हज़रत मुहम्मद (सल्ल.): माँ आमिना की गोद से दाई हलीमा की गोद तक
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(अल्लाह दयावान, कृपाशील के नाम से)
प्रिय दर्शको, आप सबको मेरा प्यार भरा सलाम।
आज की छोटी-सी तक़रीर का शीर्षक है—‘हज़रत मुहम्मद (सल्ल.): माँ आमिना की गोद से दाई हलीमा की गोद तक’। आप (सल्ल.) अभी कुछ ही दिन के थे कि आप अपनी माँ हज़रत आमिना की गोद सो दूर हो गए। इसका कारण यह था कि मक्का जो कि अरब देश का बहुत बड़ा शहर था, वहाँ विभिन्म प्रकार की बीमारियाँ और महामारियाँ भी आती रहती थीं। इसलिए अरब के लोग जो बहुत शक्तिशाली और बहादुर हुआ करते थे, उनमें के धनाढ्य लोग अपने बच्चों को पैदा होने के बाद कई वर्षों के लिए रेगिस्तान के खुल वातावरण में भेज दिया करते थे। मक्का के लोग अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारी थे। वे दूर-दूर तक यात्राएँ करते थे। एक ओर वे यमन, बल्कि भारत तक आते, दूसरी ओर ईरान, रोम तथा फ़िलस्तीन जाते। इसलिए वे बच्चों को मज़बूत बनाने के लिए अपने दूध पीते बच्चों को शहर के बाहर दाइयों के पास खुले वातावरण में भेज दिया करते थे।
आस-पास के कई क़बीलों से अपनी ऊँटनियों पर सवार होकर कई औरतें अपने पतियों और दुधमुँहे बच्चों के साथ आतीं, वे बड़े-बड़े घरानों में जातीं, उनके नवजात शिशुओं को लेकर जातीं और दो-चार वर्ष तक अपनी देखरेख में रखतीं, उन्हें अपना दूध पिलातीं और इस प्रकार वे उनकी ‘रज़ाई’ (दूध पिलानेवाली) माएँ कहलाती थीं।
आप (सल्ल.) छोटे ही थे कि ऐसी ही कुछ औरतें आईं। वे सब बड़े-बड़े घरानों में गईं और उन्होंने अमीर घराने के बच्चों को ले लिया। उनमें से कई औरतों ने आप (सल्ल.) के बारे में सोचा कि अरे, यह तो यतीम बच्चा है, इसका बाप तो मर चुका है, अगरचे शरीफ़ ख़ानदान है, लेकिन अमीर घराना तो है नहीं। इसका दादा क्या देगा? इसकी माँ क्या दे सकेगी? इस प्रकार आप (सल्ल.) के यहाँ कोई नहीं आया।
हलीमा, जो एक बड़ी सभ्य और मधुर स्वभाव की महिला थीं, वे भी अपने पति के साथ आई हुई थीं। वे अपनी कमज़ोर सी ऊँटनी पर आई थीं और साथ में एक कमज़ोर सी गधी भी लाई थीं। जब उन्हें कोई बच्चा नहीं मिला तो उन्होंने इसका ज़िक्र अपने पति से कहा, “वह यतीम बच्चा जिसे हमने छोड़ दिया था, चलो उसी को ले लेते हैं। अब मैं ख़ाली हाथ कैसे जाऊँ? अपनी सहेलियों को मैं कैसे मुँह दिखाऊँ?” अतः वे आईं और इस प्रकार मुहम्मद (सल्ल.) अपनी माँ आमिना की गोद से हलीमा सादिया की गोद में पहुँच गए।
