मदीना में नबी (सल्ल.) के दो ख़ुत्बे

मदीना में नबी (सल्ल.) के दो ख़ुत्बे

प्रिय दर्शको, आप सबको मेरा प्यार भरा सलाम।

हम नबी करीम (सल्ल.) के मदनीकाल से गुज़र रहे हैं। तेरह वर्ष तक कठिनाइयाँ और मुसीबतें सहन करने के बाद नबी करीम (सल्ल.) हिजरत करके मदीना आ गए। आप (सल्ल.) ने वहाँ पर मस्जिदे-नबवी की स्थापना की। फिर आप (सल्ल.) ने वहाँ के लोगों से मिलना शुरू किया, उन सबको इस्लाम की ओर बुलाया, इस सिलसिले में आज की बैठक में आपके सामने नबी (सल्ल.) के दो ख़ुत्बे (अभिभाषण) प्रस्तुत किए जा रहे हैं।

नबी (सल्ल.) जब भी कोई ख़ुत्बा देते, तक़रीर करते तो सबसे पहले अल्लाह तआला की तारीफ़ बयान करते, उसका शुक्र अदा करते, ख़ुद के अल्लाह का बन्दा (दास) होने को स्वीकार करते और अपनी ग़लतियों और भूल-चूक पर माफ़ी माँगते। हम मुसलमान भी जुमा और निकाह के ख़ुत्बों में इसी तरीक़े पर अमल करते हैं, जिसके आरंभिक शब्द ये होते हैं—

نَحْمَدُهُ وَنَسْتَعِينُهُ وَنَسْتَغْفِرُهُ، وَنَعُوذُ بِاللهِ مِنْ شُرُورِ أَنْفُسِنَا وَمِنْ سَيِّئَاتِ أَعْمَالِنَا
आप सभी लोग तमाम ख़ुत्बों में इन शब्दों को सुनते रहते हैं। चुनाँचे पहला ख़ुत्बा जो संक्षिप्त है, आपके सामने प्रस्तुत किया जा रहा है।

अल्लाह की तारीफ़ बयान करने के बाद नबी (सल्ल.) ने फ़रमाया—

“लोगो! अपनी जानों के लिए समय रहते कुछ कमाई कर लो। ख़ूब जान लो कि ख़ुदा की कसम! तुममें से हर एक पर मौत छाएगी और वह अपने रेवड़ को इस हाल में छोड़कर विदा होगा कि कोई उसका चरवाहा न रहेगा। फिर उससे उसके पालनहार की ओर से ऐसी हालत में संबोधित किया जाएगा जबकि बीच में कोई प्रवक्ता न होगा। कहा जाएगा, ‘क्या तुझ तक मेरा रसूल नहीं पहुँचा था, जिसने बात तुझ तक पहुँचाई हो? फिर क्या मैंने तुझे माल नहीं दिया था और तुझपर कृपा नहीं की थी? तो फिर अपनी जान के लिए तूने क्या कुछ संग्रह किया है।’ इसके बाद वह अपने दाएँ-बाएँ देखेगा, लेकिन कुछ दिखाई न देगा। फिर सामने की ओर निगाह डालेगा, तो सिवाय जहन्नम के और कुछ सामने न आएगा। जो भी यह कर सकता हो, वह खजूर की एक फाँक के बदले भी अपने चेहरे को दोज़ख़ की आग से बचाने के लिए कुछ कर सकता हो, तो करे। सदक़ा-ख़ैरात करे, माल ख़र्च करे, कितनी तुच्छ सी चीज़ क्यों न हो उसे बुरा न समझे। चुनाँचे फ़रमाया गया कि खजूर के एक टुकड़े के बदले भी अपने चेहरे को दोज़ख़ की आग से बचाने के लिए कुछ कर सकता हो तो करे। जो इतना भी न कर सके, वह कोई भली बात कहकर ही बचाव करे। चूँकि नेकी का बदला दस गुना से लेकर सात सौ गुना तक मिलता है।…वस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू”

“यानी तुमपर सलामती हो और अल्लाह की रहमतें औ बरकतें।”

यह संक्षिप्त सा पहला ख़ुत्बा था जो नबी (सल्ल.) ने दिया था। इसके बाद दूसरा ख़ुत्बा है जो कुछ लम्बा है।

