी दिए गए हैं। नबी (सल्ल.) ने इन सारे कामों में स्वयं को व्यस्त कर लिया। अल्लाह की आयतें एक के बाद एक अवतरित हो रही थीं, जिससे उन लोगों को, जो वहाँ आकर बसे थे, निर्देश मिल रहे थे। इस प्रकार नबी (सल्ल.) ने मुसलमानों को संगठित करना आरंभ किया। बहुत व्यस्तता का समय था। नबी (सल्ल.) को एक प्रभुत्व प्राप्त हो गया था, और इस्लामी समाज को सुधारने का काम आप (सल्ल.) करते चले जा रहे थे।
एक और बात ध्यान देने योग्य है वह यह कि दूसरे बहुत-से ऐसे सन् हैं जो किसी के जन्म से शुरू होते हैं, लेकिन हमारा हिजरी सन् न तो नबी (सल्ल.) के जन्म से, न चालीस वर्ष की उम्र में आप (सल्ल.) के नबी बनाए जाने के समय से शुरू होत है, बल्कि यह आप (सल्ल.) के मक्का से मदीना हिजरत कर जाने की घटना से शुरू होता है। यह 622 ई. की बात है जब नबी करीम (सल्ल.) ने मक्का से मदीना को प्रस्थान किया।
इस तरह हम देखते हैं कि नबी (सल्ल.) के वुजूद और व्यक्तित्व को महत्त्व नहीं दिया गया, बल्कि जब इस्लामी समाज का गठन हुआ और इस्लामी व्यवस्था की स्थापना हुई, उस समय से सन् हिजरी का आरंभ होता है।
इस तरह अल्लाह तआला नबी (सल्ल.) को एक शहर दे दिया। इससे पहले मदीना का नाम ‘यसरिब’ हुआ करता था। इसके अलावा उसे ‘बतहा’ भी कहा जाता था, लेकिन उसके बाद उसका नाम ‘मदीना’ हो गया। उसे मदीना-ए-तय्यिबा (पवित्र नगर) भी कहा जाता है और मदीनतुन-नबी (नबी का शहर) भी।
अल्लाह तआला ने इन दोनों शहरों को क़ियामत तक के लिए बहुत महानताएँ प्रदान की हैं, जिनमें से एक मक्का-ए-मुअज़्ज़मा है, जिसका आरंभ आज से लगभग 4000 वर्ष पहले हज़रत इबराहीम (अलैहि.) और हज़रत इस्माईल (अलैहि.) ने किया था। दूसरा मदीना-ए-मुनव्वरा है, जिसको एक नया नाम और नई महानता प्रदान की गई जब नबी (सल्ल.) हिजरत करके वहाँ पहुँचे और वहीं से इस्लाम का सूरज उभरने लगा और उसकी किरणें सारी दुनिया में फैलने लगीं।
अल्लाह तआला की रहमतें हों उसके नगर मक्का पर, और नबी करीम (सल्ल.) के शहर मदीना पर।
व आख़िरु दअवा-न अनिल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल-आलमीन।