अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की यात्रा

अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की यात्रा

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(अल्लाह दयावान, कृपाशील के नाम से)

प्रिय दर्शको, आप सबको मेरा प्यार भरा सलाम। नबी (सल्ल.) 8 वर्ष की आयु में अपने चाचा अबू तालिब के साथ व्यापारिक क़ाफ़िले में शामिल होकर सीरिया की यात्रा पर गए और फिर वापस आए। उस समय तक आप (सल्ल.) ने दुनिया का छोटा-सा हिस्सा देखा था। आप (सल्ल.) ने ऊँचे-ऊँचे पहाड़ देखे, संकरी घाटियाँ देखीं, ऊँचे-नीचे रास्तों को देखा, सीरिया के दो-एक नगरों को देखा, वहाँ की भव्यता, वहाँ की सभ्यता एवं संस्कृति को देखा और 8 वर्ष की कच्ची उम्र में जो कुछ समझ सकते थे, समझ गए। मूर्ति पूजा तो ख़ैर मक्का में भी होती थी, मगर आप (सल्ल.) ने वहाँ भी लोगों को मूर्ति पूजा में लीन देखा, आप (सल्ल.) ने वहाँ पर ईसाइयों को भी देखा, यहूदियों को भी देखा। यह सब देखकर आप (सल्ल.) चिंतन-मनन करने लगे। फिर जब आप 12 वर्ष के हुए तो बकरियाँ चराने लगे। जब कोई व्यक्ति बकरियाँ चराता है और दूर रेगिस्तानों में अकेला जाता है तो उसको विशाल मरुस्थल को, रेत के ढेरों को और सूरज के उदय और अस्त होने को देखने का मौक़ा मिलता है। आँधियों का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी प्यास की शिद्दत की वजह से उसको अपने पास रखा हुआ पानी या किसी जल-स्रोत को तलाश करके पानी पीना पड़ता है। चरवाहा उसे कहते हैं जो बकरियों को चराता है। अकसर पैग़म्बरों के साथ यह हुआ है, ईसा (अलैहि.) के साथ भी आपने ईसाइयों की तस्वीरों में देखा होगा कि ईसा (अलैहि.) को Good Sheperd कहा गया है। बकरियाँ चराने से अनुशासन और कंट्रोल करने की क्षमता पैदा होती है।

नबी (सल्ल.) शुरू से ही रेगिस्तानों में जाकर सितारों को देखते, सूरज को देखते, चाँद को देखते। अल्लामा इक़बाल ने कहा था—
फ़ितरत के मक़ासिद की करता है निगहबानी
या बन्द-ए-सहराई या मर्दे-कोहिस्तानी

आप (सल्ल.) चिंतन-मनन करते कि सही क्या है और ग़लत क्या है? यह बुतपरस्ती क्या चीज़ है? अल्लाह तआला ने हर तरह की ग़लत चीज़ से आप (सल्ल.) को बचाया। कभी आप (सल्ल.) किसी मूर्ति के आगे झुके नहीं, आप (सल्ल.) को इस प्रकार के झूठे माबूदों (उपास्यों) से नफ़रत थी। अरब में क़िस्से-कहानियाँ सुनाने का रिवाज था, लोग रात-रात भर कहानियाँ सुनाया और सुना करते थे। एक बार आप (सल्ल.) का भी जी चाहा कि ऐसी ही कहानी सुनने हम भी जाएँ। उस समय आप (सल्ल.) की आयु 12-15 वर्ष की रही होगी, लेकिन रास्ते में नींद आ गई और आप (सल्ल.) वहीं पड़कर सो गए। अरब में कुछ गानों की महफ़िलें भी होती थीं, जिसमें दासियाँ आदि गाने सुनाती थीं। एक बार आप (सल्ल.) के किसी साथी ने कहा कि चलो गाना सुनते हैं चलकर, लेकिन उस समय भी अल्लाह ने आपको बचा लिया, आप (सल्ल.) को फिर नींद आ गई। इस प्रकार अल्लाह ने आप (सल्ल.) को ग़लत चीज़ों से बचाने का प्रबंध किया।

एक बार की बात है, जब कि आप (सल्ल.) अभी बच्चे थे। ख़ाना-ए-काबा और मस्जिदे-हराम की मरम्मत हो रही थी। तो बहुत-से बच्चे भी कंधों पर पत्थर लादकर ला रहे थे। कंधे छिलने की आशंका थी, इसलिए बहुत-से बच्चों ने अपनी लुंगी को तह करके अपने कंधे पर रख लिया था और पत्थर ढो रहे थे। आप (सल्ल.) के चाचा ने भी आपके कपड़े को निकालना चाहा, उसी समय आप (सल्ल.) शर्म के मारे बेहोश होकर गिर गए। चुनाँचे अल्लाह ने उस छोटी-सी आयु में भी निर्वस्त्र होने से बचा लिया। और इस प्रकार अपने चाचा अबू तालिब के संरक्षण में एक साफ़-सुथरे वातावरण में आप (सल्ल.) बड़े होने लगे। और अल्लाह तआला ने हर तरह की ख़राबियों से आपको बचाए रखा। अल्लाह तआला कुरआन में फ़रमाता है—
وَالَّذِيْنَ ہُمْ عَنِ اللَّغْوِ مُعْرِضُوْنَ
“ये लोग फ़ालतू और ग़ैर-ज़रूरी चीज़ों से परहेज़ करते हैं।” व्यर्थ के कामों में अपने आपको व्यस्त नहीं करते। अल्लाह तआला हमें भी हर प्रकार की व्यर्थ बातों से बचाए और ज़िन्दगी की जो मुहलत अल्लाह ने दी है, इसके एक-एक पल को नबी (सल्ल.) के अनुसार गुज़ारना सिखाए।

आमीन, या रब्बल आलमीन।

व आख़िरु दअवा-न अनिल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल-आलमीन।

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