नबी करीम (सल्ल.) ने यह बात भी बताई है कि व्यक्ति के बुद्धिमान होने का प्रतीक यह है कि उसकी नमाज़ लम्बी हो। नमाज़ में क़िरअत (क़ुरआन पाठ) भी देर तक करे। रुकू और सज्दे भी लम्बे करे और फिर जो कुछ पढ़ रहा हो, उसका ध्यान रखे कि वह क्या पढ़ रहा है, समझे कि मैं क्या कह रहा हूँ। दूसरी बात आपने यह कही कि किसी के बुद्धिमान होने की निशानी यह भी है कि उसकी बात संक्षिप्त और सारगर्भित हो और उसकी तक़रीर छोटी हो। वह दूसरा ख़ुत्बा नबी (सल्ल.) ने मदीना में दिया था, यह है। इन ख़ुत्बों में बड़ी व्यापकता है—

“सारी तारीफ़ अल्लाह के लिए है। मैं उसी की तारीफ़ बयान करता हूँ। उसी से मदद चाहता हूँ। हम सब अपने दिलों की शरारतों और अपने कर्मों की ख़राबियों के संबंध में अल्लाह ही की पनाह चाहते हैं। जिसे अल्लाह मार्गदर्शन प्रदान करे उसे कोई पथभ्रष्ट नहीं कर सकता और जिसके अल्लाह मार्गदर्शन से वंचित कर दे उसका कोई मार्गदर्शन नहीं कर सकता। मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद (उपास्य) नहीं है, उसका कोई साझी नहीं है। निस्संदेह, सर्वोत्तम वक्तव्य अल्लाह की किताब क़ुरआन मजीद है। जिस व्यक्ति के दिल के लिए अल्लाह ने उसे (क़ुरआन को) प्रिय बना दिया और जिसे अधर्म के बाद इस्लाम में दाख़िल किया और जिसने सारे मानवीय वक्तव्यों के मुक़ाबले में उसे अपने लिए पसन्द कर लिया, उसने सफलता पाई।

तुम वही कुछ पसन्द करो जो अल्लाह को पसन्द है और अल्लाह से ख़ुलूस (निष्ठा) के साथ मुहब्बत करो। अल्लाह के कलाम (वाणी) से लापरवाही न बरतो और तुम्हारे दिल उसके लिए सख़्त न होने पाएँ। चूँकि यह वास्तविकता है कि अल्लाह जो कुछ पैदा करता है, उसमें से बेहतर को छाँटता है और चुनता है, सो उसने कर्मों में से सर्वोत्तम, बन्दों में सर्वप्रिय और वक्तव्यों में से पवित्रतम को निर्धारित कर दिया है। साथ ही इंसान को जो कुछ दिया गया है, उस सबमें से कुछ हलाल (वैध) है और कुछ हराम (निषिद्ध)। तो अल्लाह की ग़ुलामी अपनाओ, उसके साथ किसी को साझी न ठहराओ, और उसके प्रकोप से ऐसे बचो जैसे कि बचना चाहिए, और अल्लाह के सामने वह सारी पवित्र बातें सच कर दिखाओ जिनको तुम अपनी ज़बानों से बोलते हो, और अल्लाह की दयालुता के द्वारा एक-दूसरे से प्रेम का रिश्ता बनाओ। निश्चय ही अल्लाह नाराज़ होता है अगर दिए हुए ईमान के वचन को तोड़ दिया जाए।….अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू!”

नबी (सल्ल.) के ये दोनों ख़ुत्बे ‘सीरते-इब्ने-हिशाम’ (भाग-2) से लिए गए हैं। और ये उन ख़ुत्बों में से जो मदीना में आने के शुरु के दिनों में नबी करीम (सल्ल.) ने दिए थे। अगर इनके विस्तार में जाएँ और इनपर ग़ौर करें तो हमें अल्लाह का बहुत कुछ मार्गदर्शन मिल सकताहै। अल्लाह तआला हमें इन ख़ुत्बों से लाभ उठाने, इनपर चिंतन-मनन करने और इनको अपने जीवन का मार्गदर्शक बनाने वाला बनाए। आमीन, या रब्बल-आलमीन!

व आख़िरु दअवा-न अनिल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल-आलमीन।

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