परन्तु इस घटना के बाद एक अजीब बात हुई। बचपन ही से अल्लाह तआला ने प्यारे नबी (सल्ल.) को कुछ विशेष क्षमताएँ दी थीं। आप (सल्ल.) ने मुस्कराकर अपनी उस (दूध पिलानेवाली) माँ की ओर देखा, माँ का चेहरा खिल उठा। और फिर जब उन्होंने आप (सल्ल.) को दूध पिलाया तो मानो चमत्कार सा हो गया। कि पहले तो अपने बच्चे के लिए ही दूध कम पड़ता था, मगर अब आप (सल्ल.) के साथ अपने बच्चे को पिलाने के बावजूद दूध कम न होता था। फिर वापसी में जब वे आप (सल्ल.) को लेकर चलीं तो उनकी कमज़ोर सी ऊँटनी जो पहले बहुत धीरे-धीरे चलती थी, अब लम्बे-लम्बे डग भरने लगी और इसी प्रकार उनकी गधी भी तेज़ चलने लगी। उनकी सखियाँ चकित थीं कि यह क्या हो गया? मरियल से इन दोनों जानवरों में अचानक यह चुस्ती-फुर्ती कहाँ से आ गई? उन्होंने कहा, “अरे, यह तो सबसे आगे जा रही है। अरे, रुक-रुक। हम भी तेरे साथ चलते हैं।”
इसके अलावा वहाँ पर और भी बहुत-सी बरकतें हुईं । अरब के रेगिस्तानी भू-भाग के बारे में किसी शायर ने कहा है—
वहाँ न घास उगती है, वहाँ न फूल खिलते हैं
मगर उस सरज़मीं से आसमाँ झुक-झुक के मिलते हैं
अल्लाह के अति प्रतिष्ठित आख़िरी पैग़म्बर के द्वारा अल्लाह तआला को वहाँ पर इस्लाम के दीप को प्रज्वलित करना था, जिसके माध्यम से सारे जगत् में इस्लाम का सन्देश फैल जाए और मानवता का भला हो। मसलन एक बकरी जो बिलकुल दुबली-पतली सी थी। मौसम के प्रभाव तथा घास की कमी के कारण जिसका यह हाल था, उसके थनों में भी दूध भर गया। इस प्रकार के बहुत-से चमत्कार उन लोगों ने देखे। इस प्रकार वह बच्चा, जिसको सारे ग़रीबों, यतीमों, मजबूरों और बेसहारों का सहारा बनना था, उसकी आध्यात्मिक ही नहीं, भौतिक बरकतें भी शुरू ही से ज़ाहिर होने लगीं। और इस बात पर ज़रा ग़ौर कीजिए कि जिस बच्चे को पहले तमाम दाइयों ने यह सोचकर तिरस्कृत कर दिया था कि इसकी माँ तो बहुत ग़रीब है, वह किसी को क्या दे पाएगी, इसका दादा क्या दे पाएगा, और इसका बाप तो है ही नहीं। यह तो यतीम है।
अल्लाह तआला ने आप (सल्ल.) को ऐसी महानता, ऐसी शक्ति, ऐसी बुद्धिमत्ता प्रदान की और पैग़म्बरी का ऐसा प्रकाश आपको प्रदान किया कि आप (सल्ल.) तमाम ग़रीबों, अनाथों और कमज़ोरों का सहारा बन गए। फिर आप (सल्ल.) ने अरब के रेगिस्तानी इलाक़ों में एक ऐसे समाज का निर्माण किया, जो दुनिया में सबसे अधिक दानशील है, सबसे अधिक ख़र्च करनेवाला है, जो ग़रीबों का ख़याल रखता है।
प्रिय दर्शको! हमारी और आपकी ज़िम्मेदारी है कि हम प्यारे नबी (सल्ल.) के आचरण का अनुसरण करते हुए हम दुनिया के सबसे सभ्य और भले इंसान और सारे परेशान और दीन-दुखियों की सेवा करनेवाले और उनकी मुश्किलें दूर करनेवाले, उनकी समस्याएँ हल करनेवाले बन जाएँ। नबी (सल्ल.) के जीवन से हमें यह शिक्षा मिलती है।
अल्लाह तआला हमें भले काम करने की भावना प्रदान करे, आमीन
व आख़िरु दअवा-न अनिल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल-आलमीन।